Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: मंत्रिमंडल फेरबदल की सुगबुगाहट! लोकायुक्त घेरे में आए दो मंत्री होंगे बाहर?

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Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: 

मंत्रिमंडल फेरबदल की सुगबुगाहट! लोकायुक्त घेरे में आए दो मंत्री होंगे बाहर?

प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की खबरें गरमा रही है। बताया गया है कि दिसंबर में गुजरात चुनाव के नतीजे आने के बाद यह फेरबदल हो सकता है। संभव है कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र के बाद नए मंत्रियों को शपथ दिलाई जाए! खबर तो यहां तक है कि मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल के लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी हरी झंडी दे दी है।

सूत्रों के मुताबिक, इस फेरबदल में 10 से 12 नए चेहरे शामिल किए जा सकते हैं। फिलहाल मंत्रिमंडल में CM समेत 31 सदस्य हैं और चार पद खाली है। बताया जा रहा है कि नॉन परफॉर्मेंस वाले मंत्रियों को बदला जा सकता है। दो कोर कमेटियों की बैठक में इस पर सहमति भी बन गई। कुछ मंत्रियों की शिकायत भी कोर कमेटी तक पहुंची हैं। यह भी हलचल है कि लोकायुक्त के घेरे में आए विजय शाह और प्रधुम्नसिंह तोमर को भी शायद मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया जाए। लेकिन, हटाए जाने वाले चेहरों में सिंधिया गुट के नाम ज्यादा सुनाई दे रहे हैं।

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मंत्रिमंडल के 6 मंत्रियों पर सत्ता और संगठन दोनों की नजर हैं, जिनके कामकाज की रिपोर्ट सही नहीं मिली। इसमें बुंदेलखंड के दो, मालवा-निमाड़ से एक, ग्वालियर संभाग के एक, मध्यभारत से एक और विंध्य से एक मंत्री शामिल हैं। नए फेरबदल में क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण का ध्यान रखा जाएगा!

शिवराज मंत्रिमंडल में 30 में से 10 मंत्री क्षत्रिय है। CM को मिलाकर ओबीसी वर्ग के आठ मंत्री है। अब शिवराज मंत्रिमंडल में नए फेरबदल के बाद 10 से 12 मंत्री शामिल किए जा सकते हैं।इतने ही हटाए भी जा सकते हैं। जिनके नाम की संभावना है उनमें गुना के जजपाल सिंह जज्जी, जतारा से हरीशंकर खटीक, रीवा से राजेन्द्र शुक्ला, कटनी से संजय पाठक,देवास से मनोज चौधरी, इंदौर से महेंद्र हार्डिया या रमेश मेंदोला, अलीराजपुर से सुलोचना रावत और रतलाम से चेतन कश्यप के नाम हो सकते है।

IAS के बाद IPS अधिकारियों की तबादला सूची जल्द!

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मध्यप्रदेश में पिछले सप्ताह मंत्रालय, संभाग और जिला स्तर पर बड़ी प्रशासनिक सर्जरी की गई। अब माना जा रहा है कि जल्दी ही पुलिस विभाग में भी कभी भी सर्जरी हो सकती है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर 14 जिलों के कलेक्टर बदलने के बाद अब इसी दृष्टि से IPS अधिकारियों की बड़ी सर्जरी होगी।

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माना जा रहा है कि ऐसे जिलों के एसपी को बदला जाना जरूरी है जहां वर्तमान में उनकी पदस्थापना को 3 साल के आसपास हो रहे हैं या विधानसभा चुनाव तक 3 साल हो जाएंगे। इस फेरबदल में इंदौर भी प्रभावित हो सकता है।

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पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्रा को इंदौर में विधानसभा चुनाव तक 3 साल हो जाएंगे, इसलिए उन्हें बदला जा सकता है। उनके स्थान पर उज्जैन के आईजी संतोष सिंह का नाम चर्चा में है। वैसे इंदौर के ही आईजी राकेश गुप्ता भी इस पद पर नवाजे जा सकते हैं। पुलिस एडिशनल कमिश्नर मनीष कपुरिया के स्थान पर अमित सांघी को इंदौर भेजे जाने की संभावना है! हरिनारायण चारी मिश्रा और मनीष कपूरिया दोनों के गिनती प्रदेश के बेहतर पुलिस अधिकारियों में होती है। इसलिए इन दोनों को अच्छी पोस्टिंग मिलेगी ऐसा माना जा रहा है।हो सकता है हरिनारायण को उज्जैन का आईजी बना दिया जाए। पर, अभी यह सिर्फ कयास ही हैं।

IAS डॉ पंकज जैन के तबादले किंतु-परंतु

सरकार ने धार कलेक्टर डॉ पंकज जैन को उनके डॉक्टरी ज्ञान को महत्व देते हुए उन्हें ऐसा प्रभार सौंपा है, जो उनके मेडिकल प्रोफेशन को सूट करता है। उन्हें पब्लिक हेल्थ सर्विसेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड का एमडी बनाया गया है। बताया गया है कि सरकार शायद यह मानती है कि उन्हें प्रशासनिक क्षमता और जनता के बीच काम करने की व्यवहारिक कुशलता नहीं है। क्योंकि विदिशा और धार के छोटे कार्यकाल में इस बात को सरकार ने महसूस किया है। ऐसे में सरकार अब उनके डॉक्टरी ज्ञान का उपयोग करना चाहती है।

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इसीलिए उन्हें मेडिकल से जुड़े एक छोटे से कारपोरेशन का एमडी बना दिया गया है जिसका प्रशासनिक काम धाम से कोई लेना-देना नहीं है। डॉक्टर पंकज जैन के बारे में कहा जाता है कि अगर वे प्रशासनिक सेवा में आने के बजाए डॉक्टर ही बने रहते, तो शायद इस समय देश के जाने-माने डॉक्टर में उनकी गिनती होती। लेकिन, जब वे प्रशासनिक सेवा में आ गए तो उन्होंने तालमेल नहीं बैठाया। इसी का नतीजा है कि पहले शिकायतों के बाद उन्हें विदिशा से हटाया गया और अब धार से।

अशोक शाह अपनी जिद पर अड़े, पर CM खामोश!

अफसरों से प्रशासनिक काम के दौरान गलती होती है और ये स्वाभाविक है। लेकिन, कोई अफसर गलती करने के बावजूद हठधर्मी करे और अपनी बात को सही साबित करने के लिए कुतर्क करे, तो इसे क्या माना जाएगा! मामला महिला एवं बाल विकास विभाग के ACS अशोक शाह का है, जो इन दिनों मंच से महिलाओं को अपमानित करने के अपने बयान को सही साबित करने में लगे हैं। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने भी इस मामले में नाराजी भरी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि आंकड़ों से समाज नहीं चलता, घड़ी चलती है। उन्होंने यह भी कहा कि बेहतर होगा कि अशोक शाह गलत बात ठहराने की कोशिश न करें। जो गलत है वो गलत है।

IAS अफसर ने मांओं को कटघरे में खड़ा किया!

उल्लेखनीय है कि उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी योजना के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के सामने स्तनपान को लेकर पूरे महिला समाज को कटघरे में खड़ा कर दिया था। इसके बाद सभी पार्टियों की महिला नेताओं ने उनके विरोध में माहौल बना दिया। उमा भारती के बाद कुसुम महदेले, रंजना बघेल, इमरती देवी समेत कई नेत्रियों ने बयान दिए! आश्चर्य की बात ये कि इतना सब कुछ होते हुए भी मुख्यमंत्री खामोश हैं। महिलाओं और बच्चों के प्रति संवेदना दिखाने वाले शिवराजसिंह चौहान ने अशोक शाह के बयान के प्रति न तो नाराजगी जताई और उन्हें बयान वापस लेने को कहा! राजू तो यह है कि विधानसभा अध्यक्ष की नाराजगी को भी मुख्यमंत्री उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे, जितना की वे अन्य मामलों में लेते रहे हैं!
अगर मुख्यमंत्री ने अशोक शाह को लेकर अभी भी कोई कदम नहीं उठाया तो लोग तो यही मानकर चलेंगे कि अशोक शाह के बयान को मुख्यमंत्री की मौन स्वीकृति है?

हालांकि अशोक शाह के रिटायरमेंट को अब केवल ढाई माह बाकी हैं शायद सरकार यही सोचकर उनके खिलाफ कोई कारवाई नहीं कर रही है लेकिन इससे सरकार की छवि को लेकर अच्छा मैसेज नहीं जा रहा है।

बता दे कि पूर्व एसीएस राधेश्याम जुलानिया को ऐसी ही किसी बात को लेकर सरकार ने मंत्रालय में OSD बना दिया था तो क्या उसी तरह की कार्यवाई अशोक शाह के मामले में नही की जा सकती? आखिर सरकार की छबि का सवाल है?

सुमित्रा महाजन का नाम यूं ही चर्चा में नहीं था

पिछले सप्ताह लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष और भाजपा की वरिष्ठ नेत्री सुमित्रा महाजन का नाम राज्यपाल पद के लिए जोर-शोर से चला। बाद में इसे कोरी अफवाह माना गया। लेकिन ऐसा नहीं है। हां इतना जरूर है कि उनका नाम महाराष्ट्र के राज्यपाल पद के लिए नहीं है, पर वे किसी अन्य राज्य की राज्यपाल बनाई जा सकती है।

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केंद्र की सत्ता के गलियारों में इन दिनों कुछ राज्यपाल की नियुक्ति को लेकर काफी चर्चा है। बताया जाता है कि करीब आधा दर्जन राज्यपाल बनाए जा सकते हैं। दो – तीन वर्तमान राज्यपालों को अन्य राज्यों में भेजा जा सकता है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिन नेताओं के नामों की चर्चा में है उनमें मध्य प्रदेश से सुमित्रा महाजन और गुजरात से विजय रुपाणी भी शामिल बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि अगले कुछ हफ्तों में राज्यपालों के बारे में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

राज्यपाल और ममता बनर्जी

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पश्चिम बंगाल के नए राज्यपाल को लेकर सरकार खास सावधानी बरत रही है। हालांकि ला गणेशन, जिनके पास बंगाल के राज्यपाल का अतिरिक्त चार्ज है, से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की फिलहाल पटरी बैठी दिख रही है। वे गणेशन के पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने हाल ही में चेन्नई भी गयी थीं। गणेशन मणिपुर के राज्यपाल है।

कमलनाथ और डॉक्टर अजय गोयनका

मध्यप्रदेश में कोरोना काल में सबसे ज्यादा पेशेंट्स का इलाज करने वाले सुप्रसिद्ध चिकित्सक चिरायु अस्पताल, भोपाल के डायरेक्टर डॉ अजय गोयनका का पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को लेकर दिया गया बयान प्रशासनिक और सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। भोपाल में आयोजित एक समारोह में उन्होंने कोविड-19 में मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के विजन की तारीफ की है।

मध्य प्रदेश के चिकित्सा क्षेत्र में अपनी अलग पहचान और विश्वसनीयता बनाने वाले डॉ अजय गोयनका के इस बयान को लेकर कई मंतव्य निकाले जा रहे हैं? लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर डॉ अजय गोयनका के बयान के पीछे आशय और मतलब क्या है?

कलेक्टर नहीं तो क्या कमिश्नर तो है आदिवासी

भारतीय प्रशासनिक सेवा के 2005 बैच के रिटायर्ड IAS अधिकारी भगत सिंह कुलेश ने इस बात को लेकर आपत्ति जाहिर की है कि मध्य प्रदेश की 22% आदिवासी आबादी होने के बावजूद भी सरकार ने एक भी जिले में आदिवासी समुदाय का कलेक्टर पदस्थ नहीं किया है।

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हाल ही में मध्य प्रदेश के कई जिलों में कलेक्टर का फेरबदल किया गया है लेकिन इन पदस्थापनाओं में आदिवासी समाज के IAS अधिकारियों की उपेक्षा की गई है और उन्हें कलेक्टर पद के योग्य नहीं समझा गया है। इस मामले में जब हमने शासन के वरिष्ठ स्तर पर बात की तो उनका जवाब था कलेक्टर तो छोड़ो हमने तो कमिश्नर को आदिवासी बना दिया है।
बता दें कि भोपाल में हाल ही में पदस्थ किए गए मालसिंह भयडिया 2006 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रमोटी अधिकारी होकर आदिवासी समाज से आते हैं।

प्रशासनिक और सियासी क्षेत्रों में कुलेश के इस बयान को राजनीति में प्रवेश करने का संकेत माना जा रहा है। बता दें कि भगत सिंह कुलेश आदिवासी समाज से आते है। उन्हें हमेशा इस बात की पीड़ा रही कि राज्य प्रशासनिक सेवा से IAS बनने के बाद सरकार ने उन्हें कभी भी कलेक्टर नहीं बनाया। वे एडिशनल कमिश्नर रीवा रहे और जनवरी 2018 में सरकार ने उन्हें अपर सचिव का दर्जा दिया लेकिन कभी भी कलेक्टर पद से नहीं नवाजा।