पीएम के ‘पंच प्रण’ से सजा दिया चौबीस का रण!

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पीएम के ‘पंच प्रण’ से सजा दिया चौबीस का रण!

लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए जिस तरह से प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार और परिवारवाद से मुक्ति की बात कही, उसे देखते हुए यह बात शीशे की तरह साफ हो गई कि स्वाधीनता दिवस के इस अवसर को प्रधानमंत्री ने अपने और अपनी पार्टी के लिए एक अवसर के रूप में लेकर 2024 के आम चुनाव के लिए राजनीतिक मंच सजा ही दिया। अब इसे लेकर चाहे कितनी ही बातें की जाए, लेकिन लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने जो बातें कही वह दूर तलक जाएगी और कहीं न कहीं 2024 के चुनाव में भाजपा के लिए काम तो आएगी ही।

इस पन्द्रह अगस्त को लालकिले की प्राचीर से 130 करोड़ लोगों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले 25 साल की यात्रा को देश के लिए ‘अत्यंत महत्वपूर्ण’ करार देते हुए इस ‘अमृत काल’ में विकसित भारत, गुलामी की हर सोच से मुक्ति, विरासत पर गर्व, एकता और एकजुटता व नागरिकों द्वारा अपने कर्तव्य पालन के ‘पंच प्रण’ का आह्वान किया। जिस अंदाज से प्रधानमंत्री ने इन ‘पंच प्रण’ को जगजाहिर किया, उससे लोगों तक जो संदेश गया वह तो गया ही, लेकिन राजनीतिक पंडितों ने इससे यह कयास लगाना आरंभ कर दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव के लगभग 21 माह पहले ही उन्होंने सन 2024 का राजनीतिक रण सजा कर भाजपा के तथाकथित घोषणा पत्र का प्राक्कलन लिख दिया।

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विपक्ष की नजर में आमतौर पर मोदी राष्ट्रीय मुद्दों पर संसद के अंदर कम और संसद से बाहर ज्यादा मुखर होकर बातें करते हैं। नरेन्द्र मोदी की यह खासियत है कि वह ऐसे राजनीतिक गेंदबाज हैं, जो पिच देखकर अपनी बॉल डालते हैं या ऐसे बल्लेबाज हैं जो मौका देखकर चौका लगाते हैं। लगता है इस बार मोदी ने लालकिले की प्राचीर को अपना मनमाफिक पिच बना लिया और विपक्ष पर पंच प्रण के बम्पर डालकर उन्हें विचलित कर दिया।

देश के 76वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने भले ही यह कहा हो कि एक ऐतिहासिक दिन है और यह पुण्य पड़ाव, एक नई राह, एक नए संकल्प और नए सामर्थ्य के साथ कदम बढ़ाने का शुभ अवसर है। लेकिन, यदि गौर से उनके शब्दों की इबारत पर ध्यान दिया जाए, तो उन्होंने एक तरह से आगामी चुनाव के लिए भाजपा को एक नए सामर्थ्य के साथ आगे कदम बढ़ाने का अवसर प्रदान किया है। विपक्ष यह आरोप लगा सकता है कि पीएम ने लाल किले को राजनीतिक मंच बनाने का काम किया है। लेकिन। जिसके हाथ में पतंग की डोर होती है , वही तो उसे आसमान पर मनचाही ऊंचाई पर ले जाने का काम करता है। किस्मत से इस बार डोर मोदी के हाथों में है और वह इस खेल के पुराने और मंजे हुए खिलाड़ी है। नतीजतन उन्होंने वही किया, जो एक परिपक्व नेता करता है।

उन्होंने कहा कि जब वे 130 करोड़ देशवासियों के सपनों को देखते हैं और उनके संकल्पों की अनुभूति करते हैं तो आने वाले 25 साल के लिए देश को ‘पंच प्रण’ पर अपनी शक्ति, अपने संकल्पों और अपने सामर्थ्य को केंद्रित करना है। दरअसल यह देशवासियों के साथ साथ भाजपा का भी सपना है कि वह अपनी शक्ति, अपने संकल्पों और सामर्थ्य को केंद्रित कर 2024 में अपनी नैया को पार लगा सके। गौरतलब है यहां भी प्रधानमंत्री ने संकल्प पर ज्यादा जोर दिया है और यह संयोग ही है कि भाजपा के मेनिफेस्टो को भी प्रायः संकल्प पत्र ही कहा जाता है!

अपने उद्बोधन में प्रधानमंत्री ने जिन ‘पंच प्रण’ का उल्लेख किया, वह एक तरह से राजनीतिक लक्ष्य प्राप्ति का साधन भी है। उन्होंने विकसित भारत को पहला प्रण बताया और कहा कि इससे कुछ कम नहीं होना चाहिए। गुलामी की हर सोच से मुक्ति पाने को उन्होंने दूसरा प्रण बताया और कहा कि गुलामी का एक भी अंश अगर अब भी है, तो उसको किसी भी हालत में बचने नहीं देना है। उन्होंने कहा कि इस सोच ने कई विकृतियां पैदा कर रखी है, इसलिए गुलामी की सोच से मुक्ति पानी ही होगी। विकसित भारत, गुलामी और विकृतियों से मुक्ति कुछ ऐसी शब्दावलियां है, जिनका जिक्र वह अक्सर अपने चुनावी भाषणों में करते हैं। इसीलिए जब वे देश को संबोधित कर रहे थे तो लोग यह मान रहे थे कि वह किसी चुनावी रैली की दर्शक दीर्घा में बैठकर चुनावी संबोधन से मुखातिब हैं।

प्रधानमंत्री ने विरासत पर गर्व करने को तीसरा प्रण बताया और कहा कि यही वह विरासत है जिसने भारत को स्वर्णिम काल दिया है। उन्होंने एकता और एकजुटता को चौथा प्रण और नागरिकों के कर्तव्य को पांचवां प्रण बताया। एकता और एकजुटता दो ऐसे घटक हैं जो किसी भी पार्टी को चुनावी समर जीतने में मदद करते है। आज के राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए आज 2024 का चुनाव जीतने के लिए भाजपा को एकजुटता और एकता की जितनी जरूरत है उन्हें सत्ता से बेदखल करने का सपना करने वाले महागठबंधन के लिए भी यह प्रण लेने की उतनी ही जरूरत है। लेकिन, लगता नहीं कि महागठबंधन दीवारों पर लिखी इस इबारत को शिद्दत के साथ पढ़कर इसका अनुसरण करेगा।

प्रधानमंत्री ने जिस पांचवे प्रण नागरिक कर्तव्य का बोध कराया, उसके साथ यह भी कहा है कि चाहे देश का प्रधानमंत्री हो या किसी राज्य का मुख्यमंत्री सभी देश के नागरिक हैं और उन सभी को इन नागरिक कर्तव्यों का पालन करना ही होगा। ध्यान दीजिए जब प्रधानमंत्री चुनावी सभाओं में भाषण देते हैं, तब भी अपने आपको देश का प्रधान सेवक कह कर ही संबोधित करते हैं। इस बार उन्होंने थोडा घुमा फिराकर वही बात कह भी दी और किसी को सोचने का मौका तक नहीं दिया।

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अशोक जोशी

अशोक जोशी सामाजिक समेत कई विषयों के जाने-माने लेखक और अनुवादक हैं। हिंदी और अंग्रेजी में उनके कई लेख देश की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। वे रोजगार संबंधी काउंसलर भी रह चुके हैं।