तुलसी विवाह : आत्मा और परमात्मा के दिव्य मिलन का वैदिक उत्सव

346

तुलसी विवाह : आत्मा और परमात्मा के दिव्य मिलन का वैदिक उत्सव

Dr. Tej Prakash Poornanand Vyas, Ph.D., D.Litt. (Sanskrit, Sanskar, Sanskruti & Sanatan Dharma)

 

*तुलसी – शुद्धता, श्रद्धा और समर्पण की जीवित प्रतीक*

भारतीय संस्कृति में प्रत्येक उत्सव केवल परंपरा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शिक्षा है।

तुलसी विवाह ऐसा ही एक अद्भुत उत्सव है — जहाँ वृन्दा देवी (तुलसी माता) का विवाह भगवान विष्णु (शालिग्राम रूप) से होता है।

यह विवाह केवल दो दिव्य रूपों का नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के पवित्र मिलन का प्रतीक है।

कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और समस्त सृष्टि में शुभ कार्यों का आरंभ होता है। उसी दिन तुलसी विवाह का आयोजन होता है — यह चातुर्मास के अंत और नवशुभारंभ का द्योतक है।

*तुलसी की दिव्यता : वेदों और पुराणों में तुलसी महिमा*

स्कन्दपुराण में कहा गया है

“तुलसीं या स्मरेन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते।

तुलसीं या स्पृशेद्भक्त्या सर्वतीर्थफलानि च॥”

— स्कन्दपुराण

जो भक्त तुलसी का स्मरण करता है, वह सभी पापों से मुक्त होता है;

जो भक्त तुलसी को स्पर्श करता है, उसे समस्त तीर्थों का फल प्राप्त होता है।

पद्मपुराण, व्रतकल्पद्रुम, और तुलसीमहात्म्य में तुलसी को विष्णुप्रिया, हरिप्रिया, और लक्ष्मीस्वरूपा कहा गया है।

आयुर्विज्ञान की दृष्टि से भी तुलसी पौधा यूजेनॉल और कैरियोफिलीन जैसे यौगिकों से युक्त है, जो प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने, फेफड़ों की शुद्धि, मानसिक शांति और हृदय स्वास्थ्य में सहायक हैं।

पौराणिक कथा : वृन्दा और भगवान विष्णु का दिव्य मिलन

वृन्दा देवी जलंधर नामक असुरराज की पतिव्रता पत्नी थीं।

उनकी सतीत्व शक्ति के कारण जलंधर अजेय बन गया था। देवताओं ने जब भगवान विष्णु से धर्म रक्षा की प्रार्थना की, तब विष्णु जी ने जलंधर का रूप धारण कर वृन्दा के सम्मुख प्रकट हुए।

वृन्दा ने उन्हें पति समझकर उनका स्पर्श किया और उसी क्षण उसका सतीत्व भंग हुआ।

इसके फलस्वरूप जलंधर का वध हुआ।

जब वृन्दा को सत्य का ज्ञान हुआ, तो उन्होंने विष्णु भगवान को श्राप दिया —

“हे विष्णो! तुम शिला रूप में परिणत हो जाओ।”

श्राप के प्रभाव से विष्णु भगवान शालिग्राम रूप में प्रकट हुए।

परंतु उन्होंने आशीर्वाद दिया

“हे वृन्दा! तुम पृथ्वी पर तुलसी के रूप में जन्म लोगी, और प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में मेरा तुमसे विवाह होगा

यही तुलसी विवाह का आरंभ माना गया।

*गणेश जी और तुलसी माता का श्राप : एक अन्य कथा*

गणेशपुराण के अनुसार तुलसी माता गणेश जी से विवाह करना चाहती थीं, परंतु गणेश जी ने ब्रह्मचर्य व्रत का कारण बताते हुए उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।

क्रोधित होकर तुलसी माता ने गणेश जी को श्राप दिया कि —

“तुम्हारा विवाह दो बार होगा।”

गणेश जी ने प्रतिश्राप दिया

“तुम एक असुर से विवाह करोगी और मेरी पूजा में तुम्हारा प्रयोग कभी नहीं होगा।”

इस कारण तुलसी का विवाह असुर जलंधर से हुआ और पश्चात वह तपस्या करके विष्णु भगवान से हरिप्रिया रूप में विवाह कर पाईं।

इसीलिए गणेश पूजा में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती, जबकि विष्णु पूजा में तुलसी अनिवार्य मानी जाती है।

*तुलसी विवाह की पूजा-विधि और श्रृंगार:

पूजन विधि (Puja Vidhi)*

1. स्थान शुद्धि – घर या आंगन जहाँ तुलसी का पौधा हो, उसे गंगाजल से पवित्र करें।

2. मंडप सज्जा – तुलसी को लाल या पीली साड़ी, चुनरी, चूड़ी, बिंदी, सिंदूर और हल्के आभूषणों से सजाएँ।

3. शालिग्राम स्थापना – भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप को पीले वस्त्र पहनाकर तुलसी के समीप स्थापित करें।

4. विवाह अनुष्ठान – विवाह मंत्रों, वरमाला और सप्तपदी की विधि पूरी करें।

5. आरती और मंगलगान – “जय तुलसी माता, जय जय शालिग्राम” के मंगल गीत गाएँ।

6. प्रसाद वितरण – पंचामृत, खीर, या मिष्ठान अर्पण करें और भक्तों में बाँटें।

श्रृंगार विधि

तुलसी माता को लाल साड़ी, मंगलसूत्र, हार, नथ, बिंदी, और चूड़ियों से सजाएँ।

चारों ओर दीपक जलाएँ, फूलों की रंगोली बनाएँ, और तुलसी के चरणों में अक्षत, चंदन, और पुष्प अर्पित करें।

*तुलसी विवाह में उच्चारित करने योग्य 11 दिव्य संस्कृत श्लोक*

1. “तुलसीं या स्मरेन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते।” — स्कन्दपुराण

2. “एक तुलसीदलं विष्णवे यः प्रयच्छति श्रद्धया। स सर्वयज्ञफलं लभते॥” — पद्मपुराण

3. “देवि तुलसि हरेः प्राणवल्लभे नमोऽस्तु ते।” — तुलसीमहात्म्य

4. “तुलसीदलविना विष्णोः पूजां यः कुरुते नरः। स याति नरकं घोरं सर्वयज्ञविवर्जितः॥” — पद्मपुराण

5. “पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।” — श्रीमद्भगवद्गीता (9.26)

6. “भक्तिरेव गरीयसी।” — नारदभक्ति सूत्र

7. “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।” — यजुर्वेद

8. “अहिंसा परमो धर्मः।” — महाभारत

9. “सत्यं वद धर्मं चर।” — तैत्तिरीयोपनिषद्

10. “श्रद्धया देयं, अश्रद्धया अदेयम्।” — कठोपनिषद्

11. “माँ तुलसी सर्वमङ्गला सर्वपापप्रणाशिनी।” — तुलसीस्तोत्रम्

*वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और आध्यात्मिक समन्वय*

तुलसी पौधा 24 घंटे ऑक्सीजन उत्सर्जन करता है।

इसकी उपस्थिति से कार्बन-डाइऑक्साइड, बैक्टीरिया और विषैली गैसें कम होती हैं।

वैज्ञानिक रूप से, तुलसी के समीप ध्यान और श्वसन करने से सेरोटोनिन व डोपामिन का स्राव बढ़ता है — जिससे मन की शांति, प्रसन्नता और अंतःसंतुलन मिलता है।

इसलिए तुलसी विवाह केवल पूजा नहीं, बल्कि पर्यावरण, चिकित्सा और अध्यात्म का संगम है।

*आधुनिक युग में तुलसी विवाह का संदेश*

1. भक्ति और क्षमा का आदर्श – वृन्दा का श्राप प्रेम में परिवर्तित हुआ; यह क्षमा की चरम सीमा है।

2. प्रकृति का सम्मान – तुलसी हमें सिखाती हैं कि पौधे केवल जैव तत्व नहीं, बल्कि दैवी ऊर्जा के वाहक हैं।

3. गृहस्थ जीवन का शुद्धीकरण – जहाँ तुलसी होती है, वहाँ लक्ष्मी और विष्णु का वास होता है।

4. समर्पण और संतुलन का सन्देश – आत्मा जब अहंकार त्यागकर ईश्वर में विलीन होती है, तभी जीवन पूर्ण बनता है।

*तुलसी विवाह — श्रद्धा, प्रेम और आत्मशुद्धि का शाश्वत पर्व*

“भक्ति बिना न होई सनेहा।

सुख-दुःख-सम्मान-अभिमान ते रहित प्रेम पथ एकहि देहा॥” — श्रीरामचरितमानस

तुलसी विवाह हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम अपेक्षा नहीं, समर्पण है।

तुलसी माता और भगवान विष्णु का यह मिलन दैवी प्रेम, भक्ति, और आत्मशुद्धि का प्रतीक है।

यह पर्व हर भारतीय के हृदय में अनंत काल तक अमर रहेगा, क्योंकि जहाँ तुलसी है, वहाँ धर्म, समृद्धि और दिव्यता का वास है।

संदर्भ:

पद्मपुराण | स्कन्दपुराण | तुलसीमहात्म्य | व्रतकल्पद्रुम | श्रीमद्भागवतपुराण | Organiser.org (2024) | JKP.org.in | Chamundaswamiji.com | ResearchGate Studies on Ocimum sanctum (Tulsi) | Tulsi: A Journey Through Its Spiritual and Medicinal Legacy (2023) | Wisdomlib.org | Speakingtree.in

|| हरि तुलसी विवाही आज, मंगलमय सब काज ||

जय तुलसी माता – जय शालिग्राम हरि.