आज ‘कारगिल विजय दिवस’ की ‘रजत जयंती’ है……

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आज ‘कारगिल विजय दिवस’ की ‘रजत जयंती’ है……

आज यानि 26 जुलाई की तारीख भारत में विजय, उल्लास और उत्साह की प्रतीक है। आज की तारीख भारत के शूरवीरों के शौर्य की प्रतीक है। आज की तारीख भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के अटल विश्वास और भारतीय सेना के भरोसे पर खरा उतरने के अटल इरादों की प्रतीक है। जी हां, आज की तारीख एक धूर्त पड़ोसी की विकृत मानसिकता को सबक सिखाने का प्रतीक है। तो 26 जुलाई 2024 का दिन कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती मनाने और कारगिल युद्ध के शहीदों के शौर्य के प्रति नतमस्तक होने का खास पर्व है। यह दिवस याद दिलाता है कि एक उदार और कोमल ह्रदय अटल ने देश की आन, बान और शान के लिए वज्र से भी कठोर होकर विजय का नया इतिहास लिख भारत माता के चरणों को अर्पित किया था। बीसवीं सदी के अंत की इस महाविजय की ज्योति से इक्कीसवीं सदी का भारत रोशनी पाकर विश्व पटल पर चमक रहा है। और अटल से मोदी तक के इन पच्चीस साल का भारत का इतिहास नए भारत की कहानी लिख रहा है। इन पच्चीस सालों में केंद्र में करीब पांच साल एनडीए सरकार में प्रधानमंत्री अटल बिहारी थे। तो दस साल यूपीए सरकार में मनमोहन का काल था और 2014 के बाद के दस साल से अधिक समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। यह इतिहास में दर्ज हो चुका है कि अब पूरी दुनिया भारत को निहार रही है। पाकिस्तान के बाद अब पड़ोसी चीन की तरफ भारत पूरी सजगता से आंखें गढ़ाए है। सीमा पर चीन की कुदृष्टि पड़ रही है और भारत की दृष्टि चीन से हिसाब बराबर करने पर है। लगातार तीन बार के प्रधानमंत्री बन मोदी ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है। पर चीन ने नेहरू के समय जो घाव भारत को दिया था, अब उस घाव के भरने का इंतजार 140 करोड़ भारतवासियों को है। वैसे पीओके के कश्मीर में विलय की सुगबुगाहट होने लगी है, बस फिर चीन से हिसाब चुकता करना ही बाकी है।
तो कारगिल विजय दिवस सभी भारतवासियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है। भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था जो लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ और इसमें भारत विजय हुआ।
कारगिल की यह लड़ाई दुनिया के इतिहास में सबसे ऊंचे क्षेत्र में लड़ी गई लड़ाई थी। कारगिल विजय दिवस युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों के सम्मान का दिन है। दरअसल 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भी कई दिन सैन्य संघर्ष होता रहा। इतिहास के मुताबित दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तनाव और बढ़ गया था। स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। अटल की वह लाहौर यात्रा जिसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था लेकिन पाकिस्तान अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लगा और इस घुसपैठ का नाम “ऑपरेशन बद्र” रखा था। इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। ‘कारगिल युद्ध’ 1999 की वही लड़ाई थी, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने अपना धोखेबाज चरित्र दिखाते हुए द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर भारत के विरुद्ध साजिश व विश्वासघात से कब्जा करने की कोशिश की थी। पाकिस्तान यह भी मानता था कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के तनाव से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी। प्रारम्भ में इसे घुसपैठ मान लिया था और दावा किया गया कि इन्हें कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा लेकिन नियंत्रण रेखा में खोज के बाद इन घुसपैठियों के नियोजित मंसूबों के बारे में पता चला जिससे भारतीय सेना को एहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर की गयी है। इसके बाद भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन विजय’ नाम से 2,00,000 सैनिकों को कारगिल क्षेत्र में भेजा। पाकिस्तान के बुरे मंसूबों को अच्छा सबक सिखाकर यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। इसमें भारतीय सेना के 527 रणबांकुरों ने अपने बलिदान से मातृभूमि को दुश्मनों के नापाक कदमों से मुक्त किया। सेना के 1363 जांबाजों ने घायल होकर भी न केवल लड़ाई लड़ी बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाने में अपना योगदान दिया। कैप्टन विक्रम बतरा को अदम्य साहस और पराक्रम के लिए मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। विपरीत परिस्थितियों में भी भारतीय सेना ने अपनी शौर्य गाथा लिखकर यह जता दिया था कि भारत माता की तरफ बुरी नजर डालने वालों की आंखें फोड़ने की ताकत भारत में थी, है और हमेशा रहेगी।
इस युद्ध में मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान करने वालों की स्मृति में कारगिल युद्ध स्मारक की स्थापना की गई है। यह द्रास में है। खास बात यह है कि इस स्मारक में पाकिस्तान की सेना के बंकर भी हैं। देश के सबसे ठंडे इलाके में स्थापित इस स्मारक पर जाना किसी के लिए भी शानदार अनुभव हो सकता है। द्रास वह इलाका है, जहां सर्दियों में तापमान-35 डिग्री सेल्सियस हो जाता है और कभी-कभी तो इससे भी कम। यह स्मारक युद्ध में वीरगति को प्राप्त 500 से ज्यादा भारतीय सैनिकों को समर्पित है। यहां ऊंची पर्वतीय चोटियों की पृष्ठभूमि में मुख्य श्रद्धांजलि स्थल पर हमेशा चलते रहने वाली तेज हवा से ऊंचा लहराता तिरंगा और साथ में 24 घंटे प्रज्वलित रहने वाली अमर ज्योति की लौ शहीद सैनिकों के सम्मान में जीवंत दृश्य सृजित करते हैं। स्मारक के बायीं तरफ करगिल समर में वीरगति को प्राप्त सैनिकों के नाम और अन्य विवरण वाले शिलालेख हैं। स्मारक के विजय पथ के दोनों तरफ उन नायकों की आवक्ष प्रतिमाएं हैं, जिन्होंने दुश्मन सैनिकों को अपनी भूमि से खदेड़ने के लिए पराक्रम दिखाया।
तो आज कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती है। यह दिन सभी भारतवासियों को देश की रक्षा के लिए बलिदान करने का साहस रखने का संदेश देती है। सैनिक चाहे स्थायी सेवा में हो या फिर अग्निवीर, वह राष्ट्र की रक्षा में प्राण न्योछावर करने को हमेशा तत्पर रहता है। देश के भीतर सुकून से रहकर देश के साथ छल, विश्वासघात और भ्रष्ट आचरण करने वालों को भी यह दिन आइना दिखाता है।आखिर देश के दुश्मनों को तो सबक सिखाने की हममें ताकत है, पर देश से गद्दारी कर रहे अपनों को सबक कौन सिखाएगा। ‘कारगिल विजय दिवस’ की ‘रजत जयंती’ नकली चेहरे लगाए ऐसे सभी देशवासियों को भी आइना दिखाती है…।