Unique Collector : बच्चों के साथ मध्यान्ह भोजन किया

अपनी अनोखी कार्यशैली के लिए जिलेभर में लोकप्रिय

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Panna : जिले के कलेक्टरों के बारे में लोगों की आम धारणा है कि वे अपने काम से काम रखते हैं और सरकारी आदेशों के पालन करने और करवाने से ज्यादा उनका जनता से सरोकार कम ही होता है। लेकिन, सभी कलेक्टर ऐसे नहीं होते! जो लीक से हटकर जनता से जुड़ते हैं, उन्हें याद भी किया जाता है। ऐसे ही एक कलेक्टर हैं हीरों की नगरी पन्ना के कलेक्टर संजय मिश्रा (Panna Collector Sanjay Mishra) ऐसे कई उदाहरण है जब वे जनता से जुड़े अउ उनकी समस्याएं हल की

कलेक्टर ने हाल ही में शासकीय माध्यमिक शाला रानीपुरा जाकर वहाँ के बच्चों के साथ मध्यान्ह भोजन किया और उनकी पढाई के बारे में जानकारी ली। उन्होंने बच्चों को बिस्किट दिए। उन्होंने बच्चों को जीवन में सफलता पाने के लिए मंत्र दिया और बच्चों के साथ कढ़ी-चावल खाया। कलेक्टर संजय मिश्रा (Panna Collector Sanjay Mishra) ने बच्चों के साथ खाना खाने औपचारिकता नहीं निभाई, बल्कि स्वाद लेकर खाना खाया। बीच में बच्चों से बातचीत भी की और उन्हें जरुरत पड़ने पर पानी का ग्लास भी उठाकर दिया। को अपने बीच पाकर सभी बच्चे खुश और उत्साहित थे। कलेक्टर ने समूह की महिलाओं द्वारा बनाए भोजन की प्रशंसा की और स्वामी विवेकानन्द स्व सहायता समूह रानीपुरा की महिलाओं को 5-5 सौ रुपए दिए। इस दौरान परियोजना अधिकारी श्री संजय सिंह परिहार भी साथ थे।

ये पहला मौका नहीं है, जब कलेक्टर संजय मिश्रा (Collector Sanjay Mishra) ने लीक से हटकर कोई काम किया हो! वे अकसर ऐसे काम करते रहे हैं। एक बार उन्होंने जिक्र किया था कि कुछ माह पहले मुझे हरदुआ पटेल गांव की सुमंती बाई जनसुनवाई में मिली थी। प्रधान मंत्री आवास मकान नहीं बनवा सकी थी, क्योंकि उनके घर में कोई और नहीं है, जो मकान बनाने में मदद करता। इस पर मैंने शासकीय अमले को मदद का निर्देश दिया और सुमंती बाई से वादा किया कि मकान पूरा होने पर मैं आपके घर आऊंगा। जब मकान बन गया तो मैं वादे के अनुसार उनके घर गया। बहुत ही सुन्दर और साफ सुथरा घर है सुमंती बाई का।

एक और घटना में उन्होंने एक दिव्यांग आनंद राम की मदद की, जो उन्हें लगभग घिसटकर चलते हुए रोड के किनारे मिले थे। कलेक्टर संजय मिश्रा (Collector Sanjay Mishra) ने अपनी गाड़ी रोकी और पूछा कि कहाँ के हो और कहाँ जा रहे हो! आनंद राम ने बताया कि वे ककरहटी के हैं और राजा दहार मंदिर जा रहे हैं। कलेक्टर को आश्चर्य हुआ कि आनंद राम इस हालत में 7-8 किलोमीटर कैसे जाएंगे! उनसे ट्राइसाइकिल के बारे में पूछा तो बताया कि शासन से मिली तो थी, लेकिन टूट गई है। कलेक्टर ने तत्काल उन्हें नई ट्राइसाइकिल देने के लिए संबंधित अधिकारी को निर्देशित किया। साथ ही पांच सौ रुपए देते हुए एक मोटर साइकिल रोककर दिव्यांग को मंदिर तक भेजने की व्यवस्था कराई।