ठाकरे के अनुशासन को दर्शातीं मंच पर तीन कुर्सियां …

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जब राजनैतिक कार्यक्रम होता है तो मंच पर दर्जनों दिग्गजों के लिए दर्जनों कुर्सियां सुशोभित होती हैं। कई दफा तो देखा जाता है कि मंच दिग्गजों के बोझ से धाराशाई हो जाता है। खबर बनती है कि फलां-फलां दिग्गज मंच टूटने से गिरे, पर घायल होने से बच गए। पर 22 अगस्त को राजधानी में आयोजित कुशाभाऊ ठाकरे जन्म शताब्दी समारोह वैचारिक व्याख्यानमाला के तहत राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर गृह मंत्री अमित शाह के वैचारिक प्रबोधन में मंच पर सिर्फ तीन कुर्सियां नजर आईं, तो मन सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रहा था। मंच पर मौजूद थे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और प्रमुख वक्ता देश के गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह। शाह के साथ कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे प्रदेश के गृह मंत्री नरोतम मिश्रा, नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह को मंच के रास्ते नीचे उतरकर मंच के सामने आसीन होना पड़ा। प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री, स्कूल शिक्षा मंत्री, कृषि मंत्री, खेल एवं युवा कल्याण मंत्री सहित तमाम दिग्गज हस्तियां मंच के नीचे विराजमान थीं। मंच की यह तीन कुर्सियां मन को सुकून देने वाली थीं। कुशाभाऊ ठाकरे जन्म शताब्दी वर्ष के कार्यक्रम का अनुशासन इसमें साफ नजर आ रहा था।

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3 मई को इंदौर में जब कुशाभाऊ ठाकरे जन्म शताब्दी व्याख्यानमाला का आयोजन हुआ था, तो वहां भी मंच पर तीन ही कुर्सियां थीं। और वहां वक्ता थे केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और उनके साथ मंच पर आसीन थीं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन व ठाकरे जन्म शताब्दी समारोह के सचिव हेमंत खंडेलवाल। तो मंच के सामने कैलाश विजयवर्गीय सहित उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव, तमाम विधायक और दिग्गज और प्रबुद्धजन मंच के सामने मौजूद थे।

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कुछ इसी तरह का नजारा व्याख्यानमाला के अंतर्गत आयोजित अन्य व्याख्यान के दौरान भी रहा। कार्यक्रम की इस रूपरेखा की संरचना के पीछे व्याख्यानमाला के प्रभारी प्रदीप त्रिपाठी की सोच है। जिनका मूल उद्देश्य गैर राजनैतिक कार्यक्रम की गरिमा और कुशाभाऊ ठाकरे की अनुशासनप्रियता को बनाए रखना है। यही वजह है कि कार्यक्रम में सामान्य भीड़ न जुटाकर प्रबुद्धजनों को आमंत्रित किया जा रहा है। इसमें शिक्षाविद, कुलपति, कुलाधिपति, शहर के प्रतिष्ठित सम्मानित चेहरे, चयनित पत्रकार, स्तंभकार और प्रबुद्धजन। पार्टी पदाधिकारी भले ही उपस्थित रहते हैं, लेकिन गरिमा और पूर्ण अनुशासन के साथ। स्वागत की परंपरा गरिमामयी,लेकिन सीमित समय और सीमित लोगों द्वारा। स्वागत और अध्यक्षीय भाषण की औपचारिकता, लेकिन कम समय में गागर में सागर भरने जैसी। आभार भी बहुत कम समय में सारयुक्त। जैसा खुद शाह के कार्यक्रम में प्रदीप त्रिपाठी ने आभार जताया था। निश्चित तौर से ठाकरे के यह जन्म शताब्दी समारोह के कार्यक्रम अहसास करा रहे हैं कि विशुद्ध गरिमामय आयोजन कैसे होते हैं? दल के सत्ता में होने के बाद भी दिग्गजों को कार्यक्रम की गरिमा के अनुरूप अनुशासनबद्ध हो मंच के सामने बैठकर संबोधन को पूरे गौर से सुनने की व्यवस्था से समन्वय बनाना ही पड़ता है। और पितृ पुरुष के समारोह में कोई बीच में उठकर इधर-उधर भी जाता नहीं दिखाई देता। निश्चित तौर से ऐसे कार्यक्रम राजनेताओं को और भाजपा जैसी कैडर बेस पार्टी के सत्ता के रंग में सराबोर हो चुके नेताओं को आइना तो दिखाते ही हैं और यह अहसास भी कराते हैं कि खुद कुशाभाऊ ठाकरे भी मर्यादा, गरिमा, विनम्रता, सरलता, सहजता और अनुशासन के प्रतीक रहे हैं। यही सीख उनकी स्मृति में आयोजित कार्यक्रम भी दे रहे हैं। हमेशा जेहन में रहेंगी मंच पर यह तीन कुर्सियां…जो ठाकरे की अनुशासनप्रियता का पाठ पढ़ाती नजर आती है…।