सिंहासन खाली करो कि हिंदी आती है…..
विदेशी प्रभुत्व की एक औऱ प्रचंड प्राचीर ध्वस्त होने को है. भारतीय भाषाओं के लिये यह उत्सव का क्षण है.16अक्टूबर को मप्र एक बहु प्रतीक्षित पहल करने जा रहा है… चिकित्सा शिक्षा हिंदी में प्रारंभ होने जा रही है. आज महात्मा गाँधी जी स्वर्ग में गद गद होंगे… विदेशी प्रभुत्व को बापू ने हर स्तर पर चुनौती ही नहीं दी थी व्यावहारिक समाधानों को भी खोजा औऱ क्रियान्वित किया था. पंत, प्रसाद, निराला, प्रेमचंद, महादेवी ही नहीं भारतेन्दु भी आज हर्षित होंगे. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के हिंदी के इतिहास में एक सार्थक अध्याय भवानी भाई औऱ माखनलाल चतुर्वेदी की भूमि पर लिखा जा रहा है. शरद जोशी औऱ हरिशंकर परसाई की माटी अपना ही नहीं भारत भूमि का रंग ढंग भी बदल रही है. हिंदी हमारी ग्रामीण प्रतिभाओं के गले में कसी विदेशी भाषा की चुभती सांकल को तोड़कर नव उनमेष देगी.
मुझे विद्यार्थी जीवन में अपनी कक्षाओं के ग्रामीण औऱ निर्धन परिवेश से आने वाले वे सहपाठी याद हैं जो विदेशी भाषा की सूली पर नित्य अपमान के दंश झेलते थे. प्रशासन अकादमी में मुझे अब भी याद है कि छत्तीसगढ़ से आया एक साथी पहले सप्ताह के बाद ही अंग्रेजी से आतंकित होकर भाग जाना चाहता था. ग्वालियर का वह युवा भी जो मेरी औऱ मेरे साथियों की सतत सलाह के बाद भी इसी अंग्रेजी से त्रस्त होकर दोबारा बाबू की नौकरी में वापस लौट गया.
भारतीय भाषाओं का मुक्ति पर्व है यह… कभी अपने जीवन काल में हम बांग्ला,मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़ सहित सभी भारतीय भाषाओं में चिकित्सा शिक्षा होते देखें औऱ उच्च अनुसन्धान भी…. जैसा कि कभी संस्कृत में हमारे पुरखों ने देखा किया था. हिंदी को श्रेष्ठ तम संपादक औऱ कलमकार देने वाली धरा से हिंदी के सार्थक गौरव की यह धारा प्रवाहित होते देख आज माधवराव सप्रे,राहुल बारपुते राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी, माणिक चन्द्र वाजपेयी, मायाराम सुरजन भी कुछ लिखने बैठ गए होंगे. अपनी भाषा में अपनी भाव भूमि में, अपने भजन औऱ भोजन में अब अपना भेष ही नहीं भेषज भी जुड़ने जा रहा है. बधाई. यह मुक्ति का क्षण है औऱ श्रेष्ठता का राजमार्ग भी. मप्र के उस पुरुषार्थ का अभिनन्दन जिसने यह कर दिखाया.