आज लौह पुरुष और लौह महिला का दिन है…

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जन्म और मृत्यु दो अहम पड़ाव है भूलोक की यात्रा के। 31 अक्टूबर की तारीख देश की दो महान शख्सियत की याद दिलाता है, जिन्हें लौह पुरुष (आयरन मैन) और लौह महिला (आयरन लेडी) के नाम से जाना जाता है। एक राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होते हुए भी देश का पहला प्रधानमंत्री न बन पाने के लिए भी खास तौर पर जाना जाता है, तो दूसरी शख्सियत देश की प्रधानमंत्री बनकर अपनी कार्यशैली, फैसलों और राष्ट्र निर्माण में योगदान के लिए जानी जाती है। कागजी तौर पर राष्ट्र की दोनों ही शख्सियत राजनैतिक दल कांग्रेस के हिस्से में दर्ज हैं, लेकिन लौह पुरुष के प्रति राजनैतिक दल भाजपा का भी विशेष झुकाव है। स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण इसको साबित करने के लिए काफी है। वहीं भाजपा लौह महिला को आपातकाल और प्रेस सेंसरशिप के बतौर ज्यादा याद करती है। जन्म और मृत्यु शब्द इसलिए अंकित हैं, क्योंकि 31 अक्टूबर को लौह पुरुष का जन्म हुआ था और लौह महिला की शहादत। वैसे दोनों ही शख्सियत का जन्म परतंत्र भारत में हुआ था और दोनों की मृत्यु स्वतंत्र और विभाजित भारत में हुई थी। क्योंकि गुलाम एक ही देश भारत था, तो आजादी दो देशों भारत और पाकिस्तान को मिली थी। लौह पुरुष को इसलिए खास तौर पर जाना जाता है, क्योंकि आजादी के बाद देश के गृहमंत्री के नाते रियासतों के विलीनीकरण का दुर्गम कार्य राष्ट्र निर्माण में इनकी महत्वपूर्ण देन थी। तो लौह महिला को इसलिए खास तौर पर जाना जाता है कि भारत के प्रधानमंत्री के रूप में पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग देश बनाने और पाकिस्तान को बड़ी शिकस्त देकर दुनिया में देश का डंका बजाने में इनकी ही भूमिका थी। तो 31 अक्टूबर का दिन लौह पुरुष और लौह महिला का ही दिन है।

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वल्लभभाई झावेरभाई पटेल (31 अक्टूबर 1875-15 दिसम्बर 1950), जो सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय थे, एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे एक अधिवक्ता और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और भारतीय गणराज्य के संस्थापकों सदस्य थे। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और एक एकीकृत, स्वतंत्र राष्ट्र में एकीकरण का कार्य संपन्न किया। भारत और अन्य जगहों पर, उन्हें अक्सर हिंदी, उर्दू और फ़ारसी में सरदार कहा जाता था, जिसका अर्थ है “प्रमुख”। उन्होंने भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में कार्य किया। गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होंने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद स्टेट के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन 1950 में उनका देहान्त हो गया। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भारत के प्रथम उप प्रधानमन्त्री तथा प्रथम गृहमन्त्री वल्लभभाई पटेल को समर्पित एक स्मारक है। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2013 को सरदार पटेल के जन्मदिवस के मौके पर इस विशालकाय मूर्ति के निर्माण का शिलान्यास किया था। यह स्मारक सरदार सरोवर बांध से 3.2 किमी की दूरी पर साधू बेट नामक स्थान पर है जो कि नर्मदा नदी पर एक टापू है। यह स्थान गुजरात के भरुच के निकट स्थित है।यह विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है, जिसकी लम्बाई 182 मीटर (597 फीट) है।इसके बाद विश्व की दूसरी सबसे ऊँची मूर्ति चीन में स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध है, जिसकी आधार के साथ कुल ऊंचाई 153 मीटर (502 फीट) है।

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इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में आनंद भवन में हुआ था। अपने दृढ निश्चय, साहस और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता के कारण इंदिरा गांधी को विश्व राजनीति में लौह महिला के रूप में जाना जाता है।इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (19 नवंबर 1917-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमंत्री  रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। मोरारजी देसाई उन्हें “गूंगी गुड़िया” कहा करते थे।जुलाई 1969 को उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। 1971 में बांग्लादेशी शरणार्थी समस्या हल करने में अमेरिका को सीधी चुनौती देते हुए साहसिक उपलब्धि हासिल की।स्माइलिंग बुद्धा के अनौपचारिक छाया नाम से 1974 में भारत ने सफलतापूर्वक एक भूमिगत परमाणु परीक्षण राजस्थान के रेगिस्तान में बसे गाँव पोखरण के करीब किया। शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परीक्षण का वर्णन करते हुए भारत दुनिया की सबसे नवीनतम परमाणु शक्ति बन गया। आपातकाल, प्रेस सेंसरशिप, सत्ता से बेदखली और सत्ता में वापसी के बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार के चलते 31अक्टूबर 1984 को सिख अंगरक्षक सतवंत सिंह व बेअंत सिंह द्वारा प्रधानमंत्री निवास के बगीचे में उनकी हत्या कर दी गई। इसके साथ ही भारतीय राजनीति का एक अध्याय खत्म हो गया था।

तो यह तारीख भारतीय इतिहास में खुशी और गम दोनों भाव लिए हर वर्ष हमें याद आती रहेगी। लौह पुरुष का स्मरण भी हमें साहस और गर्व से भरता है, तो लौह महिला की यादें भी सशक्त राष्ट्र में भरे रंगों की कहानी बयां करती हैं।