Union Carbide Toxic Waste: 40 साल का कलंक है, मिटने में समय तो लगेगा

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Union Carbide Toxic Waste: 40 साल का कलंक है, मिटने में समय तो लगेगा

संजीव शर्मा की विशेष रिपोर्ट

जैसे-जैसे कंटेनरों का काफिला धीरे-धीरे भोपाल की सरहद को पार करते हुए आगे बढ़ रहा था वैसे-वैसे भोपाल के लोगों की जान में जान आ रही थी। आखिर, दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंककर पीता है और जब बात हजारों-लाखों परिवारों की तबाही के दर्द की हो तो अतिरिक्त सावधानी तो बनती ही है। इसलिए प्रशासन ने भी सुरक्षा,सतर्कता,सजगता, सावधानी और समझाइश में अधिकतम मानकों का पालन कर अपनी ओर से कोई कमी नहीं रहने दी।

हम बात कर रहे हैं, भोपाल में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना की जन्मदाता यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में जमा अवशिष्ट या सरल भाषा में कहें तो जहरीले कचरे को यहां से हटाने की । हो सकता है कि दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में कचरे के पहाड़ों के साए में रह रहे लोगों के लिए यह सामान्य कचरा प्रबंधन की कवायद हो या फिर देशव्यापी स्वच्छता मुहिम का एक हिस्सा, लेकिन भोपाल के लोगों के लिए यह 40 साल के डर के बाद चिर परिचित दुश्मन से मिली मुक्ति है, आसन्न मंडराते खौफ से छुटकारा है, नासूर बन गए घाव की मरहम पट्टी है और देश की स्वच्छतम राजधानी के माथे पर लगा कलंक कुछ कम करने जैसी उपलब्धि है।

यूनियन कार्बाइड से निकले 12 कंटेनर जब 37 किमी प्रति घंटे की धीमी रफ्तार से 250 किमी का मामूली सा फासला घंटों में तय कर रहे थे तब वे बदलाव के साथ साथ दशकों के संघर्ष, हजारों लोगों की मौत के ग़म,लाखों लोगों की बीमार जिंदगी और तिल-तिलकर मरते लोगों को भविष्य की किसी आशंका से मुक्ति के रास्ते को पाट रहे थे। हजारों लोगों की जिंदगियां लीलने वाला यह कारखाना 1984 से ही अपने इस जहरीले कचरे के कारण पूरे शहर को सदमे में रखे था। यूनियन कार्बाइड परिसर में कभी कभार दुर्घटनावश लगी मामूली सी आग भी लोगों में सिहरन और घातक दिसंबर की भयावह यादें ताजा कर देती थी।

और, ऐसा भी नहीं है कि भोपाल को अपने इस कलंक से आसानी से छुटकारा मिल गया है। यह करीब 40 साल चली लंबी लड़ाई का नतीजा है। यह आम लोगों की पीढ़ियों का संघर्ष, अदालत का दखल, सरकारों का समन्वय और विशेषज्ञों की सक्रियता के बाद नसीब हुआ है। अगस्त 2004 में आलोक प्रताप सिंह की मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में लगाई गई याचिका ने उम्मीदों को पंख लगाए थे और फिर यह पंख व्यक्तिगत गुहार से आगे बढ़कर सामूहिक अपील के जरिए मजबूत होते गए। हालांकि, अलग अलग स्तर पर समितियां बनती बिगड़ती रहीं, स्थानीय लोगों के विरोध के कारण कचरा नष्ट करने के स्थान बदलते रहे, प्रायोगिक निपटान पर केंद्रित शोध अनुसंधान के पन्ने पर पन्ने जमा होते रहे और अंततः जब सत्ता,व्यवस्था और न्यायपालिका का संगम हुआ तो इसकी अंतिम तिथि भी मुकर्रर हो गई।

आंकड़ों के लिहाज़ से भले ही 12 कंटेनर कम लगते हों लेकिन इसके पीछे लगे मानसिक और शारीरिक श्रम,मशीनरी और संसाधनों के विश्लेषण से ही असल में पता चलता है कि यह कितना ‘हरक्यूलियन टास्क’ था। सबसे पहले तो इसे भोपाल से इंदौर के पास पीथमपुर तक ले जाने के लिए करीब 250 किमी का सुरक्षित रास्ता बनाना कम आसान नहीं था। इस ‘ग्रीन कोरिडोर’ के लिए पूरे रास्ते पर चाक चौबंद व्यवस्था करनी पड़ी। किसी वीवीआईपी जैसी हैसियत रखने वाले इन 12 कंटेनरों के आगे पीछे पुलिस की गाड़ियां चली।

इसके अलावा, गैस राहत विभाग, एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड, प्रदूषण महकमे को मिलाकर 25 वाहनों का काफिला तैयार हुआ। कंटेनर की नान स्टॉप यात्रा के लिए तमाम सुरक्षा इंतजाम के साथ साथ दो दो ड्राइवर तैनात किए गए जबकि आम तौर पर इतना सफर एक ड्राइवर एक दिन में दो बार तक कर लेता है। गैस त्रासदी के कारण काले धब्बे की तरह दर्ज 2 (तब दिसंबर 1984) तारीख को शायद खासतौर पर इस काम के लिए चुना गया था और रात 9 बजे यह दुनिया का सबसे संवेदनशील काफिला अपनी मुहिम पर रवाना हुआ। इस कचरे को पैक करने में 150 से ज्यादा मजदूरों ने तीन दिन लगातार 15 शिफ्ट में काम किया।

प्रशासन इस मामले में इतना संवेदनशील था कि इस काम की निगरानी के लिए तमाम सरकारी-गैर सरकारी महकमों के करीब एक हजार छोटे-बड़े नुमाइंदे मौजूद थे और इनमें सौ से ज़्यादा तो विशेषज्ञ थे। इस नासूर से छुटकारे के लिए सरकार ने करीब सवा सौ करोड़ रुपए नियत किए हैं लेकिन जानकारों के अनुसार यह कचरा पूरी तरह से जलने में दस से बारह महीने लग जाएंगे। इसके पहले, इसे किस्तों में जलाया जाएगा और बार बार हवा, पानी, जमीन और वातावरण का परीक्षण किया जाएगा ताकि लेश मात्र भी शंका न रहे।

इतना ही नहीं, यहां से निकलने वाली राख तक की कई बार जांच की जाएगी और तमाम चिंताओं/शंकाओं/आशंकाओं को निर्मूल साबित कर जहरीले कचरे का नाम-ओ-निशान मिटाया जाएगा और तब जाकर भोपाल,इंदौर या पीथमपुर ही नहीं प्रदेश के लोगों को सम्पूर्ण चैन मिल पाएगा।