

आज मालवा में होल्कर वंश के शिखर मल्हार राव को याद करने का दिन है…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
आज मध्यप्रदेश के लिए खास दिन है और मालवा क्षेत्र के लिए बेहद खास दिन है। अहिल्याबाई होलकर को त्याग की मूर्ति न्यायप्रिय शासिका के रूप में पूजा जाता है। उस होलकर राजवंश की नींव मल्हारराव होलकर ही थे। वह इंदौर के होल्कर वंश का प्रवर्तक थे। मल्हार राव विशेष रूप से मध्य भारत में मालवा के पहले मराठा सूबेदार होने के लिये जाना जाते थे। यह होल्कर परिवार के पहले राजकुमार थे, जिन्होंने इंदौर के राज्य पर शासन किया था।उन्होंने पेशवा बाजीराव प्रथम को कई युद्धों में विजय दिलवाई थी। उनके वंशजों द्वारा शासित राज्य को 1948 ई. में भारतीय गणराज्य में सम्मिलित कर लिया गया था। मल्हारराव के बाद इस वंश में चौदह शासक हुए, जिन्होंने लगभग 220 वर्ष 22 दिन तक राज्य की बागडोर संभाली।
पेशवा बाजीराव प्रथम ने मल्हारराव को मालवा प्रांत की चौथ (कर) वसूली का अधिकार दिया था। इसके बाद अपने पराक्रम और सतत परिश्रम से शीघ्र ही मल्हारराव ने मालवा-बुंदेलखंड की सूबेदारी प्राप्त कर ली थी। पेशवा के पूर्ण सहयोग से इन्होंने मराठा संघ की नींव मजबूत करने के लिए ‘कटक से अटक’ तक का विजय अभियान चलाया। इसके बदले में पेशवा की ओर से 60 लाख आमदनी वाला मालवा प्रदेश मिला। और इंदौर राज्य यानि होलकर स्टेट की नींव इसी आधार पर खड़ी हुई। मल्हारराव को उस राज्य का संस्थापक माना जाता है। मल्हारराव ने 1728 से 1766 ई. तक शासन किया था।
मल्हारराव होलकर का जन्म होलगांव के पटेल खंडोजी के घर माता गंगाबाई के उदर से 16 मार्च गुरुवार 1693 में दोपहर 12 बजे हुआ था। हालांकि इनकी जन्मतिथि के संबंध में भी विवाद है। कहीं-कहीं 16 अक्टूबर 1694 अंकित है। इनके पिता खंडोजी का मुख्य धंधा कृषि था। मल्हारराव की अल्प आयु में ही उनके पिता का देहांत हो गया। इस पर माता गंगाबाई अपने भाई भोजराज बारगल के यहां अपने मायके गांव तालोद चली गईं। तालोद गांव खानदेश के सुल्तानपुर परगने में था। भोजराज गांव का जमींदार था। बालक मल्हार मामा के घर उन्मुक्त वातावरण में पलने लगा। हम उम्र के साथियों में उसका प्रभाव जम गया। कहा जाता है कि एक दिन धूप तेज थी, उससे बचाव के लिए मित्रों को छोड़कर समीप ही किसी झाड़ी की छाया में बालक मल्हार सुस्ताने लगा। इसी बीच एक नाग कहीं से आकर उनके मुंह पर अपना फन चौड़ाकर छाया करने लगा। इस दौरान मल्हार गहरी नींद में था। कुछ देर बाद उनके साथी उन्हें तलाशते हुए वहां आ पहुंचे। उनकी आहट से नाग अपनी राह निकल गया। इस दृश्य को देख सभी साथी आश्चर्यचकित रह गए। मल्हार गहन निंद्रा में लीन था। सभी साथियों ने घटना का जिक्र पूरे गांव में किया। मां और मामा भी यह समाचार सुन विस्मित हो गए। भय के चलते उन्होंने अगले दिन से मल्हार का पशु चराना बंद कर दिया। कुछ समय बाद मामा ने किशोर मल्हार को अपनी सैनिक टुकड़ी में भर्ती कर सिपाही बना लिया।
मल्हारराव की माता को किसी विद्वान पंडित ने भविष्यवाणी के रूप में यह कहा कि तुम्हारा पुत्र पृथ्वीपति बनेगा, क्योंकि ये लक्षण नागछायादारी जैसे हैं। ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ की उक्ति को मल्हार ने निज कर्तव्यों से सिद्ध करना प्रारंभ कर दिया। यह युग तलवार बहादुरी का था, इसी गुण प्रतिभा का प्रदर्शन एक दिन मल्हार ने निजामुल मुल्क के सरदार का अकेले ही सिर काटकर बतला दिया। इस शौर्य कृत्य ने उनकी ख्याति फैला दी। भोजराज बारगल ने इस प्रसन्नता के क्षणों में उत्साहित होकर अपनी पुत्री गौतमाबाई का विवाह मल्हारराव से कर दिया तथा कदम बांडे से परिचय करा दिया। 1724 में इन्हें मराठा सरदार कदम बांडे ने अपनी घुड़सवार पलटन के पांच सौ सवारों का नायक बना लिया। इस सैनिक टुकड़ी की विशिष्ट पहचान के लिए मल्हारराव ने लाल और सफेद रंगों का तिकोना ध्वज बनाकर लगाया। इससे सरदार कदम बांडे बहुत खुश हुआ। आगे चलकर यही ध्वज होलकर राज्य का शासकीय निशान बना। कदम बांडे ने पेशवाई सेना के हित में कार्य करने की छूट दे दी। पेशवा बाजीराव इनके वीरतापूर्ण कार्यों पर मुग्ध हो गए। मल्हार राव ने अपनी शूरवीरता से नर्मदा नदी के आसपास का क्षेत्र जीत लिया। पेशवा बाजीराव ने प्रसन्न होकर इन्हें मालवा के 12 महाल (परगना) 1728 में पुरस्कार रूप में प्रदान किए। होलकर राज्य की स्थापना का श्रीगणेश यहीं से मान्य हुआ। 1766 में पेशवा रघुनाथ राव के साथ मिलकर मराठा सरदारों ने धौलपुर-गोहद के राजाओं को घेरने की योजना बनाई। वे सामूहिक रूप से झांसी से प्रस्थान कर आगे बढ़ने लगे। 24 अप्रैल को भांडेर में रुके। यहां से आगे के लिए रवाना हुए, वहीं रास्ते में वृद्ध मल्हारराव का स्वास्थ्य अचानक बिगड़ गया। पिछले समय मांगरोल युद्ध में वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे। वही पुराना घाव फिर से तकलीफ देने लगा। इससे उन्हें बेरूवा-खेरा (आलमपुर) में उपचार हेतु रुकना पड़ा। यहीं 20 मई 1766 को उनका देहांत हो गया। तो करीब करीब 38 साल शासन कर मल्हारराव इस दुनिया से विदा हो गए।
यह सर्वस्वीकार्य तथ्य है कि होल्कर स्टेट का उदय मालवा की पहचान बना। आज का सशक्त और समृद्ध मालवा होल्कर स्टेट की नींव पर ही खड़ा है। एक चरवाहे से होल्कर स्टेट की स्थापना करने का पूरा श्रेय मल्हारराव होल्कर को जाता है। और मालवा की माटी का यह रूप आज भी देखने को मिलता है, जहां अपने शौर्य और बुद्धिमत्ता से जमीन से उठकर सैकड़ों सामान्य परिवार के लोगों ने शीर्ष को छुआ है। तो आज मल्हारराव होल्कर को याद करने और उनसे प्रेरणा लेने का दिन है…।