Unnecessary Vigilance After Scam : फर्जी बिल घोटाला खुलने के बाद नगर निगम में गैर जरूरी सतर्कता से परेशानी!
Indore : सवा करोड़ से भी ज्यादा का घोटाला सामने आने के बाद नगर निगम के लगभग हर विभाग के अधिकारी और कर्मचारी बहुत सतर्क होकर काम कर रहे हैं। यह सतर्कता काम को लेकर नहीं बल्कि स्वयं को बचाने को लेकर है। हालांकि इस सतर्कता के गैर जरूरी काम के कारण अब निगम से जुड़े अन्य विभागों की फाइलें अटकने लगी।
फाइलें रुकने के कारण अन्य विभागों का पैसा भी भुगतान होने से रुक रहा है। ऐसी ही फाइलों में पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के करीब 5 करोड़ से अधिक का भुगतान अटक गया है। बताया जा रहा है कि निगम के ऑडिट विभाग ने फाइल को मंजूर कर लेखा शाखा में भेजने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही विद्युत कनेक्शन की यह राशि अब तक इस घोटाले के मुख्य षड्यंत्रकारी अभय राठौर की आईडी से भुगतान होती रही। अब नई आईडी से भुगतान किया जाएगा।
नगर निगम में हुए फर्जी फाइल घोटाले में नगर निगम की जांच और पुलिस की जांच के बावजूद अब तक अभय राठौर से आगे किसी के सम्मिलित होने की कोई कहानी सामने नहीं आई है। पुलिस की जांच भी अब करीब करीब पूर्णता की तरफ आ गई है। इस घोटाले के मुख्य षड्यंत्रकारी नगर निगम के कार्यपालन नियंत्रक अभय राठौर को पुलिस रिमांड में पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया है। जो मुख्य जानकारी इस घोटाले में मिल सकती थी वह इस आरोपी से ही मिल सकती थी। इस आरोपी के जेल जाने के साथ ही अब इस मामले में कोई बड़े खुलासे की उम्मीद शेष नहीं बची है।
बोरिंग और स्ट्रीट लाइट के 2200 से ज्यादा कनेक्शन
निगम के इस घोटाले के कारण मध्य प्रदेश पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के करीब 5 करोड़ रुपए अटक गए हैं। शहर में नगर निगम द्वारा करीब 2200 बिजली कनेक्शन लिए हुए हैं। यह बिजली कनेक्शन स्ट्रीट लाइट और नलकूप की मोटर चलाने के हैं । इन बिजली कनेक्शन में उपयोग की गई बिजली का हर महीने का करीब 5 करोड़ रुपए का बिल आता है। इस बिल का भुगतान नगर निगम के द्वारा किया जाता है। इस महीने का भी बिल आ चुका है।
नगर निगम की ओर से इसका भुगतान करने के लिए फाइल तैयार कर निगम के ऑडिट विभाग में भेजी गई। ऑडिट विभाग के द्वारा इस फाइल को पास करने से इनकार कर दिया गया है। आडिट विभाग ने इस फाइल को निगम की लेखा शाखा में भेज दिया है। विभाग का कहना है कि पहले लेखा शाखा इस फाइल की जांच कर ले, देख ले और अपनी टिप्पणी फाइल की नोटशीट पर दर्ज कर दे। उसके बाद में ऑडिट विभाग को फाइल भेजी जाए।
प्रक्रिया से हटकर कैसे करें काम
इस बारे में लेखा शाखा के अधिकारियों का कहना है कि अब तक की परंपरा के अनुसार विभाग से फाइल ऑडिट विभाग में आती है और वहां से पास होने के बाद वापस विभाग में जाती है। फिर जाकर यह फाइल लेखा विभाग में भुगतान के लिए आती है। अब इस प्रक्रिया से अलग हटकर प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश ऑडिट विभाग के द्वारा की जा रही।
दरअसल नगर निगम के इस फर्जी फाइल घोटाले में ऑडिट विभाग के चार अधिकारी निलंबित हुए हैं। इसके परिणाम स्वरूप अब ऑडिट विभाग के अधिकारी इस तरह का कोई कार्य करने के लिए तैयार नहीं है। जिससे कि आने वाले समय में उनकी भूमिका पर सवाल उठ सके। इस सब स्थिति के चलते हुए ही बिजली कंपनी के भुगतान की फाइल अटक गई है।