Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : कहीं दुखदाई न बन जाय मंत्रियों के कारनामे!
वैसे तो जमीन के मामलों में पहले भी कई नेता फंसे हैं लेकिन इन दिनों भाजपा के मंत्री भी इस खेल में फंसते नजर आ रहे हैं।
राजनीति करने वालों को जमीन का खेल करने में महारत हासिल होती है। उन्हें जब भी मौका मिलता है, वे जमीन का गड़बड़ घोटाला करने से नहीं चूकते। भाजपा के कई मंत्री धीरे-धीरे जमीन के इसी खेल में फंसते जा रहे हैं। पहले राजस्व और परिवहन मंत्री गोविंद राजपूत पर इस तरह के आरोप लगे और अब उज्जैन के मोहन यादव इस जमीन के खेल में फंसते नजर आ रहे हैं।
मंत्री मोहन यादव को लेकर प्रमाण सहित जो जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक उज्जैन के मास्टर प्लान की अपनी और रिश्तेदारों की 29 एकड़ जमीन को उन्होंने फ्री करवा लिया। अब ये मास्टर प्लान का हिस्सा नहीं है। खास बात यह कि अभी तक रिकॉर्ड में जो कृषि भूमि के रूप दर्ज थी, उसे भी आवासीय बना दिया गया। आशय यह कि मंत्री मोहन यादव और उनका परिवार अब वहां कॉलोनी काट सकता है।
बताते हैं कि मोहन यादव ने अपनी जमीन बचाने के लिए उज्जैन के मास्टर प्लान को ढाई साल तक लटका कर रखा। सिर्फ यही एक घटना नहीं, मोहन यादव इस तरह के कारनामे करने में माहिर माने जाते हैं। यह अलग बात है कि इसी चक्कर में उच्च शिक्षा विभाग के एक अधिकारी को अपनी नौकरी तक गंवानी पड़ी। गोविंद राजपूत, मोहन यादव पर तो उंगली उठी ही है, इसके अलावा भूपेंद्र सिंह के खिलाफ भी लोकायुक्त जांच शुरू हो गई। आरोप है कि उनके परिवार ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित की। ये वे मंत्री हैं, जो सामने आ गए। लेकिन, और भी मंत्री हैं जिनके बारे में इस तरह के मामलों की समय-समय पर चर्चा होती रहती हैं। हम तो यही कह सकते हैं कि चुनाव के समय काल में ऐसे खुलासे कहीं भाजपा के लिए दुखदाई ना बन जाए।
खतरे में था राजनीतिक कैरियर, बिरसा मुंडा के बहाने फिर सक्रिय!
आज से करीब 3 महीने पहले तक जिस आदिवासी विधायक का राजनीतिक कैरियर खतरे में दिखाई दे रहा था, यहां तक कि विधायकी दांव पर लगी हुई थी, जो दुष्कर्म मामले में फरारी काट रहा था, वही एमएलए अब नए जोश खरोश के साथ फिर से राजनीति में सक्रिय दिखाई दे रहा है। जी हां, हम यहां बात कर रहे हैं पूर्व मंत्री और विधायक आदिवासी नेता उमंग सिंघार की।
उमंग सिंघार तीन बार के विधायक हैं और कमलनाथ कमलनाथ सरकार में वन मंत्री भी रहे। 3 महीने पहले एक समय ऐसा था जब उनका राजनीतिक कैरियर खतरे में दिख रहा था। उनकी पत्नी ने ही उनके खिलाफ रेप का केस दर्ज करवाया था। धार पुलिस उमंग को गिरफ्तार करने के लिए उनके पीछे पड़ी थी। वे पुलिस के हाथ नहीं लग फरार थे। बाद में मार्च में ही उन्हें हाई कोर्ट से जमानत मिली।
अभी जमानत मिले कोई 3 महीने भी नहीं हुए हैं कि उमंग सिंगार की सक्रियता सबको फिर से नजर आ रही है। उन्होंने बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर जिस तरह का जमावड़ा किया, उससे निश्चित रूप से बीजेपी तो क्या उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं को झटका लगा होगा। आश्चर्य है कि धार झाबुआ जैसे आदिवासी बहुल इलाके में किसी और भाजपा नेता को बिरसा मुंडा की याद क्यों नहीं आई!
बता दे कि जब से गंधवानी विधानसभा सीट बनी है, वे लगातार तीन बार से यहां से जीत चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी कांग्रेस हाईकमान तक सीधी पहुंच है। यही कारण है कि पहले हिमाचल प्रदेश के चुनाव के समय वे पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए और इसके बाद कर्नाटक विधानसभा में भी पर्यवेक्षक बनाए गए। भले ही वे अकेले चलते हैं, लेकिन आदिवासियों से उनका जुड़ाव अनदेखा नहीं किया जा सकता। क्षेत्र पर उनकी पकड़ भी किसी से छुपी नहीं है। पूरे आदिवासी इलाके में भाजपा का कोई आदिवासी नेता उमंग सिंगार को टक्कर देने वाला दिखाई नहीं दे रहा।
लंबे समय तक उनकी पहचान सिर्फ इसलिए बनी रही कि वे कांग्रेस की सीनियर लीडर स्व जमुना देवी के भतीजे हैं। वे लोकसभा चुनाव भी हारे लेकिन, अब उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली। भले ही वे अन्य मामलों में चर्चित रहे हो, फिर भी आज की स्थिति में भाजपा के पास गंधवानी में उन्हें टक्कर देने वाला कोई आदिवासी नेता दिखाई नहीं देता।
हर शहर में कोई न कोई गंगा जमुना स्कूल मिलेगा!
प्रदेश में सवा साल को छोड़ दिया जाए तो पिछले साढ़े 19 साल से बीजेपी की सरकार है। दमोह के एक स्कूल में जिस तरह धर्मांतरण के मामले सामने आए हैं और जिस प्रकार की धार्मिक पढ़ाई वहां हो रही थी उसे देखते हुए वहां के प्रशासन पर और सरकार पर प्रश्न चिन्ह लग गए हैं। अगर मुख्यमंत्री का सख्त रवैया नहीं होता तो शायद यह सब अभी भी चलता रहता।
दमोह में एक ऐसे स्कूल की जानकारी सामने आई, जिसमें शिक्षा के नाम पर धर्म की दुकान चल रही थी। यहां की पढ़ाई बिल्कुल मदरसों की तरह कराई जा रही थी। स्कूल के शिक्षक भी धर्मांतरण कर रखे गए थे। वहां विद्यार्थियों को कुरान की आयतें सिखाई जाने और होमवर्क भी उर्दू में दिए जाने की जानकारी मिली।
इसके अलावा बहुत सारी ऐसी जानकारी भी सामने आई जो किसी भी स्थिति में किसी स्कूल में नहीं मिल सकती। इस बात का खुलासा भी तब हुआ जब वहां के प्रतिभावान छात्रों के होर्डिंग शहर में दिखाई दिए। इसमें चार हिंदू छात्राएं थी जिन्हें हिजाब पहने फोटो में दिखाया गया था। जब इसे लेकर आपत्ति उठाई गई, तो सच सामने आया। लेकिन, शुरुआती जांच में कलेक्टर, शिक्षा मंत्री और जिला शिक्षा अधिकारी ने स्कूल को क्लीन चिट दे दी कि वहां ऐसा कुछ नहीं होता और वह हिजाब नहीं स्कूल की ड्रेस का एक हिस्सा है।
बाद में मुख्यमंत्री निर्देश पर जांच हुई, तो नए खुलासे हुए।मामले में सीएम के सख्त रवैये को देखते हुए जिस कलेक्टर ने पहले स्कूल को क्लीन चिट दी थी उसी कलेक्टर की अध्यक्षता में बनी समिति ने स्कूल में ढेरों खामियां पाई। यह सारी खामियां धर्म आधारित थी। अब इस संस्था से जुड़े 3 लोग जेल की हवा खा रहे हैं।
प्रदेश में गंगा-जमुना स्कूल अकेला नहीं है, जहां ये सारा गोरखधंधा चल रहा है। प्रदेश के हर शहर में ऐसा कोई न कोई स्कूल मिल सकता है, जो इसी पैटर्न पर चल रहा होगा। भोपाल में तो एक स्कूल सामने भी आया और जब वहां छापा मारा गया तो वहां कोई जवाबदार मिला ही नहीं। लेकिन, सरकार के लिए यह घटना एक सबक है कि शिक्षा के नाम पर जो हो रहा है वह किसी भी दृष्टि में सही नहीं और उसे रोका जाना चाहिए। क्या सरकार से उम्मीद की जाए कि वे प्रदेश के हर जिले में इस तरह के स्कूलों की तहकीकात करें!
भाजपा संगठन में सर्जरी की संभावना!
मध्य प्रदेश भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में चल रही चर्चाओं पर अगर भरोसा किया जाए तो अभी भी किसी भी समय मध्य प्रदेश भाजपा के संगठन में फेरबदल संभावित हो सकता है।
गत दिनों दिल्ली में 3 बड़े नेताओं की बैठक की रिपोर्ट अभी प्रधानमंत्री के पास है। अगर इस रिपोर्ट की खबर को सही माना जाए तो उसमें मध्य प्रदेश संगठन पर भी गाज गिर सकती है।
पार्टी आलाकमान और संघ के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार विधानसभा चुनाव के संदर्भ में जो सर्वे करवाए गए, उसमें पार्टी की स्थिति बेहतर नहीं बताई गई है। ऐसी स्थिति में पार्टी आलाकमान संगठन में फेरबदल के बारे में पिछले कई दिनों से लगातार मंथन कर रहा है।
अभी यह नहीं कहा जा सकता कि संगठन की कमान किसे सौंपी जाएगी! लेकिन, जो संकेत मिल रहे हैं उससे लगता है कि विंध्य के किसी नेता को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है। क्योंकि, पता चला है कि पार्टी सर्वे में यह बात आई है कि विंध्य आगामी चुनाव की दृष्टि से सबसे ज्यादा कमजोर है। हमारे दिल्ली सूत्रों की खबरों पर अगर भरोसा किया जाए तो विंध्य के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला को यह जवाबदारी दी जा सकती है। कारण का अंदाज आप खुद लगा सकते हैं।
लेकिन, यह नहीं कहा जा सकता कि यह कब होगा। लेकिन, इस बात की पूरी संभावना है कि किसी भी समय यह फैसला पार्टी ले सकती है!
भाजपा में अनुशासन की सरेआम धज्जियां उड़ी
राजनीति में अनुशासन की कोई जगह नहीं होती। इसके बावजूद भाजपा हमेशा इस बात का दावा करती रही है कि वह सबसे ज्यादा अनुशासित पार्टी है। उसके सारे कार्यकर्ता अनुशासन में बंधे हैं और वे वही करते हैं, संगठन उन्हें जो निर्देश देता है। जब तक भाजपा सत्ता में नहीं थी, यह बात सही साबित भी हुई। लेकिन, जब से पार्टी सत्ता में है, उसके कार्यकर्ता उच्श्रृंखल हो गए और उन्होंने अनुशासन की सारी सीमाएं लांघ दी।
इंदौर में शनिवार की रात को जो हुआ, वह इसी अनुशासनहीनता का एक ताजा उदाहरण है। भारतीय जनता युवा मोर्चा के नगर अध्यक्ष सौगात मिश्रा और मोर्चा के प्रदेश मंत्री शुभेंदु गौड़ के बीच में जो कुछ हुआ, वह जग जाहिर है। जिस तरह की मारपीट हुई और गाली गलौच हुआ, उससे लग गया कि पार्टी में अब अनुशासन के लिए कोई जगह नहीं रह गई।
मुद्दे की बात यह इंदौर के भाजयुमो नेताओं के बीच में जिस तरह का वार्तालाप और मारपीट हुई उस समय मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष वैभव पवार भी वहीं मौजूद थे। झूमा झटकी में उनका कुर्ता भी फट गया। BJYM द्वारा नोटिस देने की औपचारिकता पूरी की गई है।
अब पार्टी भले ही कितनी लीपापोती करें। लेकिन, जो होना था वह हो गया। इस घटना के वीडियो सामने आए और सोशल मीडिया पर खूब चले। लोगों ने भी उन वीडियो को मजे ले लेकर देखा। इस सबके बावजूद यदि पार्टी अनुशासन की बात करे, तो वह समझ से परे है।
‘जयस’ में फूट, कैसे आदिवासी सीटों को संभालेंगे!
आदिवासियों के संगठन ‘जयस’ ने हमेशा इस बात का दावा किया कि वह प्रदेश की 80 विधानसभा सीटों पर अपना प्रभाव रखती है। उसका सबसे ज्यादा प्रभाव पश्चिमी मध्य प्रदेश के इंदौर-उज्जैन संभाग की आदिवासी सीटों पर है। ‘जयस’ के संस्थापक डॉ हीरालाल अलावा हमेशा ही आदिवासियों के एकछत्र नेता होने का दावा करते हैं। लेकिन, जिस तरह इस संगठन में फूट पड़ रही है, उससे लगने लगा कि अब आदिवासी भी राजनीतिक रूप से जागरूक हो गए।
इस संगठन से जुड़े एक गैर आदिवासी नेता डॉ आनंद राय ने तो हैदराबाद जाकर तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टी ज्वाइन कर ली। इसके अलावा पार्टी के एक और नेता भी नाराज होकर अपनी अलग पहचान बनाने में लगे हैं। इस पूरे घटनाक्रम का लब्बो-लुआब यह है कि ‘जयस’ जिस तरह का दावा करता रहा है, हालात वैसे नहीं है। अगले विधानसभा चुनाव में उसका यह दावा करना कि वह अकेले चुनाव लड़ेगा, समझ से परे है।
इस आदिवासी संगठन में फूट तब पड़ी, जब ‘जयस’ के राष्ट्रीय संरक्षक और मनावर के विधायक हीरालाल अलावा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखकर डॉ आनंद राय पर आरोप लगाया था। उन्होंने लिखा था कि डॉ रॉय आदिवासियों में भ्रम और अफवाह फैलाकर भोले-भाले आदिवासियों को भड़काकर उन्हें आपस में लड़वाने और समाज में अशांति फैलाने का काम कर रहे हैं। इसके खिलाफ सरकार जल्द से जल्द कार्रवाई करे अन्यथा कोई भी अनहोनी होगी तो उसके लिए सरकार भी जिम्मेदार होगी। इसके बाद से ही माहौल बिगड़ गया था।
इसी हफ्ते जारी हो सकती है दिल्ली के पुलिस आयुक्त की तबादला सूची
जैसा कि मीडियावाला ने इस कॉलम में पिछले सप्ताह बताया था, गृह मंत्रालय ने बीते सप्ताह यूटी काडर के 32 आईएएस और 27 आईपीएस अधिकारियों के तबादले और नयी तैनाती के आदेश जारी कर दिए। इसी सूची के कारण रुकी दिल्ली के पुलिस आयुक्त की तबादला सूची के भी इसी हफ्ते जारी हो जाने की संभावना है।
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असम के मुख्यमंत्री का मणिपुर दौरा
मणिपुर को लेकर सरकार द्वारा कुछ और कदम उठाने के संकेत मिल रहे हैं। गलियारों में चल रही चर्चा के अनुसार असम के मुख्यमंत्री को मणिपुर भेजा जाना काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वास शर्मा पूर्वोत्तर की राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं। पूरे क्षेत्र में कांग्रेस का सफाया कर भाजपा को जमाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसलिए शर्मा का इंफाल दौरा राजनीतिक नजरिये से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
राज्य प्रशासनिक सेवा के 33 अफसरों को इसी सप्ताह होगा IAS अवार्ड
राज्य प्रशासनिक सेवा के 33 अफसरों को अब और इंतजार नहीं करना होगा। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यूपीएससी में हुई बैठक के बाद चयनित 33 नामों की सूची राज्य सरकार ने फिर से यूपीएससी को भेज दी है।
माना जा रहा है कि अब इस सप्ताह वहां की मंजूरी मिलते ही केंद्र की अधिसूचना जारी हो जाएगी। बता दें कि इन 33 अफसरों में से 2021 के 19 और 2022 के 14 पदों के लिए आईएएस अवार्ड होगा।
लंबे अंतराल के बाद MP कैडर के तीन IAS अधिकारी केंद्र में सचिव पद पर इंपैनल्ड
एक लंबे अंतराल के बाद मध्य प्रदेश कैडर के तीन आईएएस अधिकारी केंद्र में सचिव के पद पर इंपैनल्ड किए गए हैं। केंद्र सरकार में इन्हें नियुक्ति कब मिलेगी, इसकी भविष्यवाणी करना फिलहाल जल्दी होगी। लेकिन सूत्रों का कहना है कि एक आईएएस अधिकारी को जुलाई तक नियुक्ति मिल सकती है। अब वह लकी अधिकारी कौन हो सकता है, इसके लिए अंदाजा लगाने मे कोई बुराई नहीं है।