आज की बात : राम के बजाय रावण क्यों बनना चाहते है युवा?

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आज की बात : राम के बजाय रावण क्यों बनना चाहते है युवा?

 

राम बनने की सलाह देने वाली सरकार ही लोगों के रावण बनने की राह आसान कर रही है,कैसे!

एक समय था जब सत्यकथा और मनोहर कहानियां जैसी पत्रिकाएं छपती थीं। इन पत्रिकाओं में सनसनीखेज ढंग से सत्य घटना की कहानी कही जाती थीं। साथ ही कहानी में सेक्स की हल्की सी चासनी घुली रहती थी। ये पत्रिकाएं घरों में सामान्यतः नहीं लाई या पढ़ी जाती थीं। क्योंकि इनमें समाज के खलनायक को नायक जैसा प्रदर्शित किया जाता था। साथ ही कुछ अश्लील भाषा भी रहती थी। तब ये पत्रिकाएं ट्रेन या बस से सफर के दौरान युवाओं और अधेड़ व्यक्तियों द्वारा खरीदी व पढ़ीं जाती थीं। इन पत्रिकाओं को दोयम दर्जे का माना जाता था क्योंकि इनसे परिवार के बच्चों के मन पर बुरा असर पड़ता था। इसलिए ये पत्रिकाएं घरों में नहीं रखी जाती थीं।

इसी तरह पहले लोग घरवालों से चोरी छुपे अश्लील या ब्लू फिल्में देखा करते थे या मस्तराम की पुस्तकें पढ़ा करते थे। मस्तराम वाली किताबें भी चोरी छिपे पढ़ी जाती थीं।

सत्यकथा तथा मनोहर कहानियां के प्रकाशन पर सरकार की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं था। लेकिन ब्लू फिल्में देखना या दिखाया जाना दोनों, अपराध की श्रेणी में तब भी थे और अब भी हैं। इसी तरह मस्तराम जैसी अश्लील किताबों का प्रकाशन तब भी प्रतिबंधित था और अब भी है। लेकिन इसके बाद भी यह सब वेषभूषा बदलकर नए रूपों में हमारे घरों में पहुंचता जा रहा है।

आज मनोहर कहानियां या सत्यकथा जैसी पत्रिकाओं का स्थान प्राइवेट न्यूज चैनलों ने ले लिया है। चाहे वह दाउद हो या विकास दुबे, इन चैनलों द्वारा इन शातिर कुख्यात लोगों को इतना अधिक बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाता है कि देखने वाले के दिलों में इन जैसा ही बनने की इच्छा जागृत होने लगती है। प्राइवेट न्यूज चैनलों में इन कुख्यात लोगों की जीवनशैली, सेक्स लाइफ या उसकी राजनीतिक पहुंच आदि के किस्से ही बढ़ा-चढ़ा कर लगातार दिखाए जाते रहे थे। यह सब देखकर युवाओं को अपराध की दुनिया में प्रवेश कर पैसा कमाना ज्यादा आसान तरीका लगने लगता है। यही कारण है कि समाज में अपराधों में निरंतर वृद्धि हो रही है।

इसी तरह मस्तराम जैसा साहित्य घर घर में ओटीटी (ओवर द टॉप मीडिया सेवा) के माध्यम से परोसा जा रहा है। ओटीटी, केबल प्रसारण और उपग्रह टेलीविजन प्लेटफार्मों को बाईपास करता है। नेट के माध्यम से ओटीटी पर उपलब्ध सीरियल्स, फिल्म आदि सीधे घरों के अंदर पहुंच जाती हैं। इनके कंटेट पर सरकार का कोई नियंत्रण भी नहीं रहता है। नेटफ्लिक्स, प्राइम वीडियो, सोनी लिव जैसे न जाने कितने प्लेटफार्म ओटीटी पर उपलब्ध हैं। इनके सीरियल्स में अश्लीलतम गालियों का बहुतायत में उपयोग होता है तो अश्लील दृश्यों की भी भरमार रहती है। पहले के समय में तो देखने वाले इन्हें चोरीछुपे देखते थे। लेकिन आजकल घर परिवार में ही बैठकर देखते हैं। ओटीटी के लिए तो टीवी भी जरूरी नहीं। स्मार्ट फोन जो आजकल लगभग हर बच्चे के पास तक हो गया है, उसपर भी यह सब सुगमता से उपलब्ध हो रहा है।

इस तरह प्राइवेट न्यूज चैनलों तथा ओटीटी की घर-घर पहुंच होने से समाज में अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है तो साथ ही अप्राकृतिक यौन संबंध तथा बलात्कार की घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं।

हमारी सरकार राम राज्य बनाने की बहुत बात करती है। लोगों को राम जैसा बनने की सलाह भी दी जाती हैं। लेकिन सरकार न प्राइवेट न्यूज चैनल प्रतिबंधित करती है और न ही ओटीटी पर दिखाए जाने वाले कंटेंट पर सेंसर की कैंची चलाती है। फलस्वरूप राम बनने की सलाह देने वाली सरकार ही लोगों के रावण बनने की राह आसान कर रही है। वैसे भी राम (अच्छा आदमी) बनने से आसान है रावण (बुरा आदमी) बनना। सभी जानते हैं कि राम को जीवनयापन करने में दुश्वारियां झेलनी पड़ती हैं जबकि रावण ऐशोआराम की जिंदगी जीता है।

लेकिन अब भी देरी नहीं हुई है। सरकार को प्राइवेट न्यूज चैनलों पर भी दिखाई जाने वाली मनगढ़ंत कहानियों पर कानून में प्रावधान कर नियंत्रण रखना चाहिए। ऐसे ही ओटीटी में दिखाई जाने वाली समस्त सामग्री सेंसर बोर्ड से पास होने के बाद ही दिखाई जा सकती है, ऐसे कानून में प्रावधान किए जा सकते हैं।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो राम के स्थान पर रावण ही समाज में अधिक संख्या में बनते रहेंगे।