Tushar Arun Gandhi को सुनते हुए”-वार्ता का विषय था “लोकतंत्र में धार्मिक पहचान”

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Tushar Arun Gandhi

Tushar Arun Gandhi को सुनते हुए”-वार्ता का विषय था “लोकतंत्र में धार्मिक पहचान”

इरा श्रीवास्तव ,लखनऊ

साझी दुनिया की तरफ से कल शाम पांच बजे का कार्यक्रम था । मैं सवा पांच पहुंची। तब तक प्रेस क्लब की तमाम सीटें भर चुकी थीं। सौभाग्य से पीछे कोने में एक सीट मुझे मिल गई।
रूपरेखा जी के आमंत्रण पर तुषार जी ने माइक संभाला। वार्ता का विषय था “लोकतंत्र में धार्मिक पहचान”

तुषार जी का सबसे पहला वाक्य था…. देखिए मैं पूरी तरह से नास्तिक हूं और फिर भी आज इस विषय पर वार्ता के लिए उपस्थित हूं । अपनी कहूं तो मुझे लगता है कि धर्म को भुनाते हुए आज मुल्क में जो स्थितियां बनाई जा रही है उनमें तो हर व्यक्ति का नास्तिक हो जाना ही ऐसी स्थिति से निपटने का विकल्प लगता है। ….भारत को अगर बचाना है तो इसे धर्म निरपेक्ष राष्ट्र से नास्तिक राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए। वरना धर्म की आड़ में हमारे राष्ट्र को खत्म करने की साज़िश होती ही रहेगी। देखिए मेरे शब्द कड़वे लगेंगे लेकिन …..

वो अपनी बात कह ही रहे थे कि औसत कद काठी का एक शख्स कैमरा संभाले तुषार जी के पोडियम के एकदम सामने सट कर खड़ा हो गया और उनकी फोटो लेने लगा।
वो शायद किसी समाचार पत्र का रिपोर्टर रहा होगा। अपने काम को अंजाम देते हुए वो उस स्टैंड के भी एकदम सामने आ खड़ा हुआ था जिसमें फोन द्वारा तुषार जी के भाषण की रिकॉर्डिंग हो रही थी। जो व्यक्ति इस रिकॉर्डिंग को मैनेज कर रहा था उसने बेहद साधारण तरीके से कैमरामैन को मोबाइल के सामने से हटने को बोला ताकि रिकॉर्डिंग ठीक से हो सके। कैमरा वाला शख्स तुरंत पलटा और घूरते हुए बोला अरे तो बताओगे कैसे खींचूं फोटो ।
अगले ने बोला यार थोड़ा किनारे हो जाओ।

ये बहस तेज आवाज में तुषार जी के भाषण के बीच शुरू हो गई। तुषार जी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा “बस बस भइया बस। यार हम यहां एक जरूरी बात कह रहे हैं और तुम एक फोटो के ऊपर लड़ रहे हो उनका काम भी जरूरी है …..

वो अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए कि कैमरा वाला हत्थे से उखड़ गया और तेज आवाज में बोला तो वही करा लीजिए आप… हम चले जा रहे है… उसकी रिकॉर्डिंग ज्यादा जरूरी है तो वही करवा लो, मेरा क्या काम ..कहते हुए वो मुड़ा और बड़बड़ाते हुए बाहर जाने लगा

तुषार जी ने कहा भी कि भाई तुम भी जरूरी हो और वो भी। आप दोनों साथ रह सकते है यहां…किंतु कैमरा वाला व्यक्ति जो कि फिलहाल मुझे नहीं पता किस अखबार से था और नहीं पता कि वो क्यों इस कदर गुस्से से भरा था, उल्टे पांव वापस लौट गया।

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संभव है सारा दिन फील्ड में खपने के बाद बॉस द्वारा यहां भेजा जाना उसे बेहद नागवार गुजरा हो, या संभव है बहुत कम तनख्वाह में वो अपने काम से ही असंतुष्ट हो, या हो सकता है घर में झगड़ कर आया हो। और ये सब न हो तो हो सकता है वो बापू का नहीं बल्कि गोडसे का समर्थक हो और बापू के परपोते की वार्ता को कवर करना उसे कतई पसंद न आ रहा हो।

बहरहाल कारण जो भी रहा हो पर उसका इस तरह बोलना सबको अखरा था। तुषार जी ने भी कहा आप देख ही रहे है ये हम तुरंत जो आक्रामक पोजीशन ले लेते है, ये दिखाता है कि कितनी कट्टरता आ गई है हमारे अंदर… धैर्य अब लोगों के भीतर से चुक रहा है, हम कुंठित होते जा रहे हैं। हम उलझा दिए जाते है…..

व्यवधान के रूप में इस छोटे से वाक्ये ने, तुषार जी के पर बाबा महात्मा गांधी जो अहिंसा के पुजारी थे उनकी वैचारिक उपस्थिति तक को भी अब सपना सा महसूस करा दिया था।

बहरहाल इसे भुला अंत तक एक अच्छी वार्ता को सुनने के बाद जब लौटने के लिए मोबाइल से ऊबर बुक करानी चाही तो साहब नेटवर्क गायब था। सौभाग्य से तभी एक ऑटो वाला रुका जो अपनी सवारी को वही उतार रहा था। पेमेंट हो जाने पर हम ने पूछा भैया गोमतीनगर चलोगे। वो तैयार हो गया।

क्या लोगे मैंने पूछा।

आप क्या देंगी।

देखो भाई अभी एक सौ तीस में आई हूं नेटवर्क नहीं है वरना ऐप से बुक कर लेती। मैंने झूठ कहा । आई मैं एक सौ तिरपन में थी। पर मोल तोल करके बीस तीस बचा लेने का अपना सुख होता है।

बीस और दे दो वो बोला

नहीं भाई । अभी जरा दूर पैदल जाऊंगी चौराहे से पॉलिटेक्निक का ऑटो मिल जाएगा। कुल तीस में घर पहुंच जाऊंगी। तुमको सौ ज्यादा दे रही हूं बीस कम नहीं। मैंने तर्क रखा।

ऑटो वाला अच्छे मूड में था। किसी से लड़ झगड़ कर नहीं आया था। वो हंसा “अरे तो चौराहा कौन सा यहां धरा है खासा दूर है मैडम। चलिए एक सौ तीस सही” वो बोला और जाने को तैयार हो गया।

बातों बातों में पता चला उसका नाम मुश्ताक है। पर ये नाम मुझे किसी भय या आतंक का पर्याय नहीं बल्कि केवट का विकल्प लगा जो भयानक जाम से बचते बचाते, बिना रेड लाइट वाली जानी अनजानी गलियों से होते हुए मुझे जल्द से जल्द घर पहुंचाने में लगा था ।

रास्ते भर हमने ट्रैफिक जाम , गाड़ियों की बढ़ती संख्या, और उसके घर परिवार की तमाम बातें की। पूरे रास्ते भर उसके ऐप पर कुछ राइड बुकिंग की जानकारी आती रही जो मेरे द्वारा दिए जाने वाले एक सौ तीस रुपए से कम की ही थी जिसका मुझे संतोष रहा।

घर पहुंच कर पानी पी कर गला तर किया और यूं ही टीवी खोल कर यू ट्यूब पर न्यूज चैनल लगा लिया।
सभी चैनल पहलगाम में हुए आतंकी हमले की खबरों से भरे पड़े थे। मजहब पूछ कर टूरिस्टों को डेलीब्रेटली निशाना बनाया गया था। उनसे धरती का स्वर्ग देखने की क़ीमत बदले में असली स्वर्ग दिखा कर वसूली गई थीं।

मन उदास हो उठा था। इस आतंकवादी हमले पर राजनीति शुरू हो गई थी। सऊदी से स्थिति पर नज़र रखी जा रही है। दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा ।
पर दोषी है कौन????

मुझे तुषार जी की बात याद हो आई थी
उन्होंने कहा था कि

” मैं जब कहता हूं कि मैं नास्तिक हूं तो मेरे ऊपर कई आक्षेप लगते है कि बापू तो सनातनी हिंदू थे, तू क्या उनसे बड़ा हो गया… पर वो जिस प्रकार के सनातनी हिंदू थे आज अगर बापू होते तो कहते मैं सनातनी हिंदू नहीं हूं। ……बापू जो अपनी धार्मिकता का ऐलान करते थे वो आज के जमाने में उन्होंने बंद कर दिया होता जब उन्होंने देखा होता कि उसका दुरपयोग कैसे किया जा रहा है “

तुषार अरुण गांधी (जन्म 17 जनवरी 1960) एक भारतीय लेखक और अरुण मणिलाल गांधी के पुत्र हैं, इस प्रकार महात्मा गांधी के परपोते हैं

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