
आदि कैलाश यात्रा का आठवां दिवस
Travel Diary-8: आदि कैलाश की अलौकिक यात्रा-पाताल भुवनेश्वर एवं महाकाली मंदिर दो रहस्यात्मक तीर्थ!
महेश बंसल, इंदौर
प्रकृति के एक और चमत्कार से रूबरू होने हेतु, अल्पाहार के पश्चात हमारा काफिला निकल पड़ा — पाताल भुवनेश्वर। यह एक रहस्यमयी, पवित्र और पौराणिक गुफा है, जो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले के गंगोलीहाट ब्लॉक में स्थित है। यह स्थल न केवल प्राकृतिक आश्चर्य है, बल्कि सनातन धर्म की गहराई में डूबे लोक, काल और आत्मा से जुड़ा दिव्य स्थान है।
वहाँ पहुँचने पर मोबाइल जमा कराना पड़ा, क्योंकि गुफा में फ़ोटोग्राफी पूर्णतः प्रतिबंधित है। प्रवेश शुल्क की रसीद पर टोकन नंबर लिखा जाता है — हमारा टोकन था 111. पहले 90 टोकन वाले श्रद्धालु गुफा में प्रवेश कर चुके थे। उनके लौटने के बाद, टोकन नंबर 91 से 111 के लगभग 50 श्रृद्धालुओं को प्रवेश की अनुमति मिली।
गुफा का प्रवेश द्वार अत्यंत संकरा है, जहाँ रेंगकर, बैठकर, और कहीं-कहीं खड़े होकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। लगभग 90 फुट गहराई तक लोहे की जंजीरों के सहारे उतरा जाता है। इस कारण घुटनों की तकलीफ या श्वास में असुविधा वालों को इसमें जाने की सलाह नहीं दी जाती। हमारे 14 सदस्यीय समूह में से केवल 7 सदस्य इस अनूठे अनुभव का भाग बने।
पाताल भुवनेश्वर चूना पत्थर की एक प्राकृतिक गुफा है, जो उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट नगर से १४ किमी दूरी पर स्थित है। इस गुफा में धार्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई प्राकृतिक कलाकृतियां स्थित हैं। यह गुफा भूमि से ९० फ़ीट नीचे है, तथा लगभग १६० वर्ग मीटर क्षेत्र में विस्तृत है।
इस गुफा की खोज राजा ऋतुपर्णा ने की थी, जो सूर्य वंश के राजा थे और त्रेता युग में अयोध्या पर शासन करते थे। स्कंदपुराण में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहां आते हैं।

गुफा के भीतर एक पंडित जी (गाइड) टॉर्च की रोशनी में शिला-प्रतीकों की व्याख्या कर रहे थे। उन्होंने हमें बताया कि गुफा में हर चट्टान, हर बूंद, हर नमी — सबमें दैवीय संकेत छिपे हैं। और सच में, वहाँ देखा:

पाताल भुवनेश्वर के प्रमुख प्रतीक चिन्ह
शेषनाग की आकृति – एक विशाल पत्थर, जो प्रतीत होता है मानो पृथ्वी को थामे हुए है।
लगातार बढ़ता शिवलिंग – मान्यता है कि जब यह शिवलिंग गुफा की छत को छू लेगा, तब सृष्टि का अंत होगा।
गजानन का मस्तक – शिव के क्रोध से पृथक किया गया मस्तक यहीं सुरक्षित रखा गया।

जनमेजय का हवन कुंड – जिसमें नाग यज्ञ के दौरान असंख्य सर्प भस्म हुए थे।
ब्रह्मा जी का हंस – पत्थर में उकेरी गई पवित्र आकृति।
एक हजार पांव वाला हाथी – एक दुर्लभ दृश्य, जो आश्चर्यचकित कर देता है।
कल्पवृक्ष – इच्छाओं की पूर्ति के प्रतीक स्वरूप एक अद्भुत शिला।
कैलाश पर्वत की प्रतिकृति – जो वहाँ बैठे-बैठे आपको मानसरोवर के दर्शन कराने का आभास देती है।
चार द्वार – धर्म, अधर्म, मोक्ष और पाप के प्रतीक, जो भविष्य में खुलने की मान्यता है।
युग-चक्र – गुफा में चारों युगों (सत्य, त्रेता, द्वापर, कलियुग) से जुड़े प्रतीक।
इन प्रतीकों के दर्शन श्रद्धा से अधिक एक मौन चमत्कार की अनुभूति देते हैं — जहाँ शब्द नहीं, अनुभूति बोलती है।
पाताल भुवनेश्वर कोई साधारण गुफा नहीं, यह लोक, काल और आत्मा के पार ले जाने वाला हिमालय का मौन द्वार है – जहाँ हर शिला एक देवता है, और हर बूंद एक मंत्र।
गुफा से निकलकर हम सब श्रद्धा, विस्मय और आत्मतोष से भर गए। मोबाइल प्राप्त कर, हमारा अगला पड़ाव था — महाकाली मंदिर, रावलगांव।

महाकाली मंदिर, रावलगांव
घुमावदार पहाड़ी रास्तों से होते हुए, जब रावलगांव स्थित मंदिर का स्वागत द्वार दिखा, तो धर्म और देशभक्ति दोनों भाव जागृत हो उठे — यह द्वार कुमाऊं रेजीमेंट द्वारा निर्मित था। गर्भगृह तक पहुँचने वाली सीढ़ियों पर अनगिनत घंटे एवं घंटियां लटके थे। जिनमें से एक विशाल घंटा भी कुमाऊं रेजीमेंट द्वारा भेंट किया गया था।

यह स्थान प्राचीन शक्तिपीठ माना जाता है, जिसका उल्लेख स्कंद पुराण (मानसखंड) में आता है। आदि शंकराचार्य ने यहाँ छठी सदी में देवी की उग्र शक्ति को तंत्र के माध्यम से शांत किया और मंदिर की पुनर्स्थापना की।

पौराणिक और लोक-कथाएँ
1- दैत्य सुम्या (या महिषासुर) का वध यहीं देवी काली ने किया।
2- कहा जाता है कि रात्रि में मंदिर में देवी का “डोला चलना” अनुभव होता है — अर्थात रात्रि विश्राम के संकेत।
3- 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय, सेना द्वारा देवी से की गई प्रार्थना से एक डूबता जहाज बचा। तब से यह मंदिर कुमाऊं रेजीमेंट की आधिकारिक श्रद्धा का केंद्र बन गया।

शंख, घंटियों और पवन में उड़ती पताकाओं के बीच मंदिर परिसर का अनुभव दिव्यता और वीरता का अनूठा संगम था।
रात्रि में आश्रय स्थल लौटकर, भोजन के बाद सभी अपने-अपने कमरों में विश्राम हेतु चले गए। पर मन तो अब भी पाताल भुवनेश्वर की गहराई और महाकाली की चेतना में डूबा हुआ था।
(क्रमशः)

महेश बंसल, इंदौर
(पाताल भुवनेश्वर में मोबाइल प्रतिबंधित होने से, यहां के कुछ चित्र गुगल के सौजन्य से)
(कल के अंक में सरयू एवं गोमती नदी संगम एवं बैजनाथ बैराज के वीडियो)
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