Tunnel Accident : सुरंग में 9 दिन से फंसे 41 मजदूरों की हालत ख़राब, सिर्फ प्रयोग हो रहे!
Dehradun : उत्तरकाशी सुरंग हादसे में 9 दिन बाद अभी भी 41 मजदूर फंसे हुए हैं। इन मजदूरों को बचाने के रोज नए प्रयोग हो रहे हैं। समय बीतने के साथ उम्मीद आगे खिसकती जा रही है। इन मजदूरों के परिवार वालों को आशा है कि बचाव दल को सफलता मिलेगी। तीन प्रयोग फेल हो गए, अब इंदौर से एक ड्रीलिंग मशीन भेजी गई है, जिससे मजदूरों को बचाने की कोशिश हो रही है। यह बात भी सामने आई कि सुरंग में आपात रास्ता बनाया जाना था, जो नहीं बनाया गया।
12 नवंबर को उत्तराखंड की निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग एक तरफ से धंस गई थी। तब से सुरंग में फंसे 41 लोगों को बचाने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन, अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है। मजदूरों के स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता बढ़ रही हैं। अब यह भी सामने आया कि इस सुरंग से आपात स्थिति में निकलने का इमरजेंसी रास्ता प्लान में था, लेकिन वह बनाया नहीं गया। एक नक्शा सामने आया, जो सुरंग बनाने वाली कंपनी की गंभीर चूक की तरफ इशारा करता है।
मानक संचालन प्रक्रिया (Standard operating procedure) के अनुसार, तीन किलोमीटर से अधिक लंबी सभी सुरंगों में आपदा के हालात में लोगों को बचने के लिए निकलने का रास्ता होना चाहिए। नक्शे से पता चला कि साढ़े 4 किलोमीटर लंबी सिल्कयारा सुरंग के प्लान में भी बचकर निकलने के लिए एक मार्ग बनाया जाना था, लेकिन यह रास्ता बनाया ही नहीं गया।
आपात रास्ता नहीं बनाया गया
बचाव टीमें रविवार से सुरंग में फंसे मजदूरों को बचाने के लिए नए प्लान बना रही हैं। शनिवार शाम सुरंग में जोर से कुछ टूटने की आवाज सुनाई देने के बाद अमेरिकी ड्रिल मशीन ने भी काम करना बंद कर दिया। मजदूरों के परिवारों के कुछ सदस्यों और निर्माण में शामिल अन्य श्रमिकों ने कहा कि अगर आपात रास्ता बनाया गया होता, तो अब तक मजदूरों को बचाया जा सकता था। इस तरह के बचाव रास्तों का उपयोग सुरंग निर्माण के बाद भी किया जाता है। सुरंग के किसी हिस्से के ढहने, भूस्खलन या किसी अन्य आपदा के हालात में फंसे वाहनों में सवार लोगों को इस तरह के रास्ते से निकालते हैं।
सुरंग का यह नक्शा तब सामने आया जब केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने गुरुवार को सुरंग ढहने वाले स्थान का दौरा किया। उन्होंने कहा था कि मजदूरों को दो-तीन दिनों में बचा लिया जाएगा। सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्यमंत्री ने कहा था कि बचाव कार्य जल्द पूरा किया जा सकता है, यहां तक कि शुक्रवार तक भी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अब तक के बचाव प्लान जो असफल हुए
मजदूरों को बाहर निकालने के अब तक तीन तरीके आजमाए जा चुके हैं। प्लान-ए के तहत मलबे को हटाने और मजदूरों तक पहुंचने के लिए बुलडोजर का उपयोग करना था। लेकिन, टीमों को एहसास हुआ कि चट्टान ढीली हैं और मलबे को हटाने के बाद उसकी जगह और अधिक मलबा आने की आशंका है, इसलिए यह योजना छोड़ दी गई।
प्लान-बी में फंसे हुए मजदूरों तक 900 मिलीमीटर के व्यास वाला पाइप पहुंचाने के लिए एक बरमा मशीन का उपयोग किया जा रहा था। इस पाइप में से उन्हें रेंगकर बाहर निकालने की योजना थी। लेकिन, बरमा मशीन बहुत पावरफुल नहीं थी, तो यह योजना भी फेल हो गई।
प्लान-सी के तहत एक मजबूत और अधिक ताकतवर अमेरिकी ड्रिल मशीन भारतीय वायुसेना के विमान से लाई गई। इस मशीन से गुरुवार को मलबे में ड्रिलिंग शुरू की गई। इससे मलबे में छेद की गहराई शुरुआती 40 से बढ़कर 70 मीटर हो गई। लेकिन, टूटने की एक आवाज सुनाई देने के बाद शुक्रवार की शाम को मशीन का काम करना बंद कर दिया गया।
अब नए प्लान पर काम शुरू किया गया
अब प्लान-डी पर अब काम शुरू हुआ है। इंदौर से एक और हॉरिजोंटल ड्रिलिंग मशीन बचाव स्थल पर लाई गई है। आशा है कि इस उपकरण का यह हिस्सा पाइप को अंदर धकेल सकेगा और पाइप मजदूरों तक पहुंच जाएगा। प्लान-डी के विफल होने के हालात में प्लान-ई और एफ आकस्मिक योजनाएं हैं। पहली आकस्मिक योजना में यह पता लगाया जा रहा है कि क्या सुरंग जिस चट्टान से होकर गुजर रही है, उसके ऊपर से ड्रिल द्वारा एक छेद किया जा सकता है और मजदूरों को उस रास्ते से बाहर निकाला जा सकता है? रेलवे की ओर से लाई गई अंतिम योजना में चट्टान के दूसरे छोर से एक समानांतर हॉरिजोंटल सुरंग खोदने का सुझाव है। यह सुरंग मुख्य सुरंग से उस स्थान पर मिलेगी जहां मजदूर फंसे हैं।