

एक अद्भुत और अद्वितीय व्यक्ति:”मेरी माँ “
माँ एक अद्भुत और अद्वितीय व्यक्ति है जो हर किसी के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनकी ममता, त्याग और प्यार हमें जीवन में आगे बढ़ने और सफल होने की प्रेरणा देते हैं। माँ एक ऐसा शब्द है जो प्रेम, समर्पण और त्याग का प्रतीक है। इस साल मदर्स डे को आज, यानी 11 मई को सेलिब्रेट किया जा रहा है। ‘मदर्स डे’ या मातृ दिवस एक ऐसा महत्वपूर्ण एवं संवेदनात्मक दिन है जो हमें अपनी माताओं के प्यार और बलिदान के लिए धन्यवाद देने और उन्हें सम्मान देने का अवसर देता है।हम कई लेखकों और पाठकों के आग्रह पर विश्व मातृ दिवस से हम एक नयी श्रृंखला ‘मेरी माँ ‘शुरू कर रहे हैं. इस श्रृंखला के माध्यम से हम अपनी माँ के प्रति अपना सम्मान ,अपनी संवेदना प्रकट कर सकते हैं -आइये कलम उठाइये और माँ को अपनी स्मृतियों से कागज पर शब्दों में चित्रित कर दीजिये -पहली प्रस्तुति में आज पढ़िए डॉ. जयकुमार जलज जी की पत्नी श्रीमती प्रीति जलज पर उनकी बेटी श्रद्धा जलज को – सम्पादक; डॉ स्वाति तिवारी
1 . Unique Person My Mother: – “मेरी माँ “- श्रीमती प्रीति जलजः सफलता की समर्पित सीढ़ी
डॉ. जयकुमार जलज जी की पत्नी श्रीमती प्रीति जलज, मेरी माँ, छत्तीसगढ़ के अकलतरा में 12मार्च 1942 को जन्मी थीं।हमारी नानीजी का बड़ा,संयुक्त और धार्मिक परिवार था। विवाह पूर्व ही स्कूल की पढ़ाई के साथ माँ ने जैन सिद्धांत प्रवेशिका, तत्वार्थ सूत्र, मोक्ष-शास्त्रम, द्रव्य संग्रह, नाम माला सौ श्लोक आदि परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थीं तथा विवाह पश्चात स्नातक किया था। शिक्षा और संस्कार ने उन्हें एक मजबूत और संवेदनशील व्यक्तित्व दिया था।
पिताजी जैन सिद्धांतों का परिपालन तो करते थे, पर माँ का विवाह पश्चात नित्य देव-दर्शन का नियम छूट सा गया था। हर परिस्थिति के अनुरूप अपने आप को ढालकर अपना दायित्व निभाते चलना मां के संस्कार में था। वह पिताजी की सफलता की समर्पित सीढ़ी थीं।उनका व्यक्तित्व संत के समान निर्मल था।चेहरा सौम्य,शांत मुस्कुराता हुआ। कभी कभी हम उनसे इतिहास और गणित पढ़ते थे।वे बहुत व्यवहार कुशल थीं।घर आए अतिथि का पूरे मनोयोग से स्वागत करना और सभी की कुशल पूछना उनकी आदत थी।उनकी हंसी बहुत निश्चल और उन्मुक्त थी।
माँ और पिताजी दोनों का जीवन बहुत व्यवस्थित, संयमित, नियमित और संतुलित था। पिताजी को सादा जीवन पसंद था। माँ ने पिताजी की इस इच्छा का हमेशा सम्मान किया। कभी चटक रंग नहीं पहने। उनकी आकांक्षाएँ बहुत सीमित थीं। पिताजी की सन 2000 में एंजियोप्लास्टी हुई थी। मां एक कुशल गृहिणी थीं। पिताजी के लिए कम तेल, घी और बगैर मिर्च का पौष्टिक एवं स्वादिष्ट भोजन धीमी आंच में बनाती थीं। पिताजी को कब, और क्या खाना चाहिए इस बात का सदैव ध्यान रखती थीं। पिताजी की आंखों से ही पहचान जाती थीं, तुरंत पूछतीं थीं चाय बना दूं क्या? खाना लगा दूं क्या?उम्र के 82वें वर्ष में भी एकदम स्फूर्ति से उठकर पिताजी के सभी कार्य जिम्मेदारी से करती थीं ।पिताजी को प्रतिदिन मौसंबी का रस निकालकर जरूर देती थीं। चकली, खमण, आटे के लड्डू बनाती थीं।मां चाय भी बहुत अच्छी बनाती थीं। पति डॉक्टर घाटे मुझसे कहते थे,तेरे हाथ से चाय ऐसी क्यों नहीं बन पाती।मां एकदम मुझे बचा लेती थीं, ये गाय के दूध की है इसलिए ज्यादा स्वादिष्ट लगती है।
:वे एक कुशल गृह प्रबंधक भी थीं। गृह कार्य के लिए सहायक जिन्हें हम रणजीत भैया,आशा आंटी,आरती दीदी ,आपा कहते थे, अगले दिन क्या करेंगी, माँ पहले से ही लिस्ट तैयार कर लेती थीं। उन्हें कार्य करते एक- डेढ़ घंटे से अधिक हो जाता तो मां उन्हें अवश्य ही कुछ चाय,नाश्ता या फल देती थीं।
सुबह अखबार पढ़ने और दोपहर में कोई पुस्तक-पत्रिका पढ़ने की उन्हें आदत थी। पिताजी के साथ मिलकर उन्होंने कई सामाजिक कार्य किए। पिताजी रोटरी के मानद सदस्य थे। बैठकों में वे हमेशा उनके साथ जाती थीं। इसके अलावा दूसरे आयोजनों में भी साथ रहती थीं। उनमें इतनी सरलता, आत्मीयता और गरिमा थी कि सहज ही सबके मन में उनके प्रति सम्मान का भाव पैदा हो जाता था।
मेरी बेटियाँ श्रुति एवं तन्वी तो कहती थीं, नानी आपसे भी अच्छी हैं।क्यों न कहेंगी? उनके तीन माह का होने पर उनकी मां, नानी की गोद में ही तो छोड़कर बैंक चली जाती थी।और नानी उनके लिए नए-नए डिजाइन के स्वेटर बनाती थीं और उनके साथ खेलती भी थीं।
माँ को पिछले 35 वर्ष से डायबिटीज थी। वह बहुत सख्त परहेज से रहती थी। मेरी दोनों बेटियाँ नानी से इतनी जुड़ी हुई थीं कि सिर्फ इतना सुनने पर कि जब तुम प्रथम आओगे तभी रिजल्ट के दिन नानी आइसक्रीम खाएँगी। तुरंत पढ़ने बैठ जाती थीं। जब दोनों ने प्रथम प्रयास में ही Government medical College से MBBS और MD किया, तो वे सबसे ज्यादा खुश थीं। मेरे चाचा, बुआ सभी माँ के पास रहकर पढ़े थे,मेरी सासु जी और ससुर जी उन्हें बहन मानते थे और मेरे पति डॉक्टर पदम घाटे से वे पुत्रवत स्नेह रखती थीं।
माँ या पिताजी दोनों में से किसी के भी अस्वस्थ होने पर या हमारी किसी जरूरत पर वे अविलंब हमारे घर रहने आते थे। मां को तो हमारे घर बहुत अच्छा लगता था। लेकिन तबियत ठीक होने के अगले ही दिन दोनों वापिस अपने घर चले जाते थे। माँ ने पिताजी को दान देने, गरीब और जरूरतमंद विद्यार्थियों की मदद करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया। गांव के गरीब विद्यार्थियों को वे भोजन भी करवाती थीं।पिताजी के विद्यार्थियों के प्रति उनके मन में सदैव स्नेह-भाव रहता था। पिताजी की सेवानिवृत्ति के अगले दिन माँ की आँत का एक चार घंटे चलने वाला ऑपरेशन हुआ था। सावधानी के लिए 6 कीमोथेरेपी भी की गई थी।माँ ने बड़ी बहादुरी से अपनी बीमारियों में भी हम सबकी हिम्मत बंधाई।वे पिताजी के साथ प्रतिदिन शाम को एक- डेढ़ घंटे पैदल घूमने जाती थीं।ऐसे ही एक शाम उम्र के 70 वें वर्ष में वे गिर गईं थीं।उनका hip replacement का ऑपरेशन हुआ था ।हम सबके साथ पिताजी ने भी उनकी खूब सेवा की थी। पिछले कुछ वर्षों से वह दिन में चार बार इंसुलिन इंजेक्शन खुद ही लगाती थीं। माँ पिताजी के साथ साये के तरह रहती थीं । और उनके लिए बहुत चिंतित रहती थीं। मैं जब भी उनके यहाँ जाती थी। शिकायती लहजे में कहती थीं ‘ये एक हाथ में चश्मा, मोबाईल और दूसरे हाथ में अख़बार और बिना छड़ी लिए चलते हैं।’ झुक-झुककर आँगन से पत्ते उठाते हैं। माँ की बात सुनकर पिताजी मंद-मंद मुस्कुराते
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रहते थे और मैं कहती थी ठीक है! अब पापा ध्यान रखेंगे। दोनों का आपस में खूब सामंजस्य और समर्पण था।
पिछले कुछ वर्षों से पिताजी समारोह आदि में ज्यादा नहीं जा पाते थे। छोटे-छोटे समूह में उनके साथी, विद्यार्थी उनसे मिलने आया करते थे। वह माँ ही थीं जो सारी व्यवस्था देखती थीं।मां के घर की अलमारियों, पेटियों, सूटकेसों में किताबें ही किताबें रहती थीं ।वे उनकी साज-संभाल करती थीं। किताबों को कभी कभी धूप में रखती थी उनमें नेफ्थलीन बॉल्स डालती रहती थीं।उनके बगीचे में कई तरह के पौधे थे, कई रंगों के गुलाब थे। जिनकी वे बड़े यत्न से देखभाल करती थीं।
माँ ने पिताजी को घर की जिम्मेदारियों से हमेशा मुक्त रखा। घर में एकदम शांत वातावरण रखा ताकि उन्हें नौकरी और साहित्य रचना के लिए पर्याप्त समय मिल सके।विगत कुछ वर्षों से पिताजी की कलाई और उंगलियों में ज्यादा लिखने से दर्द होने लगा था, तब पिताजी बोलते जाते थे और माँ धार्मिक पुस्तकों के अनुवाद लिखती थीं। वे हमेशा पिताजी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलीं।
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मुझे इस बात का संतोष है कि मेरी छोटी बहिन स्मिता 2023 में तीन बार मां से मिलने मुंबई से आई थी और अंतिम बार,अंतिम जगह जब हम चारों ( पिताजी , मां और हम दोनों बहनें) साथ गए थे वह मंदिर ही था । जब भी हम लोग दर्शन को जाते थे, मां कहा करती थीं,’ देखो कितनी अद्भुत और वीतरागी ‘चंदा प्रभु भगवान की प्रतिमा है ।माँ ने हम बहिनों को कभी डांटा नहीं। हमेशा समझाया, अच्छे संस्कार दिए, जीवन मूल्य सिखाए, गृह कार्य सिखाए। मां,आप केवल जन्मदात्री ही नहीं,हमारे जीवन की संपूर्ण पाठशाला थीं। हमारी आस्था का जाग्रत मंदिर थीं।हमें आपकी स्मृति दिन में अनेक बार आती है।आपका जीवन हमें सत्कर्म करने की प्रेरणा देता है। आपने जितनी शांति से जीवन को जिया, उतनी ही शांति से देह भी त्यागी। देखते ही देखते 10 मिनट में आप 14 दिसंबर 2023 को हम सबको छोड़कर इहलोक से हमेशा के लिए चली गईं ।आपकी अचानक मृत्यु से हम सबको गहरा आघात पहुंचा। और आप जाते-जाते भी अपने नेत्रों की ज्योति से किसी के जीवन में व्याप्त अंधकार को दूर कर गईं।
श्रुति की दोनों छोटी बेटियाँ मिशी और माही छुट्टियों में घर आई थीं। आपको ढूंढ रही थीं। मैंने उन्हें दिखलाया कि आकाश में ये जो सबसे चमकीला सितारा है वह आपकी बड़ी नानी हैं। माँ का घर हमारे लिए विद्या मंदिर के समान था। जो अब सूना हो गया है। वहां हरसिंगार के फूलों की चादर आंगन में अब भी बिछती है, पर उसमें वह सफेदी नहीं। फुटबॉल लिली और पीले गुलाब भी खिले हैं, पर उदास हैं।वीणा के तार सी मधुर वाणी से अब कोई नहीं कहनेवाले अरे…! श्रद्धा आई है।
मां! इतना तो सुनते जाओ..पिताजी ने आपके लिए क्या लिखा है-
नयन थे मेरे, निरंतर देखती तुम थीं।
पांव थे मेरे, मगर बस तुम ही चलती थीं।
जब मुझे कुछ सूझ पड़ता था नहीं ।
तुम दिए की तरह से निष्कंप जलती थीं।
मानने तुमने नहीं दी, हार जीवन में।
मां ,आप प्रणम्य हैं।आप जैसी पुण्यात्मा की बेटी होना हमारे लिए सौभाग्य की बात है।आप हमारी स्मृति में सदैव जीवित रहेंगी। आपके समर्पित और असाधारण जीवन की स्मृतियाँ ही अब हमारा पाथेय हैं। हम सबकी ओर से आपको सादर शत्-शत् नमन…!

श्रद्धा जलज घाटे
रतलाम
फोन नंबर 9425103802