आज की बात:विदेश यात्रा और व्हील चेअर
अशोक बरोनिया
दो वर्ष पहले अटलांटा होते हुए डलास गया था। अटलांटा में दूसरे टर्मिनल से फ्लाइट बदलनी थी। इसके लिए ट्रेन से नए टर्मिनल पर जाना होता है। किन्ही कारणों से मेरी पहली ट्रेन चूकी। दूसरी ट्रेन से टर्मिनल पहुंचा। लगभग दौड़ते हुए गेट तक गया और गेट बंद होने के 4-5 मिनट पहले अंदर जा सका।
पिछले दिनों मैं लंदन और एम्सटर्डम होकर आया। लंदन का वीज़ा खत्म होने के पहले एम्सटर्डम चला गया। एम्सटर्डम से वापसी की फ्लाइट लंदन होकर थी। लंदन में टर्मिनल 4 से अगली फ्लाइट के लिए टर्मिनल 3 तक जाना था। यूके का वीज़ा की अवधि खत्म हो चुकी थी और बिना ट्रांसिट वीजा या यूके वीज़ा के लंदन में एअरपोर्ट पर भी दूसरे टर्मिनल तक नहीं जाया जा सकता है।
मेरी बेटी ने टिकट बुक की थीं। उसने यह पता कर लिया था कि ट्रांसिट वीजा वाला प्राब्लम नहीं आएगा। यह बात मुझे पता नहीं थी।
एम्सटर्डम में मेरा भांजा गौरव मिलने आया। घर के नीचे स्थित मॉल में कॉफी पीते हुए मैंने उसे अपना जाने का प्रोग्राम बताया। यह सुनकर कि मेरे पास यूके का वीज़ा नहीं है और मुझे लंदन होकर ही जाना है, वह चिंतित हो गया।
गौरव की बात सुनकर मैं भी टेंशन में आ गया। मैंने गौरव से एअरलाइन या एंबेसी में फोन पर ही पता करने का आग्रह किया। गौरव ने तब विभिन्न जगहों पर फोन लगाया। अंततः यूके एंबेसी की वेबसाइट पर एक सर्कुलर दिखा जिसके अनुसार कुछ देशों का वीज़ा होने पर लंदन में ट्रांसिट वीजा की आवश्यकता नहीं होती। इन देशों में अमेरिका भी शामिल है। गौरव ने सर्कुलर डाउनलोड कर मुझे तुरंत फारवर्ड किया। इस सब में ही डेढ़ घंटा निकल गया।
शाम को बेटी के आफिस से आने के बाद उसे मैंने सारी बातें बताई। बिटिया दामाद दोनों का कहना था कि आप बेवजह चिंतित हुए। हमने यह सब पता करके ही टिकट बुक कराई थी।
एम्सटर्डम से रवाना होने के एक दिन पहले दामाद ने मेरा चेक – इन कराया तो मैंने उससे कहा कि मेरे लिए व्हीलचेयर की भी रिक्वेस्ट डाल दो। चूंकि मैं अटलांटा एअरपोर्ट पर परेशान हो चुका था तो तब डलास से वापसी के समय मैंने एटलांटा में व्हीलचेयर की मांग कर ली थी। इस कारण अटलांटा में वापसी में मुझे दिक्कत नहीं गई थी।
हीथ्रो एअरपोर्ट लंदन में न केवल मुझे दूसरे टर्मिनल तक जाना था बल्कि इमिग्रेशन की एअरपोर्ट में लगने वाली लंबी लाइन से भी निपटना था। लंदन में मेरे पास इस सबके लिए केवल ढाई घंटे थे।
मेरी चिंता को समझकर दामाद ने मेरे लिए व्हीलचेयर की भी रिक्वेस्ट डाल दी। एम्सटर्डम से सबेरे 7 बजे फ्लाइट थी। एम्सटर्डम के एअरपोर्ट पर बोर्डिंग पास तभी मिलता है जब वे यह सुनिश्चित हो जाएं कि मेरे पास हीथ्रो एअरपोर्ट के लिए आवश्यक पेपर्स हैं।
खैर हम सबेरे पौने पांच बजे ऊबर टेक्सी से एम्सटर्डम के शिफोल एअरपोर्ट (Schiphol Airport) अंतरराष्ट्रीय एअरपोर्ट पहुंच गए। शिफोल एअरपोर्ट पर यूएस वीजा दिखाने पर मुझे लंदन से आगे की यात्रा का भी बोर्डिंग पास मिल गया।
हीथ्रो एअरपोर्ट लंदन में सवा घंटे की यात्रा के बाद उतरा तो हवाई जहाज के गेट पर ही एक सहायक व्हील चेअर के साथ मिल गया। मैं व्हीलचेयर पर तो नहीं बैठा लेकिन सहायक के साथ धीरे-धीरे पैदल चलकर इमिग्रेशन तक आया। चूंकि मेरे साथ सहायक था तो मुझे इमिग्रेशन की लंबी लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ा। सहायक मुझे अलग काउंटर पर ले गया। काउंटर पर मेरा यूएस वीजा चेक किया गया। इमिग्रेशन की फार्मेलिटी के बाद गोल्फ कार्ट (या बग्गी) से मुझे बस स्टाप तक ले जाया गया। गोल्फकार्ट छोटी इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ होती हैं, जो विशेष रूप से बुजुर्गों, विकलांगों, या लंबी दूरी तय करने में असमर्थ यात्रियों की सहायता के लिए उपयोग की जाती हैं।
बस से 10 मिनट का सफर तय कर टर्मिनल 3 पर आया। बस से उतरते ही यहां भी मुझे एक सहायक मिल गया। यह सहायक मुझे विशेष लाउंज में ले गया। इस लाउंज में केवल व्हीलचेयर का आप्शन देने वालों के लिए बैठने की व्यवस्था रहती है। यहां बढ़िया सोफे तथा कुर्सियां आदि रहती हैं। लाउंज के काउंटर पर मेरे टिकट के डिटेल्स नोट किए गए ताकि गेट डिस्प्ले होने पर मुझे गेट तक पहुंचाया जा सके।
लाउंज में करीब आधा घंटा रुकना पड़ा। इसके बाद गेट का डिस्प्ले टीवी स्क्रीन पर आ गया। गेट लाउंज से 50 कदम की ही दूरी पर था। गेट के बाहर लगी लंबी लाइन में भी मुझे खड़ा नहीं रहना पड़ा। सहायक ने मुझे तुरंत अलग से बिना लाइन में लगे अंदर करा दिया।
यह वाक्या मैंने इसलिए लिखा है क्योंकि हम में से अनेक लोग अमेरिका, यूके तथा यूरोपीय देशों की यात्रा पर जाते रहते हैं। ऐसी स्थिति में लंदन एअरपोर्ट के लिए अगर फ्लाइट बदलनी है तो निसंकोच व्हीलचेयर का आप्शन लेना चाहिए। मैं रोज काफी पैदल चलता हूँ लेकिन फिर भी व्हीलचेयर का आप्शन चुना। अगर व्हीलचेयर का आप्शन न चुना होता तो शायद भागते दौड़ते ही गेट तक पहुंच पाता।
एक और बात है जिसपर हम भारतीयों को ध्यान देना चाहिए। मैं अमेरिका यूके तथा नीदरलैंड में कई बार फ्लाइट पर बैठा। फ्लाइट के अंदर काफी साफ-सफाई देखी। कोई भी यात्री जहाज के अंदर गंदगी नहीं करता है तथा परिचारिका द्वारा उपलब्ध कराए बैग में ही अपना कचरा डालता है। लेकिन जब भी मैं दिल्ली या मुंबई आने वाली फ्लाइट में सफर किया तो देखा कुछ देर बाद ही जहाज की गैलरी में काफी गंदगी फैल जाती है। बाथरूम भी उतने साफ नहीं रह पाते हैं। समझ नहीं आता कि हम भारतीय क्यों स्वच्छता के प्रति इतने लापरवाह होते हैं। सोचिएगा जरूर…