अनोखी होली: सिर्वी समाज की बेंतमार होली, 256 वर्ष पुरानी परंपरा आज भी जीवित

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अनोखी होली: सिर्वी समाज की बेंतमार होली, 256 वर्ष पुरानी परंपरा आज भी जीवित

कमलेश नाहर/मनोज गेहलोत पेटलावद-झाबुआ से 

पेटलावद। रंग से भरे बड़े कड़ाव में मस्ती करते युवा, यहां रगों और पानी की बौछारों के बीच मंगलवार को नगर में ब्रज सी होली का दृश्य देखने को मिला। मौका था सिर्वी समाज की बेंतमार होली का। रंगों और पानी बौछारों के बीच ब्रज की होली का दृश्य यहां भी देखने को मिला। किंतु यह गांव उत्तरप्रदेश के वृंदावन धाम नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले का पेटलावद है।

यहां का सिर्वी समाज बेंतमार होली मनाता है। इस अनोखी होली को देखने के लिए समाज के अलावा अन्य समाज के लोग भी आयोजन स्थल पर पहुंचते हैं। यह होली सिर्वी समाज होली चोक में खेली गई। समाज ने अपनी 256 वर्ष पुरानी इस परंपरा का बखूबी निभाया।

देखिये वीडियो-

शीतला सप्तमी के दिन मनाया जाने वाले पर्व की परंपराओं में इस परंपरा का भी समावेश है। मंगलवार को पेटलावद की इस होली ने उस ब्रज की होली को जरूर याद दिला दिया। समाजजनों का उत्साह देखते ही बनता था।

घरों पर गेर पहुंची-

सिर्वी मोहल्ले के सभी घरों पर गेर पहुंची और युवा डीजे की धुन पर शिरकते रहे। समाजजन का मानना है कि इस युग में भी परंपराओं का निर्वाह होना बड़ा कठिन है, किन्तु समाजजन आज भी एकत्रित हो कर परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। यह समाज के लिए अच्छा संकेत है। इसके साथ ही समाजजनों ने आज अपने प्रतिष्ठान भी बंद रखे। जिससे आधा पेटलावद नगर बंद रहा।

सप्तमी पर ही क्यों मनाया जाता है पर्व-

समाज के वरिष्ठजनों के अनुसार सप्तमी भी होली का पर्व जाता है। समाज आई माता के रूप में देवी शक्ति का पुजारी है और होली भी सप्तमी के रोज जो कि देवी शीतला माता का दिन होता है, इसी से जोडकर यह पर्व आज के दिन मनाया जाता हैं।

पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा-

समाज के बुजुर्गो ने बताया समाज में बेंतमार होली की परंपरा पीढियों से चली आ रही हैं, जिसे आज भी निभाया जा रहा है। नगर में यह परंपरा करीब 256 वर्षों से चल रही है। यह पर्व मध्यप्रदेश के साथ राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में भी सिर्वी समाज बाहुल्य इलाके में मनाया जाता है।