बेकाबू महंगाई, सरकार क्या फिर राशन दुकानों की तरफ लौटेगी!

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रोजमर्रा के महंगे होते सामान के कारण बढ़ती महंगाई से परेशान सरकार एक बार फिर 70 और 80 के दशक की राशन दुकान व्यवस्था की और लौट सकती है! उस दौर में गरीब उपभोक्ताओं को रोजमर्रा की जरूरत का खाद्यान्न और केरोसिन राशन दुकान के माध्यम से कम क़ीमत पर उपलब्ध कराया जाता था। इस व्यवस्था से सरकार महंगाई को नियंत्रण में रखने में भी सफल रहती थी। अभी ये बात बाहर नहीं आई, पर सरकार में इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार होने की चर्चा है। सरकार में इस विचार के आकार लेने का कारण सारी कोशिशों के बावजूद बढ़ती महंगाई पर काबू न हो पाना है। शनिवार को केंद्र सरकार ने एक बार फिर राज्यों को खाद्य तेलों पर स्टाक लिमिट लगाने को कहा है।

आयात शुल्क में भारी कटौती के बावजूद आम आदमी को महंगे खाद्य तेल खरीदना पड़ रहे रहे हैं। इससे परेशान सरकार अब कुछ नई व्यवस्था करके खाने के तेल के भाव काबू में लाने के प्रयास कर रही है। नई व्यवस्था के तहत तेल-तिलहन कारोबारियों को सरकारी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवाकर स्टॉक की जानकारी देना होगी। सरकार का सोच है कि इससे तेल-तिलहन के सट्टा रूपी कारोबार से भाव में अनियंत्रित उछाल से बाजार भाव की तेजी को लगाम लगेगी। पर, इसके बावजूद खाने के तेल के भाव में कमी नहीं होती, तो सरकार ऑनलाईन वायदा सौदों पर रोक लगा सकती है।

केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से अनुरोध किया है कि वे खाने के विभिन्न तेलों पर स्टॉक लिमिट लगाने का आदेश जारी करें। केंद्र ने बीते 8 अक्टूबर को राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया था कि वे खाद्य तेल-तिलहन पर स्टॉक लिमिट लगा सकती है। फ़ेस्टीवल सीज़न में उपभोक्ता वस्तुओं की क़ीमतों के बढ़ते दाम को रोकने के लिए राज्य सरकार आदेश जारी कर सकती हैं। इसके तहत कंपनियों और कारोबारियों को पोर्टल पर दी गई जानकारी के विवरण और राज्य की खपत के आधार पर स्टॉक सीमा लागू होगी। लिमिट से अधिक स्टॉक मिलने पर कार्यवाही की जाएगी।

कारोबारी क्षेत्रों में तो ऐसी चर्चा जोरों पर है कि आगामी वर्ष में उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सरकार महंगाई को नियंत्रण में लाने के प्रयास कर रही है। इसके लिए ही सरकार कुछ और ठोस कदम भी उठा सकती है। फिलहाल बाजार में खाने के तेल के भाव पिछले सप्ताह में कुछ गिरावट के बाद एक बार फिर पूर्व के स्तर पर आ गए हैं।

सरकार के आयात शुल्क घटाने का लाभ उपभोक्ताओं को मिलता नहीं दिख रहा, इसका लाभ केवल कंपनियों और बडे तेल कारोबारियों को ही मिला है। आयातक विदेशों से सस्ता पाम तेल मंगाते थे, पर भारत में शुल्क कम करने के बाद विदेशी बाजारों में भाव बढ़ गए। इससे नए सौदे फिर ऊंची दर पर हो रहे हैं। कच्चा पाम तेल (सीपीओ) पर जहां आयात शुल्क 8.25% है, वहीं पामोलीन पर यह शुल्क 17.5% है। आगामी दिनों में भारत में दीपावली के कारण खुदरा बाजारों में खरीदारी निकलेगी, जिससे भाव में और तेजी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। फिर पेट्रोल-डीजल के भाव में चल रहा बढ़ते का दौर जारी रहने से भी खाने की चीजों के दाम घटने की उम्मीद कम ही दिखाई दे रही है।

बीते एक वर्ष में तेल उद्योग ने भाव में भारी तेजी लाकर मोटा मुनाफा कमाया। इससे आम उपभोक्ता हलाकान है। जो तेल मिल किराए पर चल रही थी या बिकने को बाजार में थी, उन तेल उत्पादकों के दिन फिर गए! लेकिन, किसान घाटे में ही रहा और उपभोक्ता महंगे तेल खरीदने को मजबूर है। आयातित तेलों पर शुल्क में कटौती से खरीफ तिलहनों के दाम तो घट गए पर खाने के तेल सस्ते नहीं हुए। सरकार के सारे प्रयास सिर्फ कागज पर ही दिख रहे हैं। बाजारों में हालात वही है कि खाने के तेल महंगे ही बिक रहे हैं।

सरकार के अनेक प्रयासों के बावजूद भी अगर महंगाई पर लगाम नही लगती है तो ऐसी संभावना भी जताई जा रही है कि सरकार एक बार फिर सत्तर के दशक की राशन दुकान व्यवस्था की और लौट सकती है। हाल फिलहाल सरकार गेहूं, चावल गरीब उपभोक्ताओं को राशन दुकानों के माध्यम से उपलब्ध करा रही है। सस्ते खाने के तेल और शक्कर, चावल, गेहूं और केरोसिन पूर्ववर्ती सरकारें महंगाई से निपटने के लिए राशन दुकानों के मार्फत गरीब उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराती थी। अब केरोसिन के स्थान पर सरकार खाना पकाने की गैस (एलपीजी) भी उपलब्ध कराए तो गरीबों को सस्ता सामान आसानी से मिल जाएगा। सरकार खाने के तेल पर आयात शुल्क कम करने के बजाय 80 और 90 के दशक की तरह गरीब लोगों को कीमतों से राहत देने के लिए आयातित तेल को राशन की दुकानों के माध्यम से बांटने पर जोर देने के बारे में सोच सकती है क्योंकि, आयात शुल्क कम करने से उपभोक्ताओं और किसानों को कोई लाभ नहीं होता और इसका फायदा कंपनियों और कारोबारी उठा रहे है। राशन दुकानों से सप्लाय करने से उपभोक्ता वस्तुओं के दाम तेजी से घट सकते हैं।