Traffic System: इंदौर यातायात व्यवस्था को ऐसे भी सुधारा जा सकता है….
दिनेश सोलंकी की खास रिपोर्ट
बहुत सालों से मैं इंदौर की दिन ब दिन बिगड़ती जा रही सड़क यातायात की स्थिति को देख रहा हूं। यातायात विभाग द्वारा कई बार प्रयोग करने के बाद भी यातायात व्यवस्था सही रूप से लागू नहीं हो पाती है। इसका मुख्य कारण है आम लोगों में यातायात के प्रति ज्ञान की कमी होना और उससे ज्यादा है, लापरवाही से वाहन संचालन करना। इसके सबूत हमें ट्रैफिक सिग्नल पर ही मिल जाते हैं जब लोग वहां खींची लाइन पर खड़े रहने का मतलब नहीं समझते हैं, बल्कि हरी बत्ती होने से पहले ही चलना शुरू कर देते हैं। बहुत सी जगह एकांगी मार्ग का पालन नहीं होता है, तो जहां लेफ्ट टर्न दिए हैं वहां पर लोग गाड़ी फंसा कर खड़े हो जाते हैं। कुल मिलाकर ऐसा लगता है की इंदौर के लोगों में यातायात की समझ कम है। लेकिन उसका एक कारण यह भी है कि लोग एक दूसरे को देखकर सुधरते कम हैं, बिगड़ते ज्यादा है। ऐसे में यातायात को डांसिंग स्टाइल में नियंत्रित करने वाले ट्रैफिक कॉप रंजीतसिंह जैसे सिपाहियों के प्रयास भी व्यर्थ चले जाते हैं जो बार बार यह बताने की कोशिश में लगे रहते हैं कि हमें सड़क पर कैसे चलना चाहिए।
युवा वर्ग मुख्य दोषी है,
पहल भी वही कर सकते हैं….
मेरा मानना है की यातायात को बिगाड़ने में आम लोगों में भी युवाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग शामिल है जो साधारण रूप से कम पढ़े लिखे होते हैं या अशिक्षित होते हैं, जो मनमर्जी के मालिक होते हैं, रफ गाड़ी चलाते हैं और यातायात के नियमों का उल्लंघन करते हैं। लेकिन इन्हीं युवाओं से प्रशासन वह काम ले सकता है जिसकी कल्पना युवा भी कभी नहीं कर पाएंगे और इसके दीर्घकालिक लाभ यातायात व्यवस्था को सुचारू रूप से करने में मददगार होंगे, ऐसा मेरा मानना है।
युवाओं को पार्ट टाइम रोजगार मिलेगा
इसलिए यातायात व्यवस्था का भार युवाओं के माध्यम से भी हल भी किया जा सकता है उसके लिए मेरे निम्न सुझाव है जिस पर यातायात विभाग को मंथन करने की जरूरत है –
1. यातायात विभाग को चाहिए कि वह युवाओं को रोजगार की दृष्टि से प्रेरित करते हुए उन्हें यातायात सिपाही की तरह पार्ट टाइम जॉब देकर उपयोग करें।
2. इसके लिए बेरोजगार युवाओं की भर्ती हो, जिन्हें सिर्फ 3 – 3 महीने का रोजगार उपलब्ध कराया जाए।
3. यह रोजगार दैनिक रूप से या मासिक रूप से तय किया जा सकता है, जिसमें मात्र 6 घंटे के लिए यातायात व्यवस्था संभालने के लिए उन्हें पारिश्रमिक बतौर रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है।
4. इसके लिए बकायदा प्रेस विज्ञप्ति निकालकर बेरोजगार युवाओं का रजिस्ट्रेशन कराया जाए और जैसे-जैसे युवा भर्ती होते जाएं वैसे वैसे एक एक सप्ताह की उनकी यातायात नियमों की जानकारी देकर बाद में यातायात सिपाही के साथ उन्हें इंदौर के विभिन्न चरणों पर तैनात किया जाए।
5. इस तरह हर तीन माह में 100 युवा तैयार होंगे जिससे 1 साल में 400 युवाओं की भर्ती हो सकेगी।
जब युवा खुद ही यातायात नियमों से वाकिफ होते रहेंगे और चौराहे चौराहे पर खड़े होकर यातायात का पालन कराएंगे तो वह खुद भी इस बात को महसूस कर लेंगे कि हमें इंदौर में कैसे चलना है और दूसरों को भी एहसास करा सकेंगे कि सड़क पर चलने के नियम क्या होते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर युवाओं को रोजगार देने के लिए राशि कहां से एकत्रित होगी…!
इसके लिए यह सोचा जाना चाहिए कि इंदौर में बरसों से यातायात के ऊपर अनाप-शनाप खर्च किया जाता रहा है। कई जगह बार बार प्रयोग किए जाते हैं तो यातायात नियंत्रण के लिए सिपाहियों की भर्ती की जाती है। इसके बजाय युवाओं की भर्ती होना एक अस्थाई रोजगार होगा। आज आम युवा पार्ट टाइम जॉब के लिए तरसता है और उसे यदि 6 घंटे का रोजगार मिल जायेगा तो वह जरूर करेगा। इस तरह हर बार, हर तीन महीने में युवाओं को बदल बदल कर यातायात नियमों का ज्ञान दिया जाएगा, तो हर 3 महीने में ऐसा आम युवा न सिर्फ यातायात के बारे में स्वयं जागृत होगा, बल्कि दूसरों को भी यातायात के प्रति जागरूक कर सकेगा।
इसके लिए मध्य प्रदेश शासन से भी सहायता ली जा सकती है कि वह पार्ट टाइम युवाओं के लिए ऐसा रोजगार मुहैया कराए ताकि उन युवाओं को हम यातायात नियमों के लिए यातायात सिपाही के रूप में पदस्थ कर सकें।
इस प्रयोग से इंदौर यातायात व्यवस्था की एक मिसाल बनेगा, ताकि इंदौर की सफलता के बाद इसे दूसरे बड़े शहरों में भी लागू किया जा सके।