राजस्थान की जाट राजनीति में आया ट्विस्ट
गोपेंद्र नाथ भट्ट की खास
नई दिल्ली। राजस्थान की राजनीति विशेष कर पश्चिमी राजस्थान की जाट राजनीति में हर चुनाव से पहले एक ट्विस्ट आता है। फिर इस बार भी विधान सभा चुनाव से पहले यह ट्विस्ट भला क्यों नही आता।राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस को एक बड़ा झटका लगा है।राजस्थान में कांग्रेस के दिग्गज जाट नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पोती और पूर्व कांग्रेस सांसद हरियाणा के एक उद्योगपति घराने से जुड़ी ज्योति मिर्धा एवं एक अन्य नेता सवाई सिंह चौधरी ने सोमवार 11 सितंबर को दिल्ली में राजस्थान के प्रभारी अरुण सिंह एवं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी की मौजूदगी में बीजेपी का दामन थाम लिया है। दोनों नेता बीजेपी में शामिल हुए।
इन दोनों नेताओं का जाट समुदाय में दबदबा है।इसलिए दोनों नेताओं का चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो जाना कांग्रेस और आर एल पी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इसे जाट बाहुल्य इलाके में बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक भी कहा जा रहा है,जबकि इस बड़े सियासी उलटफेर के बाद आर एल पी प्रमुख हनुमान बेनीवाल की मुश्किलें बढ़ती हुई नजर आ रही है।इन दोनों नेताओं के भाजपा में शामिल होने से ना सिर्फ नागौर की सियासत पर असर पड़ेगा. बल्कि राजस्थान के जाट बाहुल्य इलाकों में भी इसका असर देखने को मिलेगा. हनुमान बेनीवाल के खिलाफ चुनाव में खड़ी होकर पहले भी ज्योति मिर्धा ने उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर चुकी हैं. अब एक बार फिर से ज्योति मिर्धा ने हनुमान बेनीवाल के लिए नागौर एवं खासकर खींवसर में चुनौती का टक्कर दे सकती है।
आजादी के बाद से ही राजस्थान की राजनीति में अपना दबदबा बनाए रखा राजस्थान के दिग्गज जाट नेताओं में नागौर के बल राम मिर्धा नाथू राम मिर्धा राम निवास मिर्धा परिवार का वर्चस्व रहा। इसके बाद नटवर सिंह परस राम मदेरणा और अन्य कई जाट नेता हुए ।राजस्थान का शेखावटी इलाका जाट बाहुल है लेकिन सीकर, झुंझुनूं, नागौर के साथ जोधपुर क्षेत्र में जाट समाज का पॉलिटिक्स में बड़ा दखल रहा है। जबकि प्रदेश के जयपुर, चित्तौड़गढ़, बाड़मेर,भरतपुर, हनुमानगढ़, गंगानगर, बीकानेर, टोंक और अजमेर जिलों में भी जाट समाज चुनावी समीकरण बनाने और बिगाड़ने का दम रखता है।
इस मार्शल जाति जाट को अब तक यह मलाल रहा है कि उनका राजस्थान की राजनीति में हर दल ने केवल उपयोग ही किया लेकिन उनके किसी नेता को आज तक मुख्यमंत्री नही बनाया गया। एक दौ बार मौके आए भी सही लेकिन 1973 में हरिदेव जोशी के सामने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के पसंद का उम्मीदवार होने के बावजूद राम निवास मिर्धा विधायक दल में बहुमत हासिल नहीं करने की वजह से मुख्यमंत्री निर्वाचित नही हो सके। इसी प्रकार 1990 में कांग्रेस के विद्रोही सहित 13 निर्दलीय विधायकों के भैरों सिंह शेखावत के साथ चले जाने से नाथू राम मिर्धा को भी यह अवसर नही मिल पाया ।अलबत्ता धोलपुर जाट राजघराने की महारानी वसुंधरा राजे एक बार नही दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री बनी लेकिन पश्चिम राजस्थान के जाट नेता अपने आपको को इसका असली हकदार बताते आ रहें है।
कांग्रेस के सामने जोधपुर संभाग में समस्या दोहरी है वहां जाट और विश्नोई दौनोंं पार्टी से खफा है। दिवंगत परस राम मदेरणा को पुत्री विधायक दिव्या मदेरणा आए दिन सत्ता विरोधी बयान देती है। ऐसे में कांग्रेस की चुनौतियां कम नहीं हैं। वहीं भाजपा के सामने भी चुनौतियां कम नहीं हैं। आर एल पी के नेता हनुमान बेनीवाल ने उनके नाक में दम कर रखा है।