समय तू धीरे-धीरे चल…

495

समय तू धीरे-धीरे चल…

विधानसभा चुनाव के नजदीक आते-आते टिकट पाने और चुनाव लड़कर विधायक बनने का लक्ष्य हासिल करने की मंशा से हर दिन नेताओं का दल बदलने का सिलसिला तेज हो गया है। पिछले चुनावों की तुलना में 2023 में दल बदलने की गति बीस ही नजर आ रही है। ऐसा लग रहा है जैसे नेताओं को समझ आ गया है कि यदि टिकट नहीं मिला तो समय‌ दौड़ लगाकर उन्हें पीछे धकेल देगा। जो पहली बार टिकट के दावेदार हैं, वह तो तेज चाल से दूसरे दल की देहलीज में कदम रख ही रहे हैं। जो नेता विधायक रह चुके हैं, वह भी दल बदलने में खास रुचि दिखा रहे हैं। और नेताओं को उसी दल की बुराईयां गिनाने में पल भर का समय नहीं लगता, जिस दल में उन्होंने बरसों गुजार दिए हों। आज का दौर ठीक उस समय के उलट हो गया है, जब नेता निष्ठा की खातिर अपना पूरा जीवन एक ही दल में गुजार देते थे। पद मिले या कभी भी न मिले। आज ऐसे पुराने नेताओं की भी लंबी सूची है। हालांकि दल बदलने की प्रक्रिया चलती रही है, पर गति अब कुछ ज्यादा तेज नजर आ रही है। मध्यप्रदेश विधानसभा में पंद्रहवीं विधानसभा भी दल बदल के लिए खास तौर पर जानी जाएगी।
IMG 20230822 WA0776
दलबदल के कुछ ताजा उदाहरण सामने हैं। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। तो रीवा जिले से कांग्रेस को झटका देते हुए अभय मिश्रा भाजपा में वापसी कर लिए। अभय मिश्रा की पत्नी नीलम मिश्रा भी उनके साथ भाजपा में शामिल हो गईं। हाल ही में उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व मध्यप्रदेश के पूर्व राज्यपाल स्व. राम नरेश यादव की बहू रोशनी यादव ने भाजपा छोड़ कांग्रेस ज्वाइन कर ली। भोपाल में कमलनाथ के सामने उन्होंने सदस्यता ली। रोशनी ने 21 अगस्त को भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और 22 अगस्त को कांग्रेस में शामिल हो गईं। वे निवाड़ी जिला पंचायत सदस्य हैं और निवाड़ी भाजपा की जिला उपाध्यक्ष थीं। वहीं सुरखी के कद्दावर भाजपा नेता पंडित नीरज शर्मा ने भाजपा छोड़ी, 24 को कांग्रेस ज्वाइन करेंगे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से जुड़े पंडित नीरज शर्मा की पहचान इलाके में एक दबंग और मंत्री गोविंद राजपूत के धुर विरोधी नेता के तौर पर होती है।तो भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय में 22 अगस्त को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद विष्णुदत्त शर्मा एवं प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद के समक्ष कांग्रेस की नीतियों एवं स्थानीय नेतृत्व से नाराज होकर देवसर जनपद अध्यक्ष प्रणव पाठक ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।
IMG 20230822 WA0725
मतलब साफ है कि अपने-अपने हितों को साधने में अब दलीय निष्ठा और पार्टी विचारधारा के प्रति समर्पण जैसी बातें अब पिछड़ेपन का पर्याय बन गई हैं। जब तक जिस दल में हितों की पूर्ति हो रही है और उम्मीदों के पूरा होने की गुंजाइश है, तब तक वह दल और दल के नेता दिल में बसे हैं। जब उम्मीदों और महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति होने की गुंजाइश खत्म होती नजर आई, तब दिल ने एक दल से नाता तोड़ दूसरे दल से प्रीत कर ली। अब दल भी इसीलिए जाने वाले का दु:ख नहीं मनाते और जो आता है उसका स्वागत करने दरवाजे हमेशा खुले रखते हैं। ऐसी स्थिति में 1986 में आई फिल्म कर्म का एक गीत याद आता है। इसके संगीतकार राहुलदेव बर्मन थे। गीतकार राजकवि इंद्रजीत सिंह तुलसी थे। और गीत के बोल हैं –
समय तू धीरे-धीरे चल
समय तू धीरे धीरे चल
सारी दुनिया छोड़ के पीछे
आगे जाउँ निकल
मैं तो आगे जाउँ निकल
पल पल
पल पल…
इसके अगले स्टैंजा की अंतिम दो पंक्तियां हैं – आज का दिन मेरी मुट्ठी में है, किसने देखा कल, अरे किसने देखा कल,पल पल-पल पल।
इस गीत की दो पंक्तियां दलों के प्रति प्रीत पर लागू नहीं हो पाती हैं। और वह हैं –
धरती परवत हिल सकते है
अपनी प्रीत अटल
देखो अपनी प्रीत अटल…।
तो अब दलों के प्रति प्रीत जैसा भाव अभावों के दौर से गुजर रहा है। पर जिस तरह से अपने पुराने दलों से नाता तोड़कर नेतागण नए दलों से प्रीत बढ़ाते नजर आ रहे हैं, ऐसे में लग रहा है कि वास्तव में समय को अपनी गति धीमी कर लेनी चाहिए। ताकि वह सारे चेहरे बेनकाब हो जाएं, जिन्होंने मुखौटे लगा रखे हैं। और लग तो ऐसा रहा है कि आगामी समय में दल भी टर्म्स एंड कंडीशन एप्लाई कर देंगे और बोंड भरवाने लगेंगे कि यदि दल में आने वाला नेता पांच साल से पहले दल छोड़कर गया तो एक करोड़ का हर्जाना देना पड़ेगा। तो राजनीति का यह दौर यही दोहरा रहा है कि समय तू धीरे धीरे चल…।