बैशाख बुद्ध पूर्णिमा पर पूरी दुनिया में करुणा बरस रही थी, तो अलीराजपुर जिले में दो पीड़ित परिवारों के घरों तक करुणा का सागर हिलोरें भर रहा था। और करुणा का प्रतीक बन गया था पुलिस और प्रशासन का चेहरा। करुणा से भरे मध्यप्रदेश पुलिस-प्रशासन के दो ऊर्जावान अफसर दो पीड़ित परिवारों की सुध लेने गांवों की खाक छान रहे थे। दोनों पीड़ित परिवारों की बदहाली और गरीबी देख इन अफसरों का दिल पसीज गया।
कलेक्टर राघवेंद्र सिंह और पुलिस अधीक्षक मनोज सिंह एक ही गाड़ी में सवार होकर न केवल इन पीड़ित परिवारों से मिले, बल्कि इनकी माली हालत को सुधारने के लिए जो-जो संभव बन सकता था, वह सब करने के लिए कदम भी आगे बढ़ाए। सामान्य तौर पर पुलिस और प्रशासन की छवि दिमागों में ऐसी बसी है कि एक सिपाही और पटवारी से पार पाना भी नाकों चने चबाने जैसा हो।
इसके उलट यदि जिले में पुलिस और प्रशासन के सबसे बड़े अफसर एसपी और कलेक्टर दीन-हीन गरीब पीड़ित परिवारों की झोपड़ियों के सामने खड़े होकर यह चिंता करते नजर आएं कि इनका उद्धार कैसे हो, तो तय मानो कि धरती पर संवेदनशीलता से भरकर प्रेम, दया और करुणा का संदेश दसों दिशाओं में फैलने का समय आ गया है। इसकी मिसाल बना मध्यप्रदेश का अलीराजपुर जिला। जिस ‘नौकरशाह’ शब्द के साथ सभी अफसरों को एक तराजू में तौल दिया जाता है, इन दोनों अफसरों की ऐसी संवेदनशीलता देखने पर यह शब्द खुद ही बेमानी साबित होता नजर आ रहा है।
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घटना यह है कि अलीराजपुर जिले में वाहन की टक्कर से बच्ची की मौत के बाद गुस्साई भीड़ ने घेरकर वाहन में आग लगा दी थी, ड्राइवर को पहले तो जमकर पीटा फिर उठाकर जलती गाड़ी में फेंक दिया। उपचार के दौरान ड्राइवर की मौत हो गई। यह घटना शुक्रवार देर शाम की थी।स्थितियां बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण हैं। जिस बच्ची की मौत हुई, उसके माता-पिता दोनों दिव्यांग हैं। उसके छोटे दो भाई-बहिन हैं। तो ड्राइवर मगनसिंह मूल रूप से ग्राम सिंधी का रहने वाला था। गांव में विवाद के कारण वह जामली में अपनी बहिन-बहनोई के घर रह रहा था। परिवार में माता-पिता, तीन बच्चे व पत्नी हैं।
दिल पसीजा तो कलेक्टर-एसपी दोनों पीड़ितों के घर पहुंच गए। दिव्यांग माता-पिता को किन-किन योजनाओं का लाभ मिल सकता है, वह ब्यौरा तैयार किया। और ड्राइवर के परिवार को क्या-क्या लाभ मिल सकता है,वह सब चिंतन-मनन किया। और परिवार की जरूरत के हिसाब से अपनी तरफ से फौरी मदद क्या की जा सकती है, वह भी की। यानि यदि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि संबल योजना में पिछली सरकार ने जिन-जिन का नाम काट दिया था, उन सबकी मदद करेंगे।
तो उनके इन कलेक्टर-एसपी भी मुख्यमंत्री की भावनाओं से सरोकार रखते हैं। यदि शिवराज कहते हैं कि हर गरीब को घर पाने का हक है तो वह चिंता इन कलेक्टर-एसपी की भी है। यदि शिवराज कहते हैं कि गरीबों को हर योजना का लाभ मिलना चाहिए, तो यह चिंता भी कलेक्टर साहब ने की है। मृतक ड्राइवर के बच्चे को हॉस्टल में रखने की व्यवस्था भी इनने की, तो दिव्यांग महिला-पुरूष को शादी करने पर जो लाभ मिलना चाहिए…यह चिंता भी की। इसके अलावा अपनी तरफ से फौरी तौर पर क्या मदद की जा सकती है, वह करने में भी देर नहीं की। मन द्रवित हो जाता है कि ऐसे अफसर हैं और सरकार की भावनाओं के साथ अपनी संवेदनशीलता से कायल होने को मजबूर कर रहे हैं।
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बहुत अच्छा लगा इन अफसरों के मुंह से यह सुनकर, कि कलेक्टर राघवेंद्र सिंह ने यह कहा कि वर्तमान में जनसंपर्क आयुक्त राघवेंद्र सिंह के साथ उन्हें काम करने का अवसर मिला है। और उनसेे मिली प्रेरणा का ही असर है कि उनका संवेदनशील मन पीड़ितो के लिए कुछ कर रहा है। और एसपी मनोज सिंह की प्रेरणा इंदौर डीआईजी चंद्रशेखर सोलंकी हैं, जो हर जरूरतमंद और मजबूर व्यक्ति की मदद के लिए प्रेरित करते हैं। और इन सभी अफसरों की प्रेरणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं। यदि मध्यप्रदेश के सभी जिलों के अफसर करुणा और संवेदनशीलता के इसी प्रकाश के वाहक बन जाएं, तो शायद हर पीड़ित परिवारों के लिए यह मध्यप्रदेश खुशियों का खजाना बन जाएगा। और करुणा का सागर चारों तरफ हिलोरें लेता दिखे। निश्चित तौर पर पुलिस-प्रशासन का यह चेहरा दिल जीतने वाला है।