आज राजेंद्र कुमार और नसीर का दिन है…

325

आज राजेंद्र कुमार और नसीर का दिन है…

सिनेमा जगत के दो दिग्गज कलाकार को याद करने के लिए 20 जुलाई की तारीख बहुत खास है। राजेंद्र कुमार अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन चाहने वालों के दिलों में जिंदा हैं। और नसीरुद्दीन शाह की एक्टिंग के मुरीद तो सभी हैं ही। 20 जुलाई को इन दोनों महान कलाकारों का जन्म हुआ था। हालांकि जन्म के बीच फासला 23 साल का था। राजेंद्र कुमार का जन्म 1927 में हुआ था, तो नसीरुद्दीन शाह का जन्म 1950 में हुआ। 1950 में अभिनेता बतौर राजेंद्र कुमार की पहली फिल्म रिलीज हुई थी।
राजेन्द्र कुमार ( 20 जुलाई 1927 – 12 जुलाई 1999) 60 तथा 70 के दशकों में बॉलीवुड के सफलतम अभिनेताओं में से एक थे। 80 के दशक में वह कई फ़िल्मों के निर्माता थे जिनमें उनके पुत्र कुमार गौरव ने अभिनय किया है। उनका जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त के सियालकोट शहर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। राजेन्द्र कुमार ने अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत 1950 की फ़िल्म जोगन से की जिसमें उनको दिलीप कुमार और नर्गिस के साथ अभिनय करने का अवसर मिला। उनको 1957 में बनी मदर इंडिया से ख्याति प्राप्त हुयी जिसमें उन्होंने नर्गिस के बेटे की भूमिका अदा की। 1959 की फ़िल्म गूँज उठी शहनाई की सफलता के बाद उन्होंने बतौर मुख्य अभिनेता नाम कमाया। 60 के दशक में उन्होंने काफ़ी नाम कमाया और कई दफ़ा ऐसा भी हुआ कि उनकी 6-7 फ़िल्में एक साथ सिल्वर जुबली हफ्ते में होती थीं।
इसी कारण से उनका नाम ‘जुबली कुमार’ पड़ गया। अपने फ़िल्मी जीवन में राजेन्द्र कुमार ने कई सफल फ़िल्में दीं जैसे धूल का फूल, दिल एक मंदिर, मेरे महबूब, संगम, आरज़ू , प्यार का सागर, गहरा दाग़, सूरज और तलाश। उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिए फ़िल्म दिल एक मंदिर, आई मिलन की बेला और आरज़ू के लिए नामांकित किया गया और सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता की श्रेणी में संगम के लिए। 1972 से उनको राजेश खन्ना से स्पर्धा का सामना करना पड़ा। इसी दौरान नूतन के साथ उन्होंने फ़िल्म साजन बिना सुहागन में काम किया। 70 के दशक के आख़िर से 80 के दशक तक उन्होंने चरित्र भूमिका की ओर रुख़ किया। उन्होंने कई पंजाबी फ़िल्मों में भी काम किया जैसे तेरी मेरी एक जिन्दड़ी। 1981 में उन्होंने अपने पुत्र कुमार गौरव को फ़िल्मों में लव स्टोरी नामक फ़िल्म से प्रवेश करवाया। इस फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक होने के साथ-साथ उन्होंने इस फ़िल्म में कुमार गौरव के पिता की भूमिका भी अदा की। यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस में बहुत सफल सिद्ध हुयी। उन्होंने अपने पुत्र को लेकर कई और फ़िल्में भी निर्मित कीं। 1986 में उन्होंने अपने पुत्र और संजय दत्त को लेकर नाम फ़िल्म बनाई जो फिर से बॉक्स ऑफ़िस में धमाल करने में कामयाब हुयी। उनका आख़िरी अभिनय अर्थ फ़िल्म में था।
नसीरुद्दीन शाह का जन्म 20 जुलाई 1950 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में हुआ था। वह हर रोल के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। लेकिन एक समय था जब नसीर को दो रोल करने की इच्छा थी जो उस समय उन्हें नहीं मिले। लेकिन बाद ‘मिर्जा गालिब’, दूरदर्शन धारावाहिक में उन्हें दो रोल मिले जिसमें उन्होंने ग़ालिब का वास्तविक चित्र उभारने की कोशिश की। साल 1982 में ‘गांधी’ के रिलीज होने के अट्ठारह साल बाद कमल हासन ने ‘हे राम’ बनाई, जिसने नसीर साहब की गांधी बनने की तमन्ना को भी पूरा कर दिया। सधी हुई अदाकरी और बेजोड़ अंदाज से उन्होंने गांधी के किरदार में जान डाल दी।बेजोड़ एक्टिंग और गजब की क्षमता से हर तरह के किरदार निभाने वाले नसीर ने अपनी छाप नकारात्मक भूमिकाओं में भी छोड़ी।
समानांतर सिनेमा का ये हीरो कमर्शियल फ़िल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर भी हमेशा प्रभावी रहा।समानांतर सिनेमा के इस सितारे ने स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी जैसे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फ़िल्मों को एक नई पहचान दी। ‘निशान्त’ जैसी सेंसेटिव फ़िल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने ‘आक्रोश’, ‘स्पर्श’, ‘मिर्च मसाला’, ‘भवनी भवाई’, ‘अर्धसत्य’, ‘मंडी’ और ‘चक्र’ जैसी फ़िल्मों में अभिनय की नई मिसाल पेश कर दी। नसीरूद्दीन शाह ने अपने कॅरियर की शुरुआत फ़िल्म निशांत से की थी जिसमें उनके साथ स्मिता पाटिल और शबाना आजमी जैसी अभिनेत्रियां थीं।इस के बाद नसीरुद्दीन शाह ने आक्रोश, ‘स्पर्श’, ‘मिर्च मसाला’, ‘अलबर्ट पिंटों को गुस्सा क्यों आता है’, ‘मंडी’, ‘मोहन जोशी हाज़िर हो’, ‘अर्द्ध सत्य’, ‘कथा’ आदि कई आर्ट फ़िल्में कीं।आर्ट फ़िल्मों के साथ वह व्यापारिक फ़िल्मों में भी सक्रिय रहे। ‘मासूम’, ‘कर्मा’, ‘इजाज़त’, ‘जलवा’, ‘हीरो हीरालाल’, ‘गुलामी’, ‘त्रिदेव’, ‘विश्वात्मा’, ‘मोहरा’, सरफ़रोश जैसी व्यापारिक फ़िल्में कर उन्होंने साबित कर दिया कि वह सिर्फ आर्ट ही नहीं कॉमर्शियल फ़िल्में भी कर सकते हैं। नसीरूद्दीन शाह के फ़िल्मी सफर में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने मसाला हिन्दी फ़िल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कोई हिचक नहीं दिखायी। वक्त के साथ नसीरूद्दीन शाह ने फ़िल्मों के चयन में पुन: सतर्कता बरतनी शुरू कर दी। बाद में वे कम मगर, अच्छी फ़िल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे। नसीरूद्दीन शाह ने एक फ़िल्म का निर्देशन भी किया है। हाल ही में वह “इश्किया”, “राजनीति” और “जिंदगी ना मिलेगी दुबारा” जैसी फ़िल्मों में अपने अभिनय का जादू बिखेर चुके हैं।
दोनों ही अभिनेता राजेंद्र कुमार और नसीरुद्दीन शाह बेजोड़ कलाकार हैं। दोनों ने भारतीय सिनेमा को अपने अभिनय और निर्देशन से समृद्ध किया है। दोनों कलाकार देश-दुनिया में कलाप्रेमियों के जेहन में हमेशा जिंदा रहेंगे।