
ग्यारहवां / बारहवां समापन दिवस –
(गोलू देवता मंदिर, भीमताल, हनुमान गढ़ी, पंतनगर, इंदौर)
Travel Diary-11-12 : आदि कैलाश की अलौकिक यात्रा : ‘आह’ को ‘अहा’ में बदलने की उम्मीद,गोलू देवता मंदिर !
महेश बंसल, इंदौर
सुबह होटल से निकलते ही कुछ ही दूर चले थे कि गाड़ी को रोकना पड़ा —
एक घर के बाहर विशाल आँगन में सावनी के बड़े-बड़े पेड़
फूलों से ऐसे लकदक थे मानो स्वयं वर्षा ऋतु ने आभूषण पहन लिए हों।
हमारे इधर सावनी अधिकतर गमलों में लगती है,
या कभी-कभी ज़मीन में भी,
लेकिन इतने बड़े वृक्षों पर फूली सावनी पहली बार देखी थी।
सुबह का यह दृश्य, दिन के लिए एक सौम्य शुभारंभ बन गया।
विडियो -ट्रम्पेट लता
घोड़ाखाल – जहाँ घंटी नहीं, आत्मा बाँधते हैं
हम पहुंचे घोड़ाखाल के गोलू देवता मंदिर —
एक ऐसा स्थान जहाँ आस्था श्रृंगार नहीं, संवाद बन जाती है।
पर्वत की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर बाहर से सादा,
पर भीतर गहन ऊर्जा से भरा हुआ है।
वृक्ष, पाईप, रेलिंग – हर कहीं तो घंटियां लदी थी। यही नहीं घंटियों पर भी घंटियां टंगी थी। उन सभी असंख्य घंटियों में सफेद कागज पर लिखी, घड़ी की हुई बंद चिट्ठीयां बंधी थी।

हर घंटी, जैसे किसी की प्रार्थना की चुप गूंज हो।
कोई नई थी, कोई इतनी पुरानी कि जंग से ढँकी हुई।
यहाँ दान नहीं, दरख़्वास्त दी जाती है –
सफेद कागज़ पर अर्ज़ी,
जिसे मौली से बाँधकर घंटी में लटका दिया जाता है।
हमने वहाँ कुछ खुली चिट्ठियाँ भी देखीं —
शायद यह सोचकर बाँधी गईं कि देवता को चिट्ठी खोलने का कष्ट न उठाना पड़े,
या खुली रखने से प्रार्थना जल्दी सुनी जाए।
चिट्ठी क्रमांक 1: संपादित अंश
तीन बातें —
बेटे की शादी नहीं हो रही,
परिवार में संपत्ति विवाद,
और छोटे बेटे को संतान नहीं मिल रही।
अंत में लिखा था —
“कार्य पूर्ण होने पर आपके पवित्र स्थान पर आकर
अपनी इच्छा शक्ति अनुसार भोग चढ़ाऊँगा।”
चिट्ठी क्रमांक 2: संपादित अंश
“पुत्र पैसा उधार बाँट देता है,
परिवार पर ध्यान नहीं देता,
मेरा क्लिनिक आज तक नहीं बन पाया — कृपा करें।”
चिट्ठियों में नाम, पता व फोन नंबर भी लिखें थे।
यहाँ हर घंटी साक्षी है किसी निर्णय की,
हर पत्र — किसी अनसुनी प्रार्थना का प्रत्यक्ष रूप।
लोग इस मंदिर को “घंटी वाला मंदिर” भी कहते हैं —
पर मेरे लिए यह मंदिर प्रार्थनाओं की अदालत है।
जहाँ ‘आह’ को ‘अहा’ में बदलने की उम्मीद जगती है।
विडियो -गोलू देवता मंदिर
भीमताल एवं सातताल
मंदिर से निकलकर पहुंचे भीमताल —
रास्ते में Brugmansia (Angel’s Trumpet) की महकती लहरें,
जिन्हें स्थानीय लोग धतूरा कहते हैं,
हमें अपनी ओर खींच रही थीं।
भीमताल — झीलों का सिरमौर।
झील के बीच टापू पर स्थित एक्वेरियम और चारों ओर हरियाली —
मन को गहराइयों में खींच लेने वाला दृश्य।

सत्ताल — सात झीलों का समूह
गरुड़ ताल, राम ताल, लक्ष्मण ताल, सीता ताल, नल-नील ताल, सुखा ताल, भरत ताल।
इनमें से कुछ झीलों तक गये,
कुछ को बस चलती गाड़ी की खिड़की से झाँककर ही देखा।
नौकुचियाताल और कमल ताल – जल में खिला सौंदर्य
विडियो -कमल ताल
नौ कोनों वाली झील – नौकुचियाताल,
175 फीट गहराई की यह झील शांत और भव्य है।
वहीं पास ही है कमल ताल,
जिसमें असंख्य लक्ष्मी कमल खिले हुए थे।
“कुछ कहेंगे –
‘इंदौर के गुलावट में भी तो लोटस वैली है!’
हाँ, वहाँ गया हूँ…
पर वह वॉटर लिली है, जो रात में खिलती है और दोपहर तक मुरझा जाती है।
पर यहाँ कमल संध्या 6 बजे तक खिले हुए थे।
यह कमल थे — स्थायित्व के प्रतीक।”
हमने दो शिकारों में बैठकर नौकुचियाताल का पूरा भ्रमण किया —
जल की लहरों पर झूलती शांति और कमल का सौंदर्य,
एक अद्भुत समापन का संकेत दे रही थी।
हनुमान गढ़ी – यात्रा का अंतिम पड़ाव
भीमताल स्थित हनुमान गढ़ी —

यह केवल मंदिर नहीं, एक विशाल आस्था-गर्भित परिसर है।
50 फीट ऊँची हनुमान प्रतिमा,
एक शांत ध्यान केंद्र, शिव मंदिर,
और नीब करोरी बाबाजी की मूर्ति —
यह स्थान श्रद्धा, शक्ति और शांति का अद्वितीय संगम था।

यह केवल आज का नहीं,
बल्कि सम्पूर्ण यात्रा का अंतिम पड़ाव था।
कल तो सिर्फ लौटना है,
पर आत्मा तो यहीं रह जाना चाहती थी।
यह पढ़े Travel Diary-7 : आदि कैलाश की अलौकिक यात्रा…चौकोरी – सौंदर्य और हरियाली की गोद में विश्रांति
यात्रा का समापन, स्वागत और विदाई
अगले दिन भीमताल से पंतनगर एयरपोर्ट के लिए प्रस्थान किया।
रास्ते में हल्द्वानी स्थित यति धाम मंदिर पर दर्शन किए।
जैसे यात्रा की शुरुआत वहीं से हुई थी,
वैसे ही पूर्णता भी वहीं प्राप्त हुई।
पंतनगर एयरपोर्ट पर वाहन एवं सारथियों से विदा ली, धन्यवाद ज्ञापित किया।
उड़ान 40 मिनट विलंबित रही,
दिल्ली एयरपोर्ट पर भागते-भागते इंदौर की फ्लाइट पकड़नी पड़ी।
पर जैसे ही इंदौर एयरपोर्ट पर उतरे —
अचानक, हमारे एक परिजन (जिनकी श्रीमतीजी भी यात्रा में साथ थीं)
अपने पुत्र के साथ मालाओं और मिठाइयों के साथ स्वागत हेतु खड़े मिले।
गुलाब और मोगरे की माला,
लड्डू और श्रीमद्भागवत की पुस्तक —
सिर्फ स्वागत नहीं था,
यह यात्रा का आत्मिक प्रसाद था।
अंतिम अनुभूति
“हम चले थे एक तीर्थ यात्रा पर,
और लौटे जीवन के नए अर्थ लेकर।
ये सिर्फ स्थान नहीं थे —
ये प्रकाश बिंदु थे —
जिन्होंने भीतर की यात्रा भी पूरी करवाई।”
यह यात्रा थी — शरीर की नहीं, आत्मा की। और यह प्रबंधन था — सुविधा का नहीं, श्रद्धा का। श्रद्धा, प्रकृति, प्रेम और मौन – इन चारों से सिंचित यह यात्रा अब पूर्ण हुई.

महेश बंसल, इंदौर
Travel Diary-10 : आदि कैलाश की अलौकिक यात्रा : चौकोरी से कैंची धाम, नैनीताल, और भीमताल
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