आज आधुनिक भारत की मीरा से मिलते हैं…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
वैसे भक्तिकाल की कवयित्री महादेवी वर्मा को “आधुनिक युग की मीरा” के रूप में जाना जाता है लेकिन पार्श्व गायन के क्षेत्र में पार्श्वगायिका वाणी जयराम को “आधुनिक भारत की मीरा” कहा जाता है। वाणी जयराम की आवाज सुनने पर हम खुद महसूस कर सकते हैं कि उन्हें “आधुनिक भारत की मीरा” क्यों कहा जाता था। एक तड़प, एक शुद्ध भक्ति, एक सच्चा प्रेम, ये सब उनकी आवाज को जादुई बनाते हैं। पाँच दशकों से भी ज्यादा समय तक संगीत की दुनिया में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने और उस पर राज करने के कारण, वह आज भी कई उभरते गायकों के लिए प्रेरणा हैं। वसंत देसाई के साथ वाणी के अच्छे व्यावसायिक जुड़ाव के कारण उनकी सफलता ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म गुड्डी (1971) के साथ शुरू हुई। देसाई ने वाणी को फिल्म में तीन गाने रिकॉर्ड करने की पेशकश की, जिसमें गीत “बोले रे पपीहारा”, लोकप्रिय हुआ और उसने उन्हें तुरंत पहचान दी। वह हिन्दी सिनेमा के संगीत निर्देशकों में से प्रत्येक के लिए कुछ गाने गाती रहीं, जिनमें चित्रगुप्त, नौशाद पाकीजा (1972) में एक शास्त्रीय गीत और आईना (1977) में आशा भोंसले के साथ एक युगल गीत, आर. डी. बर्मन (छलिया (1973) में मुकेश के साथ एक युगल गीत), कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, और जयदेव (परिणय, 1974 में मन्ना डे के साथ एक युगल और सोलहवाँ सावन, 1979 में एक एकल) प्रमुख हैं। पंडित रविशंकर द्वारा रचित मीरा (1979) के गीत “मेरे तो गिरधर गोपाल” के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का पहला फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। उन्होंने इस फिल्म के लिए 12 से अधिक भजन रिकॉर्ड किए जो बेहद लोकप्रिय हुए।फिल्म ‘मीरा’ के प्रमुख भजन हैं: “मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई”, “श्याम मने चाकर राखो जी”, और “मैं सांवरे के रंग राची”। इन भजनों को हेमा मालिनी पर फिल्माया गया है और ये वाणी जयराम द्वारा गाए गए हैं। और वाणी जयराम के कृष्ण पर गाए ऐसे भजन भी उन्हें आधुनिक काल की मीरा के रूप में स्थापित करते हैं।
वाणी जयराम का जन्म 30 नवंबर, 1945 को तमिलनाडु के वेल्लोर में एक तमिल परिवार में हुआ था। इनके बचपन का नाम कलैवनी था। इनके पिता का नाम दुरईसामी अयंगर और माता का नाम पद्मावती था जो रंगा रामुनाजा अयंगर के अधीन प्रशिक्षित संगीतकार थे। इनके माता पिता के तीन बेटे और छह बिटियाँ थीं। 8 साल की उम्र में वाणी जयराम ने ऑल इंडिया रेडियो, मद्रास में अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन दिया। वह मद्रास विश्वविद्यालय के क्वीन मैरी कॉलेज की छात्रा थीं। अपनी पढ़ाई के बाद वाणी की स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, मद्रास में नौकरी लग गई थीं और बाद में साल 1967 में उनका स्थानांतरण हैदराबाद में हो गया। कुछ समय बाद वाणी के गायन को सुनकर उनके पति जयराम ने उन्हें हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण दिलवाया और पटियाला घराने के उस्ताद अब्दुल रहमान खान से संगीत की शिक्षा लेने लगी। यहां संगीत सीखते समय उन्होंने बैंक की नौकरी छोड़ दी और संगीत को अपना पेशा बना लिया। संगीत में उन्होंने ठुमरी, गज़ल और भजन स्वर सीखे और साल 1969 में अपना पहला म्यूजिक शो किया। वाणी जयराम की शादी एक ऐसे परिवार में हुई जो पहले से ही संगीतमय था। उनके पति का नाम टी.एस. जयरमण और उनकी सास पद्मा स्वामीनाथन थीं जो सामाजिक कार्यकर्ता और कर्नाटक संगीत गायिका एफ.जी. नटेसा अय्यर की बेटी थीं। इनके पति टी.एस. जयरमण का निधन 25 सितंबर 2018 को 79 साल की उम्र में हो गया था।
हिन्दी के अलावा वाणी जयराम ने कई भारतीय भाषाओं, जैसे तेलुगू, तमिल, मलयालम, कन्नड़, मराठी, ओड़िया, गुजराती और बंगाली भाषाओं में भी गाया। उन्होंने तीन बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका के लिए ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ जीता था। साल 2012 में उन्हें दक्षिण भारतीय फिल्म संगीत में उनकी उपलब्धियों के लिए ‘फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ साउथ से सम्मानित किया गया। वाणी जयराम को तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा अलग-अलग भाषाओं में गाना गाने के लिए कई राज्यों से अवार्ड मिले और साल 2023 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया।
मशहूर गायिका वाणी जयराम का निधन 4 फरवरी, 2023 को हुआ। उन्हें चेन्नई में उनके घर में मृत पाया गया। वाणी जयराम की उम्र 78 साल थी।
गायन के अलावा, वाणी जयराम एक गीतकार, संगीतकार और चित्रकार भी थीं। वाणी का करियर 1971 में शुरू हुआ और पाँच दशकों से ज़्यादा समय तक चला। उन्होंने एक हज़ार से ज़्यादा भारतीय फिल्मों में 20,000 से ज्यादा गाने गाए। इसके अलावा, उन्होंने हजारों भक्ति गीत और निजी एल्बम रिकॉर्ड किए और भारत और विदेशों में कई एकल संगीत कार्यक्रमों में भी भाग लिया। वाणी जयराम ने पंडित बिरजू महाराज के साथ “होली गीत” और “ठुमरी दादरा और भजन” रिकॉर्ड किए। उन्होंने ओडिसी गुरु केलुचरण महापात्र के साथ पखावज बजाते हुए प्रफुल्ल कर द्वारा रचित “गीता गोविंदम” भी रिकॉर्ड किया। जब शंकर गणेश की कोई फिल्म रिलीज होती, तो लोग वाणी अम्मा का गाना ढूँढ़ते थे,जैसा कि इंडस्ट्री उन्हें बुलाती थी। 2023 में पद्म भूषण, तीन राष्ट्रीय पुरस्कार, तीन फिल्मफेयर पुरस्कार और चार राज्यों – गुजरात, तमिलनाडु, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश से चार राज्य पुरस्कार प्राप्तकर्ता वाणी जयराम का वास्तव में एक अद्भुत करियर था…।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





