बाजार में उठापटक , अडानी विवाद या षड्यंत्र पर राजनीतिक हंगामा

603

बाजार में उठापटक,अडानी विवाद या षड्यंत्र पर राजनीतिक हंगामा

ईमानदारी और स्पष्टवादिता के लिए युवा तुर्क  से प्रधान मंत्री बने चंद्रशेखर ने अपनी आत्म कथा ( जीवन जैसा जिया )  में बोफोर्स कांड पर लिखा था – ‘ विश्वनाथ सिंह और उनके जनमोर्चा के नेताओं ने बोफोर्स को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया | उस समय मैंने यह बात कही थी कि यह एक सब इंस्पेक्टर का काम है | पहले जांच हो |इसमें अगर कोई दोषी साबित होता है , तो उस पर मुक़दमा चले और उसमें कोई दखलंदाजी नहीं हो | मैं समझाता हूँ कि इस सवाल पर संसद का समय बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए | मुझे ऐसा लगता है कि इस मुद्दे पर राजीव गांधी से भी भूल हुई | वह यह कि उन्होंने संसद में बार बार दोहराया कि मैंने या मेरे परिवार या मेरे निकट के किसी आदमी ने कमीशन नहीं लिया है | इस बारे में मेरा शुरुआती बयान था वही सच साबित हुआ | “

IMG 20230202 WA0010

अब भारत के प्रमुख उद्योगपति गौतम अडानी और उनके व्यापारिक समूह पर एक अमेरिकन कंपनी की रिपोर्ट से शेयर मार्केट में आए तूफ़ान तथा भारतीय बैंकों तथा जीवन बीमा निगम की पूंजी को लेकर उठे राजनीतिक विवाद पर मुझ जैसे पत्रकारों को पिछले दशकों में उठे विवादों और सरकारों पर प्रभाव की घटनाओं  का ध्यान आता है | इसीलिए चंद्रशेखरजी की याद भी आई | हमें इस पूरे विवाद में  किसी गड़बड़ी पर किसी जांच या दोषी लोगों या कंपनी पर कार्रवाई पर भी कोई आपत्ति नहीं है | लेकिन पुराने सन्दर्भों में    इस समय सर्वाधिक उत्तेजित राहुल गांधी तथा उनकी पार्टी के नेता ठक्कर नटराजन  न्यायिक आयोग की रिपोर्ट को याद दिलाया जा सकता है  , जिसमें बताया गया था कि वी पी सिंह ने राजीव सरकार में वित्त मंत्री रहते हुए विवादास्पद  अमेरिकन कम्पनी फेयरफेक्स को गाँधी परिवार और उनके करीबी लोगों के आर्थिक संबंधों की गोपनीय जांच के लिए ठेका दिया था और  वह कोई ठोस तथ्य नहीं जुटा पाई | इस कम्पनी में अमेरिकन गुप्तचर एजेंसी के कुछ लोगों के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष जुड़े होने के आरोप भी थे | वर्तमान विवाद के दौरान भी अमेरिकन कथित रिसर्च कंपनी के पूर्वाग्रह , निहित आर्थिक स्वार्थ और भारत की आर्थिक राजनीतिक स्थिरता पर आंच डालने जैसी आशंकाएं भी व्यक्त की जा रही हैं | सरकार फिलहाल यही कह रही है कि एक समूह के उतार चढ़ाव से उसका कोई लेना देना नहीं है और रिजर्व बैंक तथा अन्य स्वतंत्र वित्तीय संस्थाएं आवश्यक जांच पड़ताल कर रही हैं |

 वित्तीय और राजनीतिक विवाद पर हर्षद मेहता के शेयर घोटाले में तत्कालीन कांग्रेसी प्रधान मंत्री नरसिंह राव पर एक करोड़ रुपये लेने के गंभीर आरोप का ध्यान भी आता है | बाद में जांच पड़ताल से हर्षद मेहता  झूठा साबित हुआ | वह स्वयं दोषी पाया गया और जेल भी गया | लेकिन सड़क से संसद तक हंगामे में राव दोषी नहीं पाए गए | नेहरु के सत्ता काल में दो ऐसे विवाद सामने आए थे | उनके एक मंत्री केशव देव मालवीय पर पार्टी के एक नेता के चुनाव में एक कंपनी से छोटी सी आर्थिक सहायता का आरोप लगा था , जो बाद में गलत साबित हुआ | स्वंतंत्रता सेनानी गांधीवादी मालवीयजी ने दुखी मन से इस्तीफा अवश्य दे दिया था | हाँ एक दूसरा विवाद दिलचस्प है | राहुल गाँधी के दादा फ़िरोज़ गाँधी ने नेहरु सरकार द्वारा मुंधड़ा व्यापारिक समूह को जीवन बीमा निगम द्वारा नियमों के विपरीत आर्थिक सहयोग दिए जाने पर संसद में हंगामा कर दिया था | नेहरु इन आरोपों का खंडन करते रहे | लेकिन उनको अनावश्यक संकट से बचाने के लिए उनके वित्त मंत्री टी टी कृष्णमाचारी ने इस्तीफ़ा दे दिया था | अब भी जीवन बीमा निगम द्वारा अडानी समूह को ऋण दिए जाने को मुद्दा बनाया जा रहा है | लेकिन जीवन बीमा निगम ने इस बार कोई वित्तीय सहायता आदि नहीं दी है , बल्कि अडानी समूह की संपत्ति के एक हिस्से को गिरवी रखकर कर्ज दिया है  | बाजार के उतार चढ़ाव से निगम को कोई नुकसान नहीं हो रहा है |

बहरहाल , प्रतिपक्ष को राजनीतिक हमले का मुद्दा मिल गया है | अडानी अंबानी समूह को लेकर प्रतिपक्ष पहले से सरकार पर आरोप लगाता रहा है | लेकिन सरकार ही नहीं इन समूहों या अन्य पर्यवेक्षकों का यह तर्क भी सही है कि मोदी सरकार से पहले कांग्रेस तथा अन्य दलों की सरकारों के दौरान ऐसे कई औधोगिक – व्यापारिक  समूहों को हर संभव बढ़ावा दिया गया | अंबानी  अडानी समूह तो कांग्रेस के सत्ता काल में ही पले , फले , फूले |  सत्तर के दशक तक केवल टाटा बिड़ला या डालमियां व्यापारिक समूहों का नाम लिया जाता था | कम्युनिस्ट और श्रमिक संगठन इन समूहों और कांग्रेस के संबंधों पर आरोप लगाते रहते थे | फिर राजीव गाँधी से मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकारों के दौरान अंबानी अडानी समूह तेजी से आगे बढ़ते रहे | केंद्र में मोदी सरकार के रहते राजस्थान , पंजाब , छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में कांग्रेस सरकारों ने इन दोनों समूहों को निर्माण या ऊर्जा , संचार आदि क्षेत्रों में काम के बड़े ठेके दिए | इसलिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा सरकारों से अन्य कंपनियों के साथ इन समूहों के भी आगे बढ़ने पर सवाल उठने को कहाँ तक उचित कहा जा सकेगा ? इसी तरह केरल में मार्क्सवादी या बंगाल में टी एम् सी या तेलंगाना – आंध्र की सरकारों ने भी ठेके दिए हैं | केंद्र या राज्यों में भ्रष्टाचार या गड़बड़ी की जांच या अदालती कार्रवाई कभी भी हो सकती है , लेकिन राजनीतिक हंगामों और गैर प्रामाणिक बातों को उछाले जाने से देश की अर्थ व्यवस्था को भी नुकसान होने का खतरा रहता है | भारत में विदेशी पूंजी निवेश और आर्थिक विकास में भी बाधा आती है | हाल के वर्षों में तो दुनिया के कई संपन्न विकसित देशों में भारतीय कम्पनियाँ अपनी पूंजी लगाकर काम पा रही हैं | यहाँ तक कि करीब 15  वर्ष पहले चीन के शंघाई की औद्योगिक बस्ती में भारत की कंपनियों के कुछ कारखाने देखने का अवसर मुझे भी मिला है | सौर ऊर्जा के क्षेत्र में जर्मनी के साथ भी भारतीय कंपनियों के आर्थिक सम्बन्ध हैं | ब्रिटेन , फ्रांस , अमेरिका , रुस , दक्षिण कोरिया , जापान के साथ कई भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं | जैसे देशों  इसलिए संवेदनशील मुद्दों पर अधिक जिम्मेदारी से आवाज उठनी चाहिए |

Author profile
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।