हजारों वर्ष प्राचीन माता राजराजेश्वरी मंदिर हैं 52वां शक्तिपीठ!

96

(नवरात्रि विशेष)

हजारों वर्ष प्राचीन माता राजराजेश्वरी मंदिर हैं 52वां शक्तिपीठ!

नवरात्रि के 9 दिनों में देश विदेश के लाखों श्रद्धालु करते हैं दर्शन!

शिवपाल सिंह की रिपोर्ट 

शाजापुर। स्कंद पुराण में कथा है कि दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में महादेव को आमंत्रित नहीं करने से रुष्ट होकर यज्ञ में पहुंची माता सती ने महादेव का अपमान होते देख यज्ञ कुंड में प्रवेश कर लिया था। बाद में पहुंचे महादेव को वीरभद्रजी ने माता सती की देह यज्ञ कुंड से निकालकर दी थी। इस देह को लेकर निकले महादेव के क्रोध को कम करने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के अंग को भंग कर दिया था। माता की देह के अंग जहां भी गिरे वहां शक्तिपीठ के रूप में माता की आराधना होती हैं। ऐसे ही माता का दाहिना चरण माता मंदिर शाजापुर पर गिरा था। इस चरण का निशान अभी-भी यहां हैं। जिसका पूजन किया जाता हैं। हजारों वर्ष प्राचीन माता राजराजेश्वरी के इस मंदिर में दर्शनार्थ पहुंचे शंकराचार्य स्व. स्वरुपानंदजी ने मंदिर की स्थिति को देखने के पश्चात स्कंद पुराण में उल्लेख शक्तिपीठ के आधार पर इसे 52वां गुप्त शक्तिपीठ बताते हुए यहां पर मां त्रिपुर सुंदरी की स्थापना की थी। शहरी हाइवे के समीप स्थित माता राजराजेश्वरी मंदिर के पुजारी पं. आशीष नागर ने बताया कि माता का मंदिर अद्भुत चमत्कारी है। पं. नागर के दादाजी मंदिर के पुजारी स्व. पं. हरिशंकर नागर ने बताया था कि वर्ष 1982 से लेकर 1992 के बीच मां राजराजेश्वरी के दरबार में देश के चारो पीठ के शंकराचार्यों ने दर्शन करने के बाद इसे 52वां गुप्त शक्तिपीठ बताया था। वर्ष 1991 में यहां पहुंचे शंकराचार्य स्वरूपानंदजी ने स्कंद पुराण के अनुसार मंदिर की स्थिति को देखते हुए इसको शक्तिपीठ कहा था। मंदिर के पीछे से निकली चीलर नदी मंदिर के ठीक पीछे चंद्राकार (चंद्रभागा) हैं। ऐसा स्थान कोणार्क के बाद शाजापुर में ही हैं। वहीं यहां पर माता के दाहिनें चरण का निशान हैं। इसके चलते यहां पर 10 दिन रुककर शंकराचार्य स्वरूपानंदजी ने मां राजराजेश्वरी के मंदिर के समीप मां त्रिपुर सुंदरी की स्थापना की थी। साथ ही मां राजराजेश्वरी के मंदिर में छत पर बने हुए श्रीयंत्र को माता के समक्ष स्थापित किया था। माता मंदिर में विगत 56 सालों से अखंड ज्योति आज भी लगातार जल रही हैं।

WhatsApp Image 2025 04 05 at 14.54.01

राजा भोज के कार्यकाल में हुआ था मंदिर का जीर्णोद्धार!

मंदिर के पुजारी पंडित आशीष नागर ने बताया कि मां राजेश्वरी मंदिर का जीर्णोद्धार राजाभोज के कार्यकाल में सन 1060 में हुआ था। वहीं मंदिर के आगे सभा मंडप का निर्माण सन् 1734 में हुआ था। पं. नागर ने बताया कि पूर्व में माता के गर्भगृह के ठीक बाहर के स्थान पर शनिदेव मानकर पूजन किया जाता था। 1968 में उनके दादाजी पं. हरिशंकर नागर को स्वप्न आया था कि यहां शिव परिवार की प्रतिमा हैं जिसे बाहर निकाला जाए। सुबह जब पं. हरिशंकर नागर मंदिर में आरती करके निकले तो देखा कि जहां शनिदेव मानकर पूजन किया जाता था वहां पर एक चूहा बिल बनाकर बाहर निकला। जब बिल के अंदर झांककर देखा तो यहां पर महादेव की प्रतिमा दिखाई दी। इसके चलते यहां खुदाई करवाने पर माता सति को उठाए हुए महादेव की प्रतिमा के साथ संपूर्ण शिव परिवार और त्रिशुल, चिमटा आदि निकला था। जिसकी यहां पर विधिवत स्थापना की गई।

तत्कालीन सिविल सर्जन और स्टॉफ ने करवाई थी सिंह प्रतिमा की स्थापना!

पं. आशीष नागर ने बताया कि माता के गर्भगृह के बाहर सभा मंडप में माता की प्रतिमा के ठीक सामने हवन कुंड था। वर्ष 1970 में उनके दादाजी पं. हरिशंकर नागर मंदिर में पूजन कर रहे थे तभी हवनकुंड के स्थान पर सिंह आकर बैठा दिखाई दिया था। कुछ देर बाद सिंह यहां से निकलकर मंदिर के समीप स्थित आगरा-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग से अपने स्टॉफ के साथ गुजर रहे तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर जोशी के चार पहिया वाहन के सामने आकर खड़ा हो गया था। ऐसे में तत्कालीन सिविल सर्जन सहित समस्त स्टॉफ ने माता की आराधना की तब सिंह यहां से चला गया। इसके बाद सिविल सर्जन और पूरे स्टॉफ ने एक-एक माह का वेतन देकर मंदिर के हवन कुंड के स्थान पर सिंह प्रतिमा की स्थापना कराई थी।

भक्तों की आस्था का प्रमुख स्थान, माता पूरी करती है मनोकामना!

मंदिर पुजारी पं. नागर ने बताया कि रोडवाल ब्राह्मण समाज मां राजराजेश्वरी का कुलदेवी के रूप में पूजन करता हैं। इसलिए माता राजराजेश्वरी को रोड़ेश्वरी माता भी कहा जाता हैं। मां राजराजेश्वरी के मंदिर में देश-विदेश से भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। विशेष बात यह है कि पूर्ण श्रद्धा के साथ मां से मांगी हुई प्रत्येक मनोकामना को माता पूर्ण करती हैं। वैसे तो पूरे वर्ष यहां माता के भक्त दर्शन और पूजन के लिए पहुंचते हैं, लेकिन चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि के 9 दिनों में यहां लाखों भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस बार भी चैत्र नवरात्रि के इन दिनों में मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही हैं।