तिरंगा (लघुकथा)

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तिरंगा (लघुकथा)

घाटी क्षेत्र में गोलीबारी का दौर अब थम गया था।लम्बे अरसे के बाद चारों तरफ रौनक लौट रही है।
सुबह से ही चौराहे पर रंगोली बन रही है।कुछ युवा मैदान को फूलों से सजा रहे हैं। कुछ वन्दनवार लगा रहे हैं। कुछ युवा मधुर संगीत को गुनगुना रहे हैं। मिठाई थाल में सजाई जा रही है।पूरा मोहल्ला आनंद से सराबोर हो रहा है। दीनू काका,रमेश भाई,बबन चाचा,रहमान मियाँ सबको दिशा-निर्देश दे रहे हैं।कुछ नन्हे-मुन्ने बालक- बालिका नृत्य करने में व्यस्त है। द्वार -द्वार आज सजा है।इस आनन्द के वातावरण में मासूम गोलू पूछता है-‘आज कोई त्यौहार है क्या?,पहले तो ऐसा उत्सव हुआ नहीं!, इन घाटियों की वादियों में क्या खास है आज?।”

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प्रसन्न होकर दीनू काका ने कहा-“हाँ ,आज अपना राष्ट्रीय त्यौहार स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त है। गर्वोन्नत गगन की ओर देखो तिरंगा भी आज आजाद भारत में लहरा रहा हैं।”

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डॉ. प्रणव देवेंद्र श्रोत्रिय
शिक्षाविद,साहित्यका
इंदौर ,(म.प्र.)
9424885189