आज भोपाल के लाल शंकर दयाल का दिन है…

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आज भोपाल के लाल शंकर दयाल का दिन है…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

21वीं सदी में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भले ही अपना कार्यकाल पूरा न कर पाए हों, लेकिन 20वीं सदी में लंबा दौर रहा है जब उपराष्ट्रपति अपना कार्यकाल तो पूरा करते ही थे बल्कि वह राष्ट्रपति की कुर्सी के स्वाभाविक दावेदार भी माने जाते थे। दोनों ही पदों पर रहे भोपाल में जन्मे डॉ. शंकर दयाल शर्मा भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। भोपाल के मुख्यमंत्री से लेकर भारत के राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचने वाले डॉ. शंकर दयाल शर्मा की कद्र पक्ष और विपक्ष सभी राजनीतिक दलों में समान रूप से थी। आज भोपाल के इस लाल शंकर दयाल का ही दिन है क्योंकि 19 अगस्त 1918 को भोपाल में ही उनका जन्म हुआ था। शंकर दयाल शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 को भोपाल में, जो उस समय भोपाल रियासत की राजधानी थी , एक हिंदू गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

भोपाल में जन्मे शर्मा ने आगरा , इलाहाबाद और लखनऊ में अध्ययन किया और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से संवैधानिक कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। वे लिंकन इन से बार-एट-लॉ और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में ब्रैंडिस फ़ेलो थे। 1948-49 के दौरान, शर्मा भोपाल राज्य के भारत में विलय के आंदोलन के नेताओं में से एक थे, जिसके लिए उन्होंने आठ महीने की कैद भी काटी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सदस्य , शर्मा भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री (1952-56) थे और मध्य प्रदेश सरकार में कई विभागों को संभालते हुए कैबिनेट मंत्री (1956-1971) के रूप में कार्य किया। शर्मा भोपाल राज्य कांग्रेस कमेटी (1950-52), मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी (1966-68) और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (1972-74) के अध्यक्ष थे। उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अधीन केंद्रीय संचार मंत्री (1974-77) के रूप में कार्य किया। दो बार लोकसभा के लिए चुने गए, शर्मा ने 1987 में भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में निर्विरोध चुने जाने से पहले आंध्र प्रदेश (1984-85), पंजाब (1985-86) और महाराष्ट्र (1986-87) के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। शर्मा 1992 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए पीवी नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में वे मुखर रहे, उन्होंने अपनी सरकार को राज्यपाल को बर्खास्त करने पर मजबूर किया। बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और चुनाव से ठीक पहले उन्हें सौंपे गए अध्यादेशों पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। संसद में सबसे बड़ी पार्टी का नेता होने के आधार पर अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की व्यापक आलोचना हुई, खासकर इसलिए क्योंकि वाजपेयी को विश्वास मत का सामना किए बिना केवल तेरह दिनों में इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। शर्मा ने एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने उनकी उम्मीदवारी को समर्थन का आश्वासन दिया, लेकिन दोनों ही सरकारें एक साल से ज़्यादा नहीं चलीं। शर्मा ने दूसरा कार्यकाल नहीं लेने का फैसला किया और के.आर. नारायणन उनके बाद राष्ट्रपति बने। शर्मा का 1999 में निधन हो गया और उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार दिया गया । उनकी समाधि दिल्ली स्थित कर्मभूमि में स्थित है।

यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि शंकर दयाल शर्मा जैसे राजनेता अब वर्तमान राजनीति में नजर नहीं आते। शर्मा ने अपने विवेक से और संविधान की मर्यादा रखते हुए वह सभी फैसले लिए जो जरूरी थे। अटल बिहारी वाजपेई को प्रधानमंत्री पद के लिए आमंत्रित करना, शायद उसे समय कांग्रेस और उसके समर्थक दलों को रास नहीं आया था। पर डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने इसकी कतई फिक्र नहीं की। तो उन्होंने दूसरी बार राष्ट्रपति पद पर न रहने की इच्छा भी जताई थी। बाकई डॉ शंकर दयाल शर्मा होना आसान नहीं है। भोपाल के इस लाल शंकर दयाल पर सभी मध्यप्रदेशवासियों को गर्व था, है और रहेगा…।