Tikamgarh Collector’s Speaking Orders: 1008 श्री बिहारी जू मंदिर की भूमि की अफरा तफरी को रोका, पुजारी को भूमि बेचने या बंधक रखने का अधिकार नहीं, कॉलोनाइजर पर FIR के आदेश

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Tikamgarh Collector’s Speaking Orders: 1008 श्री बिहारी जू मंदिर की भूमि की अफरा तफरी को रोका, पुजारी को भूमि बेचने या बंधक रखने का अधिकार नहीं, कॉलोनाइजर पर FIR के आदेश

Tikamgarh: Historical Decision of Tikamgarh Collector: टीकमगढ़ के कलेक्टर विवेक श्रोत्रिय ने शहर की आस्था के केंद्र बहुत पुराने मंदिर 1008 श्री बिहारी जू मंदिर की भूमि की अफरा तफरी को लेकर बड़ा और ऐतिहासिक फैसला किया है। अपने स्पीकिंग आदेश में कलेक्टर ने कहा कि पुजारी को भूमि बेचने या बंधक रखने का कोई अधिकार नहीं है।

टीकमगढ़ कलेक्टर विवेक श्रोत्रिय द्वारा दिनांक 23 मई 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय दिया गया है। यह निर्णय टीकमगढ़ शहर में स्थित श्री 1008 श्री बिहारी जू मंदिर की भूमि की अफरा तफरी के संबंध में दिया गया है।

यह प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय में स्वदेश रावत द्वारा प्रस्तुत एक याचिका में पारित आदेश, जिसमें याचिका कर्ता को यह निर्देश दिया गया था कि वह याचिका से संबंधित आवेदन पत्र कलेक्टर टीकमगढ़ के न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करें और कलेक्टर टीकमगढ़ 30 दिन में एक स्पीकिंग आदेश पारित करें।

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याचिका आवेदन संवत 2001 अर्थात सन 1944 के खसरे की प्रविष्टि के अनुसार टीकमगढ़ खास की भूमि सर्वे नंबर 768 व 769 रकबा क्रमशः 2.06 एकड़ एवं 0.31 एकड़ भूमि तत्कालीन ओरछा राज्य द्वारा मंदिर श्री बिहारी जू के प्रबंधन के लिए अन्य भूमियों के साथ राजस्व अभिलेख में दर्ज हुई थी।

मंदिर के तत्सय में पुजारी पंडित वृंदावन, परमेश्वरी दयाल और हर वल्लभ तनय नवल किशोर ब्राह्मण निवासी टीकमगढ़ नियुक्त थे ।

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उसके पश्चात उनकी अगली पीढ़ी की संताने जिनके द्वारा संवत 2015 अर्थात सन 1959 के राजस्व अभिलेख में बिना किसी सक्षम आदेश के *मंदिर श्री 1008 श्री बिहारी जू मंदिर पुजारी* तक की प्रविष्टि विलोपित करवा दी और पुजारी के वारिसान का नाम खसरे में भूस्वामी की हैसियत से दर्ज हो गया। यही प्रविष्टि वर्ष 2023 तक खसरों में दर्ज रही। आसपास के सभी नागरिक यह समझते थे कि यह भूमि मंदिर की है और इसीलिए वर्ष 2023 तक इन भूमियों पर किसी भी प्रकार का क्रय विक्रय आदि नहीं हुआ। किंतु वर्ष 2023 में उक्त भूमियों का विक्रय पुजारी के वारिसान द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को कर दिया गया जिसने उक्त भूमि पर अवैध कॉलोनी बनाने की शुरुआत कर प्लाट विक्रय करना शुरू कर दिया।

इसकी शिकायत सुदेश रावत द्वारा उच्च न्यायालय में रिट याचिका के माध्यम से की गई थी जो वहां से निराकरण होकर कलेक्टर टीकमगढ़ के न्यायालय में प्राप्त हुई थी जिसमें यह निर्देश दिए गए थे कि कलेक्टर विस्तृत स्पीकिंग ऑर्डर पारित करें।

कलेक्टर द्वारा अपने आदेश में उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय के कुछ न्याय दृष्टांतों का उल्लेख करते हुए विस्तृत स्पीकिंग आदेश पारित किया है। इस आदेश में यह स्पष्ट लेख किया है कि जब भूस्वामी के रूप में मंदिर अथवा किसी मूर्ति का नाम दर्ज है तो माननीय उच्च न्यायालयों के निर्णय से यह स्पष्ट है कि मंदिर का पुजारी मोरूसी कृषक नहीं होता। सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने विभिन्न आदेशों में मंदिर को अबोध बालक या नाबालिक व्यक्ति की श्रेणी में माना है इसलिए पुजारी शासकीय पट्टेदार या किराएदार के रूप में भी भूमि का उपयोग नहीं कर सकता बल्कि वह औकाफ विभाग की ओर से भूमि का प्रबंधन करता है क्योंकि पुजारी मोरुसी कृषक के अधिकार नहीं रखता तो उसे भूमि बेचने या बंधक रखने का अधिकार भी नहीं है।

इस प्रकरण में सर्वप्रथम दोषपूर्ण रूप से मूर्ति श्री बिहारी जी एवं पुजारी शब्द की प्रविष्टि को हटाकर पुजारी के नाम भूमि अंतरित की गई है। उसके पश्चात पुजारी के फौती नामांतरण में उनके उत्तराधिकारियों के नाम अंकित होते चले गए। प्रबंधन की दृष्टि से नियुक्त किए गए नवीन पुजारी का नाम खसरे के कालम 12 में दर्ज किया जा सकता है किंतु उनको भूस्वामी नहीं बनाया जा सकता। इसलिए मंदिर की भूमियों को विक्रय नहीं किया जा सकता। इस प्रकार मंदिर की इन बेशकीमती भूमियों को मंदिर के नाम पुनः दर्ज करने का आदेश देते हुए तहसीलदार को उक्त भूमियों का कब्जा प्राप्त करने का आदेश दिया गया है। कॉलोनाइजर पर FIR दर्ज कराई जाने का आदेश दिया है।

यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि संपूर्ण मध्य प्रदेश के अन्य जिलों में भी इसी प्रकार की जांच की आवश्यकता है। जिसमें यह देखा जाना चाहिए कि शासकीय भूमियों विशेष कर मंदिर की भूमियों की जो अफरा तफरी की गई है, उन पर रोक लगाई जाए और गलत तरीके से हुए भूमि के नामांतरण को निरस्त कर मन्दिर की भूमि का कब्जा प्राप्त कर लिया जाय।