नकार दी गई इस अभिनेत्री ने परदे पर सालों राज किया!

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साठ और सत्तर के दशक की सबसे बेहतरीन अभिनेत्रियों की जब भी बात होती है, तो उसमें आशा पारेख का नाम जरूर शामिल होता है। अपने समय में आशा पारेख ने फिल्मी परदे पर लंबे समय तक राज किया। उनके चुलबुले अंदाज और ग्लैमरस अवतार ने प्रशंसकों का दिल उस दौर में भी खूब जीता। 2 अक्टूबर 1942 को जन्मी आशा पारेख के लिए यह जन्मदिन इसलिए भी खास है, क्योंकि जन्मदिन से ठीक दो दिन पहले वे फिल्म जगत के सबसे दादा साहेब अवार्ड से नवाजी गई हैं।

नकार दी गई इस अभिनेत्री ने परदे पर सालों राज किया!

आशा पारेख को इस बार का ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ दिए जाने की घोषणा की गई, जो सरकार की तरफ से दिया जाने वाला वार्षिक सम्मान है। यह सम्मान किसी व्यक्ति विशेष को भारतीय सिनेमा में उसके अतुलनीय योगदान के लिए दिया जाता है। इसकी शुरुआत ‘दादा साहब फाल्के’ के जन्म शताब्दी वर्ष 1969 से हुआ था। उस वर्ष राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार के लिए आयोजित 17वें समारोह में पहली बार यह सम्मान अभिनेत्री देविका रानी को प्रदान किया गया। तब से अब तक यह पुरस्कार लक्षित वर्ष के अंत में अथवा अगले वर्ष के आरम्भ में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार के लिए आयोजित समारोह में प्रदान किया जाता है। वर्तमान में इस पुरस्कार में 10 लाख रुपए की राशि और स्वर्ण कमल दिए जाते हैं।

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एक साधारण से मध्यमवर्गीय गुजराती जैन परिवार में जन्मी आशा पारेख की मां मुस्लिम और पिता गुजराती जैन थे। बचपन में कभी वो डॉक्टर तो कभी आईएएस बनने के बारे में सोचती थी। उनकी मां उन्हें एक अच्छी डांसर बनते देखना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने आशा पारेख को बहुत सारे नृत्य शिक्षकों से नृत्य की शिक्षा दिलाई जिसमें उस समय के उच्च कोटि के शिक्षक पंडित बंसीलाल भारती भी शामिल है। छोटी उम्र में ही नृत्य शिक्षा लेकर आशा पारेख बहुत ही मंजी हुई शास्त्रीय नृत्यांगना बन गई। जिसका उन्हें फिल्मों में बहुत लाभ मिला।

आशा पारेख ने बाल कलाकार के रूप में अपने अभिनय की शुरुआत सन 1952 में फ़िल्म ‘आसमान’ से की, तब वे स्टेज शो किया करती थी। ऐसे ही एक कार्यकम में उनकों विमल रॉय ने देखा और वे उनके नृत्य को देखकर काफी प्रभावित हुए। उन्होंने अपनी फिल्म ‘बाप बेटी’ में आशा पारेख को एक भूमिका दी। उस वक्त आशा पारेख बहुत ही छोटी थी, इसलिए उन्होंने फिल्में छोड़कर पढाई पढाई पर ध्यान देना शुरू कर दिया। 17 साल की उम्र में उन्होंने फिल्मों में फिर से अपने अभिनय को तलाशने की शुरूआत की। फ़िल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में उन्होंने दो दिन की शूटिंग की, जिसमें विजय भट्ट ने यह कहकर उन्हें निकाल दिया कि वे कभी हीरोइन नहीं बन सकती। 1959 में फ़िल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी ने उन्हें अपनी फिल्म फ़िल्म ‘दिल दे के देखो’ में शम्मी कपूर के साथ काम करने का अवसर दिया। इस फिल्म का निर्देशन नासिर हुसैन ने किया। यह फ़िल्म उस समय की हिट फ़िल्म रही, जिसने आशा पारेख को एक रोमांटिक हीरोइन के रूप में फिल्म जगत में स्थापित कर दिया।

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साठ और सत्तर के भारतीय सिनेमा की हिट गर्ल के नाम से मशहूर आशा पारेख ने देव आनंद, शम्मी कपूर, जॉय मुखर्जी, शशि कपूर, धर्मेन्द्र, मनोज कुमार और राजेश खन्ना, जीतेन्द्र और अमिताभ बच्चन के साथ जब प्यार किसी से होता है, तीसरी मंजिल, लव इन टोक्यो, कन्यादान, आए दिन बहार के, मेरा गांव मेरा देश, साजन, दो बदन, कारवां, प्यार का मौसम, उपकार, महल, पगला कहीं का, कटी पतंग, कालिया जैसी कई हिट फिल्मों में काम किया। विजय आनंद के साथ उनकी फिल्म ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ में उनके भावपूर्ण अभिनय को खूब सराहा गया। वे अपने दौर की सबसे महंगी कलाकारों में से थीं। कहा जाता है कि आशा पारेख 70 के दशक में इतनी फीस लेती थीं, जितनी फिल्म के हीरो को भी नहीं मिलती थी।

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राजेश खन्ना और शम्मी कपूर के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी। लेकिन, आश्चर्य की बात है कि आशा पारेख ने कभी भी दिलीप कुमार के साथ काम करने की अपनी इच्छा नहीं जताई! क्योंकि, वे उन्हें उतना पसंद नहीं थे। शम्मी कपूर उनके पसंदीदा हीरो रहे। उन्होंने उनके साथ चार रोमांटिक फिल्में भी की। हमेशा वो एक-दूसरे के साथ मस्ती करते रहते और शम्मी कपूर उन्हें छेड़ते हुए भतीजी बुलाते थे। आशा उनको चाचा बुलाती थी। आशा पारेख नंबर हिन्दी के अलावा दारा सिंह के साथ ‘लंबरदारनी’ और धर्मेंद्र के साथ ‘कंकन दे ओहले’ जैसी पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया है।

आशा पारेख ने शादी नहीं की। शादी से जुड़े सवाल पर आशा पारेख ने कहा था कि उनकी जिंदगी का सबसे अच्छा निर्णय है सिंगल रहना। वे शादी शुदा नासिर हुसैन से प्यार करती थी! लेकिन, यह नहीं चाहती थी कि उनकी वजह से किसी और का घर टूट जाए, इसलिए उन्होंने सिंगल रहना ही बेहतर मानकर शादी किए बिना ही पूरी जिंदगी गुजार दी। अपनी आत्मकथा में आशा पारेख ने कहा है कि उन्होंने अपने आत्मसम्मान को सबसे पहले रखा। आजकल आशा पारेख फिल्मों से दूर होकर भी सक्रिय है। मुंबई में वे डांस एकेडमी चलाती हैं। इसके अलावा वह सांताक्रूज इलाके में आशा पारेख का अस्पताल है जिसका भी वे कामकाज देखती हैं।

वे भारतीय सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की अध्यक्ष भी रह चुकी है। साथ ही उन्होंने 1994 से लेकर 2000 तक भारतीय फ़िल्म सेंसर बोर्ड की पहली महिला अध्यक्ष का पदभार भी संभाला, जो इतिहास बन गया। क्योंकि, इससे पहले किसी भी महिला को यह पद नहीं मिला था। 1992 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। आशा पारेख को घूमने-फिरने का भी बेहद शौक है, जिसके चलते उन्हें अक्सर अपनी दो दोस्तों वहीदा रहमान और हेलन के साथ तफरीह करते देखा जा सकता है।