खजुराहो में जनजातीय गांव पर्यटकों के लिए बना आकर्षण का केंद्र
राजेश चौरसिया की रिपोर्ट
छतरपुर : विश्व संग्रहालय दिवस के अवसर पर आइए जानते हैं जनजातीय समाज की संस्कृति और जीवनशैली को, जिसे बेहद ही रोचक तरीके से प्रदर्शित किया गया है, मध्यप्रदेश के खजुराहो के आदिवर्त मध्यप्रदेश जनजातीय एवं लोक कला राज्य संग्रहालय में। खजुराहो के मध्य में स्थित यह संग्रहालय सांस्कृतिक समृद्धि का खजाना है, जो आगंतुकों को कई नए अनुभव प्रदान करता है। दो भागों में विभाजित, इसमें मध्य प्रदेश की सात प्रमुख जनजातियों के आवासों को प्रदर्शित किया गया है, जहां इन समुदायों के जीवन, कला और संस्कृति को जानने का मौका मिलेगा।
खजुराहो पूरी दुनिया में प्राचीन और मध्यकालीन मंदिरों के लिए विश्वविख्यात है। यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत की सूची में शामिल किया है। अब खजुराहो को एक नई पहचान मिली है। जनजातीय संस्कृति और कलाओं को सहेजने के लिए यहां आदिवर्त संग्रहालय का निर्माण करवाया गया है। आदिवर्त संग्रहालय प्रदेश की जनजातीय और लोक कला का अद्भुत संगम है। पर्यटकों को मध्यप्रदेश के अंचलों, जनजातियों की सभ्यता और संस्कृति से परिचित कराने के लिए इसका निर्माण करवाया गया है।
मध्यप्रदेश टूरिज्म बोर्ड संग्रहालय को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया जा रहा है। संग्रहालय में 7 जनजातियों की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।
मध्यप्रदेश में भोपाल और उज्जैन के बाद यह तीसरा जनजाति संग्रहालय है, जिसकी शुरुआत छतरपुर जिले के खजुराहों में की गई है। सभ्यता और संस्कृति से परिचित होने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पर पहुंच रहे हैं, जिससे क्षेत्र के पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है।
आदिवर्त में गौंड, भील, भारिया, कोल, सहरिया, बैगा, कोरकु जातियों का एक जगह संगम कर इनका रहन-सहन, खाना-पान, वेशभूषा को दिखाया गया है।
संग्रहालय खजुराहो के प्रभारी अशोक मिश्रा ने बताया कि खजुराहो आने वाले पर्यटक एक ही स्थान पर मध्य प्रदेश की बिभन्न जनजातियों की संस्कृति एवं उनके रहन सहन से परिचित हो रहे हैं। मध्य प्रदेश की सात लोक जनजातियों के अलावा राज्य के पांच जनपदों बुंदेलखंड, बघेलखंड, मालवा, निमाड़ एवं चंबल के लोक समुदायों की संस्कृति एवं विशिष्टता को भी यहां प्रदर्शित किया गया है।