आज का गीता गीत
*प्रसंग वश,चंद्रकांत अग्रवाल,वरिष्ठ कवि,लेखक
आज गीता जयंती के पावन प्रसंग पर मेरे ईष्ट श्रीकृष्ण की कृपा व प्रेरणा से रचित यह गीता गीत जीना कैसे जीना सिखलाती गीता। मरना कैसा मरना बतलाती गीता।। दूजों से मिलने से पहले खुद से मिलो, मुरझाने के पहले तुम इस तरह खिलो। मुस्काओ मत रहने दो मन को रीता, एक- एक दिन करके तो जीवन बीता। जीना कैसे जीना……………….//1// सहना सीखो पर्वत के जैसा अविचल, रहना सीखो नदियों से उन सा निर्मल। देना सीखो पेड़ों से फल मीठा – मीठा, लेना सीखो बच्चों से वो जैसा जीता। जीना कैसे जीना…………….//2// जीवन क्या कठपुतली के नचने जैसा, मरना क्या हम वस्त्र बदलते हैं वैसा। पंच तत्व का तन तो माटी में मिलता, नभ में आत्मा रूप कमल सा खिलता। जीना कैसे जीना………………//3// गीता कहती कभी नहीं विचलित होना, सांस-सांस में सत्य, त्याग, अरुणा भरना मरना क्या अंश उसी का उसमें मिलता बीज तुम्हारे भीतर जैसा वैसा फलता। जीना कैसे जीना…………….. //4// चंद्रकांत अग्रवाल, संप्रति,इटारसी, मो. न. 9425668826