बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता और इंदौर के नेता उमेश शर्मा इन दिनों बेहद गुस्से में हैं। इसी गुस्से में उन्होंने सोशल मीडिया के कंधे पर बंदूक रखकर कई को निशाना बना दिया। पर अनुशासित पार्टी के कार्यकर्ता होने के नाते बाद में खेद भी जता दिया! इसके बावजूद उनकी नाराजी तो बाहर आ ही गई! पार्टी में इसे भले ही उनकी अनुशासनहीनता कहा जाए, पर ये उनकी पीड़ा है, जो शब्द बनकर सोशल मीडिया के जरिए निकली! उनके साथ नाइंसाफी हुई, इस बात को तो किनारे नहीं किया जा सकता। बीजेपी में उनकी योग्यता का कत्ल हुआ, ये बात भी सही है! पर, अब उनके एक राजनीतिक विरोधी हर्षवर्धन बर्वे को पार्टी में पद देकर एक तरह से उन्हें चिढ़ाया गया, तो वे बिफर पड़े! बीजेपी कार्यकर्ताओं के ग्रुप में यह प्रकरण तेजी से वायरल हुआ और इसे कार्यकर्ताओं का समर्थन भी मिला।
बीजेपी नेता उमेश शर्मा ने अपनी नाराजी में शहर अध्यक्ष गौरव रणदिवे पर आरोप लगाकर उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया। सोशल मीडिया पर छिड़ी इस जंग के पीछे हर्षवर्धन बर्वे को सोशल मीडिया जिला संयोजक बनाया जाना है। उमेश शर्मा ने शहर अध्यक्ष रणदिवे के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर अपनी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने हर्षवर्धन बर्वे के परिवार को कांग्रेसी भी बताया। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा ‘मैं अनुशासित हूं गुलाम नहीं, गौरव बाबू ऐसा तो आपको इंदौर भाजपा चलाने नहीं देंगे! जब आप कांग्रेसी थे, तब हम आपकी सरकार की लाठियां झेल रहे थे! जब मैं पार्षद चुनाव लड़ा था, तब हर्षवर्धन बर्वे के पिता और दादा धुर कांग्रेसी थे। गौरव बाबू आपकी पृष्ठभूमि एनएसयूआई की है, तो क्या पूरी बीजेपी ऐसी बना दोगे!’.
उन्होंने आगे लिखा ‘फिलहाल लिख नहीं रहा हूं, इसका मतलब ये नहीं की लिखूंगा नहीं! लिखूंगा तो 32 किमी लंबा देवास से इंदौर जितना लिखूंगा। पार्टी में योग्यता का कत्ल हो रहा है। उमेश शर्मा का ये इशारा जयपाल सिंह चावड़ा की तरफ था, जिन्हें इंदौर के बीजेपी नेताओं की अनदेखी करते हुए इंदौर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया है। ‘इंदौर गौरव’ का दिन तय करने के लिए प्रशासन ने जो समिति बनाई है, उसमें भी इंदौर के बीजेपी नेताओं को किनारे करते हुए जयपाल सिंह चावड़ा को शामिल किया गया है। शहर का और कोई नेता तो इस पर बोल नहीं पा रहा, पर उमेश शर्मा अपनी पीड़ा दबा नहीं पाए! .
अपनी आदत के मुताबिक, बीजेपी प्रवक्ता उमेश शर्मा ज्यादा देर अपनी नाराजी व्यक्त नहीं कर सके! बाद में पार्टी नेताओं की समझाइश पर सोशल मीडिया पर अपने ही कहे पर लीपापोती की। अपनी ही लिखी बातों को झुठलाते हुए उन्होंने जो सफाई दी, वो ये थी।
नगराध्यक्ष जी का विनयशील स्वभाव-कार्यकर्ताओं से विशेषकर मंडल अध्यक्षों से आत्मीय और प्रेमपूर्ण संवाद-प्रशासनिक अधिकारियों पर उनकी धाक और भय-वरिष्ठजनों से उनका बेहतरीन तालमेल-निर्णयों में सामूहिकता का भाव-उन्हें एक आदर्श अभिभावक सिद्ध करता है। 6 दिसंबर 2019 को 32 जिलाध्यक्ष घोषित हो गए थे। इंदौर होल्ड कर दिया गया था। 9 मई 2020 को इंदौर के इस होल्ड किए निर्णय को निराकृत करते हुए सर्वसम्मति और रायशुमारी के आधार पर इंदौर नगराध्यक्ष के रूप में वे मनोनीत किए गए थे। नगर इकाई का गठन अभी तक नहीं हो पाने के कारण भिन्न है। इससे नगराध्यक्ष की योग्यता पर प्रश्न खड़ा नहीं किया जा सकता है। वे एक अत्यंत विनयशील, मृदुभाषी और निरंतर कार्यकर्ताओं व उनके परिवार में प्रवास करने वाले सर्वस्पर्शी, सम्मोहक व्यक्तित्व के धनी है। उनके नेतृत्व में काम करने से मुझ जैसे असंख्य कार्यकर्ता प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं।
बाद में संगठन के दबाव में देर रात उमेश शर्मा ने अपनी पोस्ट डिलीट की। भाजपा प्रदेश प्रवक्ता उमेश शर्मा ने नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे और आईडीए अध्यक्ष जयपाल चावड़ा की नियुक्ति पर भी तंज कसा था। बीजेपी कार्यकर्ताओं के कार्यालय न आने को अस्वीकार करते हुए नगर अध्यक्ष को सक्रिय और सर्व सम्मत बताते हुए व्यंग बाण छोड़े, तो पूर्व संभागीय संगठन मंत्री और ताजा-ताजा आईडीए के अध्यक्ष बनाए गए देवास निवासी जयपाल चावड़ा को भी चेतावनी दे डाली। क्योंकि, रायशुमारी में उमेश शर्मा का नाम प्रमुखता से आया था। जबकि, नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे की नियुक्ति में सुहास भगत और जयपाल सिंह चावड़ा का हाथ था। उमेश शर्मा ने इशारों-इशारों में नगर अध्यक्ष और आईडीए अध्यक्ष जयपाल सिंह चावड़ा पर हमला बोला था। नगर अध्यक्ष के बाद उमेश शर्मा को इंदौर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनना था, परंतु जयपाल सिंह चावड़ा को सुहास भगत की सिफारिश पर यह कुर्सी पर बैठा दिया गया। जबकि, वे दूसरे जिले तो छोड़ उज्जैन संभाग के देवास के रहने वाले हैं। इस बात से शर्मा उमेश दुखी हैं और इसीलिए उन्होंने तंज कैसे।
बीजेपी में उमेश शर्मा की इस मुखरता को लेकर दो धड़े बन गए! इनमें एक धड़ा उनके साथ खड़ा है, पर कोई सामने नहीं आ रहा! क्योंकि, बीजेपी का अपना अनुशासन है, जिसे चाहे न चाहे स्वीकारना पड़ता है! उसमें आपकी सहमति हो या न हो! इसे पार्टी लोकतंत्र भले न कहा जाए, पर दबाव तो कहा ही जा सकता है। उमेश शर्मा के साथ नाइंसाफी ये सच है! उनका बीजेपी शहर अध्यक्ष के लिए नाम था, पर उन्हें नहीं बनाया गया! इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) के अध्यक्ष पद पर उनके नाम की सहमति थी, पर उनको नहीं बनाया गया और जयपाल सिंह चावड़ा वहां काबिज हो गए! पार्टी के इस फैसले पर असहमत नेताओं की कमी नहीं है, पर कोई बोल नहीं पा रहा! ऐसे में यदि उमेश शर्मा ने अपनी दबी पीड़ा व्यक्त की, तो इसमें बुराई क्या है! ये अनुशासनहीनता नहीं, बल्कि मुखरता है जिसका सम्मान किया जाना चाहिए!