Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : मुसीबत में दिखाई देते मंत्री भूपेंद्र सिंह!
सरकार के नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह के सितारे इन दिनों कुछ ठीक नहीं चल रहे। एक समय मुख्यमंत्री के सबसे निकट माने जाने वाले इन मंत्री से सरकार की दूरी साफ दिखाई दे रही है। यहां तक की जिन कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी जरूरी होना चाहिए, वहां भी वे मंच पर दिखाई नहीं दिए। वे भोपाल के प्रभारी मंत्री हैं, लेकिन भोपाल गौरव दिवस में भी वे मंच पर नहीं थे। सरकार में होते हुए भी ये दूरी समझ से परे है।
इसी बीच वे लोकायुक्त की जांच के घेरे में भी आ गए। वे मुसीबत में हैं, लेकिन आखिर ऐसे क्या कारण थे कि वे मुख्यमंत्री से भी दूर हो गए! अभी ये कारण तो सामने नहीं आया, लेकिन लग रहा है कि चुनाव से पहले उनके साथ ऐसा रवैया किसी बड़े नुकसान का इशारा हो सकता है। कुछ दिनों पहले उनके ही सागर इलाके के दो मंत्रियों और विधायकों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। मंत्री गोपाल भार्गव और गोविंद सिंह राजपूत सहित सागर के भाजपा विधायक मुख्यमंत्री के पास उनकी शिकायत लेकर पहुंच गए थे।
नाराज गुट का कहना है कि उनकी शिकायत को कोई सुन नहीं रहा था, इसलिए एक साथ जाकर मुख्यमंत्री से बात की गई। आश्चर्य की बात यह भी है कि संगठन ने अब तक कोई हस्तक्षेप नहीं किया। ऐसे में भूपेंद्र सिंह के खिलाफ कांग्रेस की शिकायत पर लोकायुक्त शिकायत दर्ज होना भी बड़ी बात है। लोकायुक्त ने मंत्री की जांच शुरु कर दी। कांग्रेस का आरोप था कि भूपेंद्र सिंह ने पिछले 10 साल में लगभग 46 करोड़ की संपत्ति अर्जित की।
कुछ अलग बयां करते दिग्विजय सिंह के तेवर!
कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के काम करने की अलग ही अदा है, जो दिखाई भी देती है। राजनीति में उनका अनुमान भी गलत नहीं निकलता और वे जानते है कि उनका कौनसा कदम उन्हें लोकप्रियता दिलाएगा। सागर के सुरखी विधानसभा इलाके में 10 आदिवासी परिवारों के मकान तोड़े जाने की घटना को यदि देखा जाए, तो यह एक सामान्य घटना है। लेकिन दिग्विजय सिंह ने उसे अपने नजरिए से देखा और घटना के बाद एक ट्वीट किया और भोपाल से सागर के लिए निकल पड़े।
सागर में उन्होंने उस जगह पर जाकर धरना दे दिया जहां 10 मकान वन विभाग ने अतिक्रमण मानकर छोड़ दिए थे। दिग्विजय सिंह वहीं जमीन पर बैठ गए और चेतावनी दी कि जब तक इस मामले का निराकरण नहीं हो जाता, वे यहां से नहीं उठेंगे! उनकी जगह और कोई नेता होता तो शायद उनकी इस धमकी को सामान्य लिया जाता। लेकिन, जब दिग्विजय सिंह ने कहा तो सरकार को भी लगा कि मामला गंभीर है।
उनके बुलाने पर कलेक्टर, एसपी और डीएफओ वहां पहुंचे और वहीं जमीन पर दिग्विजय सिंह से बात की। जिस अंदाज में दिग्विजय सिंह ने उनसे अपनी मांगे मनवाई और वही कार्रवाई को लिखवाया, ये इस बात का संकेत है कि ब्यूरोक्रेसी में दिग्विजय सिंह की दहशत वापस लौट आई।
इस पूरे घटनाक्रम का एक पहलू यह भी है कि सरकार इस पूरे मामले में नहीं बोली। इसलिए कि यह सिंधिया के साथ आए मंत्री गोविंद राजपूत के इलाके का मामला था। दिग्विजय सिंह के ट्वीट के बाद गोविंद राजपूत ने भी तत्काल एक वीडियो जारी करके सफाई दी। उन्होंने यह बताने की कोशिश की, कि यह घटना उनकी जानकारी में नहीं है।
लेकिन, अफसरों का रवैया जिस इस तरह का रहा, उससे लगता है कि उन्हें ऊपर से ही संकेत थे, इस मामले को संजीदगी से निपटाया जाए और वही हुआ भी। घटनाक्रम को देखकर समझने वालों का मानना है अफसरों को भी यह अहसास होने लगा है कि चुनाव नतीजों तक कांग्रेस के बड़े नेताओं से कोई पंगा मोल न लिया जाए। क्योंकि, ऊंट की करवट का कोई अंदाजा भी नहीं होता!
सिंधिया के लोगों से कन्नी काटती भाजपा!
इन दिनों सिंधिया के साथ आए सभी मंत्री कांग्रेस के निशाने पर हैं। यह तो ठीक है लेकिन इसका एक दुखद पहलू यह है कि भाजपा ने एक तरह से उनसे कन्नी काट ली। जब भी सिंधिया समर्थक किसी मंत्री पर कांग्रेस हमलावर होती है, भाजपा पूरी कर उस घटना की अनदेखी कर देती है। पिछले 6 महीने में ऐसी कई घटनाएं हुई, जब सिंधिया समर्थक मंत्रियों पर हुए हमले को भाजपा ने नजरअंदाज किया। अभी तक तो कुछ इसी तरह का इशारा सरकार की तरफ से मिला है।
ग्वालियर में प्रद्युम्न सिंह तोमर से लगाकर जो भी नेता सिंधिया के साथ आए थे, वे इस समय अकेले पड़ गए लगते हैं। महेंद्र सिंह सिसोदिया पर जयवर्धन सिंह ने जिस तरह हमले किए, भाजपा का कोई नेता बीच में नहीं आया। यहां तक कि उन्होंने जयवर्धन सिंह को कोई जवाब तक नहीं दिया। जब जमीन विवाद में गोविंद राजपूत फंसे, तो भी वे अकेले संघर्ष करते रहे। भाजपा की तरफ से उन्हें कोई मदद मिली हो ऐसा दिखाई नहीं दिया। बदनावर में मंत्री राज्यवर्धन सिंह के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ।
अब तो सिंधिया के लोगों में आपस में भी खींचतान के हालात हैं। महेंद्र सिंह सिसोदिया को पिछले दिनों इमरती देवी तक धमका आई कि यदि मेरे काम नहीं करे, तो मैं वापस कांग्रेस में लौट जाऊंगी। लेकिन, लग रहा है कि सिंधिया भी अब अपने लोगों के बीच में नहीं बोल रहे। क्योंकि, उन्हें पता है कि हवा किस तरफ बह रही है और ऐसे में क्या करना चाहिए!
प्रधानमंत्री की यात्रा के बाद होंगे IAS -IPS अफसरों के तबादले
प्रदेश के प्रशासनिक गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों से है कि प्रधानमंत्री की 27 जून को मध्य प्रदेश यात्रा के बाद IAS -IPS अफसरों के तबादले हो सकते है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस तबादला सूची में ऐसे अधिकारियों के तबादले होंगे जिनका कार्यकाल एक ही स्थान पर 3 साल से ज्यादा हो गया है या जनवरी तक होने वाला है। इस सूची में इंदौर और उज्जैन संभाग के कमिश्नर के अलावा आधा दर्जन जिलों के कलेक्टर और एसपी के नाम चर्चा में हैं। चर्चा तो 2 और संभाग के कमिश्नर के बदले जाने की भी है। दिग्विजय एपिसोड के बाद सागर के कलेक्टर और एसपी भी बदले जा सकते हैं। वहीं जबलपुर की राज्यसभा सदस्य के साथ हुए व्यवहार को लेकर जबलपुर कलेक्टर के तबादले की भी चर्चा है। वल्लभ भवन गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि मंत्रालय स्तर पर भी अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिव स्तर पर भी कुछ फेरबदल हो सकता है।
क्या नया करने के मूड में हैं डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे!
छतरपुर जिले की डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे इन दिनों खासी चर्चा में है। इसलिए कि उन्होंने अपनी छुट्टी मंजूर न होने पर तत्काल इस्तीफा दे दिया। दरअसल, बैतूल जिले के आमला में उनका मकान बना है और उसके उद्घाटन में शामिल होने के लिए उन्होंने छुट्टी मांगी थी, पर सरकार ने नहीं दी। बताते हैं कि बात इतनी सी नहीं है कि छुट्टी नहीं मिलने पर एसडीएम में इस्तीफा दिया। इसके पीछे कोई बड़ी रामायण है और उसके पीछे छुपा कोई मकसद भी है जिसे समझा जाना चाहिए।
निशा बांगरे ने अपने सीनियर की नाराजी के पीछे धार्मिक कारण भी गिनाए। वे अम्बेडकरवादी विचारधारा की हैं और मकान के उदघाटन के समय ही वे ऐसे किसी कार्यक्रम में शरीक होना चाहती थी, जिसकी सरकार को भनक लग गई। इसके अलावा एक सबसे बड़ी वजह उनकी राजनीतिक इच्छा को भी माना जा रहा है। कुछ दिनों पहले से इस बात की भी सरगर्मी थी कि निशा बांगरे विधानसभा चुनाव लड़ने के मूड में है। ये बात कितनी सच है इस बात का दावा नहीं किया जा सकता, पर इस घटना ने इस खबर पर मुहर लगा दी कि वे चुनाव लड़ सकती हैं।
चुनाव से पहले जिस तरह का प्रचार मिलना चाहिए था, वह तो निशा बांगरे को मिल गया। जिस तरह का माहौल उन्होंने बनाया उससे यह बात भी स्पष्ट हो गई, कि वह कम से कम वे भाजपा के टिकट पर तो चुनाव नहीं लड़ने वाली। जिस भी पार्टी के टिकट पर वे चुनाव लड़ने के मूड में होंगी, इस एक घटना ने उन्हें लोकप्रियता तो दिलाई। निश्चित रूप से इसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलेगा और तब भी वे सरकार को घेरने का कोई मौका भी नहीं छोड़ेंगी। इस बीच उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह किसी भी स्थिति में नौकरी पर वापस नहीं लौटेंगी। यानी यह समझा जाना चाहिए कि आमला से एक उम्मीदवार तो तय हो गया।
केजरीवाल और उप राज्यपाल के बीच तनातनी जारी
बीते हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो अमेरिका और इजिप्ट की यात्रा में भारत के सबंधों को नयी ऊंचाई देने मे व्यस्त थे, लेकिन दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उप राज्यपाल वी के सक्सेना के बीच तनावपूर्ण पत्र व्यवहार चल रहा था। केजरीवाल ने अपने पत्र में आरोप लगाया कि दिल्ली की कानून व्यवस्था बहुत बिगडी, चूंकि आप दिल्ली के लिए नये है इसलिए आपको (उपराज्यपाल) जमीनी हालात का पता नहीं है।
उपराज्यपाल ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री को सलाह दी कि वे कानून व्यवस्था के मुद्दे पर राजनीति न करें। सक्सेना ने यह भी लिखा कि दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा में सुधार के दावे फर्जी है। वास्तव में शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री के समय ही अच्छे काम हुए। बहरहाल आप के सीएम ने उप राज्यपाल के इस पत्र का अभी तक जवाब नही दिया है।
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केंद्र में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन है इस छोटे राज्य के IAS-IPS अफ़सर
देश के छोटे राज्य छत्तीसगढ़ के अधिकारी इन दिनों केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन है। फिलहाल पांच अधिकारियों को खास जिम्मेदारी दी गई है।
बी वी वी सुब्रमण्यम नीति आयोग के सीईओ है जबकि गिरीश द्विवेदी, प्रसार भारती और अमित अग्रवाल, यूआईडीआई के सीईओ है। ये तीनों आईएएस अधिकारी हैं। छत्तीसगढ़ काडर के दो आईपीएस अधिकारी- रवि सिन्हा, रा के प्रमुख और स्वागत दास केबिनेट सचिवालय मे सचिव सुरक्षा है।
रा में जुलाई में होंगे व्यापक तबादले
देश की प्रमुख जांच एजेंसी रा में नए बॉस रवि सिन्हा आ गए है। वे वरिष्ठ IPS अफसर है। माना जा रहा कि सिन्हा अब अपने हिसाब से नए अफसर लायेंगे। इसीलिए इस बात के कयास लगाए जा रहे है कि रा में जुलाई महीने में व्यापक तबादले हो सकते है। इनमें मध्यम और उसके नीचे के अधिकारियों के ज्यादा प्रभावित होने की संभावना है।
बताया जाता है कि इनमे से कई अधिकारियों का तबादला तो एक साल पहले हुआ था लेकिन विभिन्न कारणों से वे अभी तक रिलीव नहीं हुए थे। अब इन अधिकारियों की बिदाई हो सकती है।