Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista:: 48 घंटे में 4 IAS अधिकारियों को बदलने की अंतर कथा

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Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: 48 घंटे में 4 IAS अधिकारियों को बदलने की अंतर कथा

भोपाल में गत सप्ताह आईएएस अधिकारियों के तबादलों की जारी सूची में 48 घंटे में ही फेरबदल किए गए। उसके अंदर की क्या कहानी रही है इस मामले में कुछ कहने के बजाय यह जरूर कहा जा सकता है कि आशीष सिंह के रूप में भोपाल को एक योग्य कलेक्टर मिल गया। सब जानते हैं कि आशीष सिंह ने उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल लोक का निर्माण कर ना सिर्फ मध्यप्रदेश वरन देश में एमपी को ख्याति दिलवाई थी। आशीष सिंह सुपर टाइम मिलने से पहले अभी 3- 4 साल और कलेक्ट्री कर सकते हैं। इसलिए यह माना जा सकता है कि उन्हें बजाए कुछ और असाइनमेंट देने के कलेक्टर के रूप में फील्ड में काम करना सरकार के लिए परिणाम मूलक और ज्यादा उपयोगी साबित होगा।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: 48 घंटे में 4 IAS अधिकारियों को बदलने की अंतर कथा
पर्यटन विकास निगम के एमडी विश्वनाथन को हटाना इस बदलाव का एक नेगेटिव पक्ष कहा जा सकता है क्योंकि उनकी गिनती अच्छे अधिकारियों में होती रही है। जो भी हो इस एपिसोड में विश्वनाथन को खामियाजा भुगतना पड़ा और वे जल निगम के एमडी बनाए गए जहां पर करने को कुछ ज्यादा है ही नहीं। इसीलिए तो जब अविनाश लवानिया का वहा पोस्टिंग किया गया था तो यह बात सामने आई थी कि एक युवा अफसर की योग्यता का यह एक प्रकार से हनन है। राजनीतिक दृष्टिकोण कुछ भी हो और रहा हो लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि लवानिया एक योग्य अधिकारी हैं। इसीलिए जब उन्हें आशीष सिंह के स्थान पर मध्य प्रदेश राज्य सड़क विकास निगम का एमडी बनाया गया तो इस पदस्थापना को उचित ही माना गया।

कौशलेंद्र विक्रम सिंह

रहा सवाल कौशलेंद्र विक्रम सिंह का तो, उन्हें जब भोपाल का कलेक्टर बनाया गया तो चर्चा में यही है कि जो फैक्टर उन्हें ग्वालियर से हटाने का रहा था वही शायद भोपाल में भी काम कर गया और वे भोपाल कलेक्टर बनने से वंचित रह गए।

केंद्रीय मंत्री के सामने कार्यकर्ताओं ने एक मंत्री को लेकर जताया आक्रोश

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भाजपा के रूठे लोगों को मनाने इंदौर आए थे। उन्होंने कितनों को मनाया और कितने माने, यह तो अलग बात है। लेकिन, उन्हें एक मंत्री के बारे में बहुत ज्यादा शिकायतें मिली। बताया गया हैं कि होटल प्राइड में आयोजित इस बैठक में महू की विधायक और प्रदेश की पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर के बारे में महू से आए कई भाजपा के नेताओं ने नरेंद्र तोमर को साफ-साफ कहा कि इस बार वे महू से चुनाव जीत पाएगी, इसमें शंका है।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: 48 घंटे में 4 IAS अधिकारियों को बदलने की अंतर कथा

महू के RSS से जुड़े वरिष्ठ भाजपा नेता ने तो आक्रोश व्यक्त करते हुए साफ साफ कहा कि न तो वे किसी कार्यकर्ता से मिलती है और न कभी संपर्क करती हैं। ऐसी स्थिति में उनका महू से फिर चुनाव जीतना बहुत कठिन है। पार्टी को महू से विधानसभा चुनाव के लिए किसी नए नेता के बारे में विचार करना चाहिए।

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इसके अलावा भाजपा कार्यकर्ताओं ने कविता पाटीदार के बारे में भी नरेंद्र तोमर के सामने अपना गुस्सा निकाला। उनका कहना था कि पार्टी ने कविता पाटीदार में ऐसी क्या योग्यता देखी कि कई योग्य और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर उन्हें सीधे राज्यसभा भेज दिया और पार्टी में भी महत्वपूर्ण पद दे दिया। लोगों ने सीधा आरोप लगाया कि एक तरफ भाजपा भाई-भतीजावाद से परहेज करने की बात करती है और पार्टी के नेताओं के परिवारों को हर जगह बढ़ावा दिया जाता है। जो लोग पार्टी के लिए काम करते हैं, उन्हें हाशिए पर रख दिया जाता है और नेता पुत्र और पुत्रियों को आगे बढ़ाया जाता है। लेकिन, कार्यकर्ताओं और नेताओं का ये गुस्सा ऊपर तक पहुंचता है या नहीं, इसे देखना होगा।

दिग्विजय सिंह की चुनावी सक्रियता!

भाजपा की चुनावी सक्रियता देखकर लोग यह सोचने लगते हैं, कि ऐसे माहौल में कांग्रेस क्या कर रही है! क्योंकि, उन्हें भाजपा की तरह हर जगह कांग्रेस की सक्रियता दिखाई नहीं देती। लेकिन, कांग्रेस में भी एक व्यक्ति है जो लगातार दौरे कर रहा है। हर जिले और गांव में घूम रहा है कांग्रेस को चुनाव के लिए तैयार कर रहा है। यह व्यक्ति पार्टी कार्यकर्ताओं को बता रहा है कि निरुत्साहित होने की जरूरत नहीं, जनता के बीच जाने की जरूरत है।

DIGVIJAY SINGH

बात हो रही है दिग्विजय सिंह की, जो लगातार दौरे कर रहे हैं। पहले उन्होंने विंध्य क्षेत्र का दौरा किया, उसके बाद वे ग्वालियर क्षेत्र में गए और अब वे 5 दिनों तक बुंदेलखंड क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं। लेकिन, कोई हल्ला नहीं, कोई प्रचार नहीं, सीधे संपर्क और संवाद के जरिए वे कार्यकर्ताओं को उत्साहित भी कर रहे हैं और रणनीतिक तौर पर तैयार भी कर रहे हैं। इसके विपरीत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की सक्रियता हेलीकॉप्टर वाली है और जब भी वे बोलते हैं कोई न कोई नया विवाद खड़ा हो जाता हैं।

ऐसी स्थिति में यदि चुनाव में पांसा पलटता है, तो उसका श्रेय दिग्विजय सिंह के खाते में भी जाएगा जो पूरी तरह से कांग्रेस को चुनाव के लिए तैयार कर रहे हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस को जो सफलता मिली थी, उसका काफी कुछ श्रेय उन्हें दिया गया था। क्योंकि, नर्मदा परिक्रमा के बाद उन्होंने नए जोश से पार्टी का प्रचार किया था। इस

चिट्ठी में राज्यपाल का नाम क्यों?

ट्रांसपोर्ट कमिश्नर संजय झा ने अनुसूचित जाति विभाग के प्रमुख सचिव को एक पत्र क्या लिख दिया, उस पर हंगामा हो गया। यह पत्र था ग्वालियर में 16 अप्रैल को होने वाले ‘अंबेडकर कुंभ’ के बारे में! इस पत्र में उन्होंने प्रमुख सचिव से इस आयोजन में आने वाले एक लाख लोगों को ग्वालियर तक लाने के लिए हायर की जाने वाली 2500 बसों का किराया एडवांस में मांग लिया। बता दे कि इस पत्र के साथ सबसे पहले ‘मीडियावाला’ ने ही इस खबर को ब्रेक किया था।

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शासकीय सेवाओं में कार्य करने वाले कई वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि इस पत्र की सबसे ज्यादा आपत्तिजनक बात ये थी कि इस पत्र में उन्होंने महामहिम राज्यपाल के नाम का भी उल्लेख किया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि राज्यपाल के मुख्य आतिथ्य में होने वाले इस कार्यक्रम में एक लाख लोगों को 8 जिलों से इकट्ठा करके लाना है। इन्हें लाने और ले जाने पर 6 करोड़ से ज्यादा का खर्च आएगा और इसकी 80% राशि करीब साढ़े 4 करोड़ एडवांस में आवंटित की जाए।


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इस मुद्दे पर जमकर बवाल मचा। क्योंकि, ऐसा पहले भी हुआ होगा, पर कोई आधिकारिक पत्र सामने नहीं आया! जबकि, पत्र में महामहिम का नाम तक लिख दिया गया। अब देखना है कि इस मुद्दे पर आगे क्या कार्रवाई होगी! कहा तो ये भी जा रहा है कि इस आयोजन में राज्यपाल जाएंगे या नहीं, इसका अभी तक अधिकारिक कार्यक्रम जारी नहीं हुआ है, ऐसे में ट्रांसपोर्ट कमिश्नर द्वारा कार्यक्रम में राज्यपाल का नाम का उल्लेख क्यों किया यह समझ से परे है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अब इस मामले में सरकार आगे क्या करती है?

अभी एक और लिस्ट का इंतजार कीजिए

विधानसभा चुनाव से पहले ट्रांसफर होने का दौर शुरू हो गया। कई आईएएस और आईपीएस बदल दिए गए। कई जिलों के कलेक्टर और एसपी को इधर-उधर कर दिया गया। इसके अलावा एसडीएम और तहसीलदार तक के ट्रांसफर हो गए। लेकिन, कहा जा रहा है कि IAS अधिकारियों की अभी एक बड़ी लिस्ट आना और बाकी है।

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समझा जा रहा है कि इंदौर और उज्जैन कमिश्नर भी उस लिस्ट में शामिल होंगे। क्योंकि, इन दोनों अफसरों को नवंबर तक 3 साल पूरे हो जाएंगे और विधानसभा चुनाव पहले इनका तबादला होना तय है।

इसी लिस्ट में चुनाव की दृष्टि से कुछ और कलेक्टर के तबादले भी हो सकते हैं। कहा नहीं जा सकता कि यह लिस्ट कब आएगी। लेकिन, अब कभी भी इस लिस्ट के आने की संभावना है।

रूठों को मनाने के लिए वरिष्ठों को भूली पार्टी

भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव से पहले सभी रुठे नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए एक योजना बनाई है। इस योजना में प्रदेश के 14 बड़े नेताओं को शामिल किया गया, जिनके बारे में माना जाता है कि उनकी बात को कोई टाल नहीं सकता। इन नेताओं को तीन लेकर चार जिले दिए गए हैं। वे इन जिलों की यात्रा करेंगे, मीटिंग करेंगे और ऐसे कार्यकर्ताओं की मान-मनौव्वल करेंगे जो रूठकर बैठे हैं। इन नेताओं ने यह काम शुरू भी कर दिया है।


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जो नेता और कार्यकर्ता इस समय रूठकर बैठे हैं, वे मानते हैं या नहीं ये अलग बात है! पर पार्टी की रणनीति में कई ऐसे वरिष्ठ नेताओं को हाशिए पर रख दिया गया जो वास्तव में वरिष्ठ हैं और कार्यकर्ताओं को अपने तरीके से समझा सकते हैं। ये वास्तव में इतने वरिष्ठ हैं, कि उनके सामने कोई अपनी नाराजगी तक व्यक्त नहीं कर सकता। लेकिन, पार्टी ने ही इन्हें किनारे कर दिया।

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ऐसे नेताओं में कई बार विधायक रहे विक्रम वर्मा और हिम्मत कोठारी को भी गिना जा सकता है। गौरीशंकर शेजवार और अजय विश्नोई का भी उपयोग इसमें किया जा सकता था। विक्रम वर्मा तो फ़िलहाल पार्टी के सबसे वरिष्ठतम नेताओं में एक हैं। वे राज्यसभा में गए और प्रदेश और केंद्र में मंत्री भी रहे। उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा पार्टी में बिताया है। इसके अलावा भी पार्टी में कई ऐसे नेता हैं, जिन्हें इतनी अहम जिम्मेदारी से अलग रखा गया।

केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की फिर जोरों से चर्चा

MODI JI

दिल्ली के सियासी गलियारों में इन दिनों चर्चा जोरों पर है कि अब केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की बारी है। सूत्रों का कहना है कि कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री ने चुनिंदा मंत्रियों के साथ चर्चा भी की है लेकिन इस बारे में आधिकारिक जानकारी का इंतजार है।

संसद का बजट सत्र: 103.30 घंटे की कार्रवाई विरोध की भेंट चढ़ी

तमाम बाधाओं के बावजूद संसद का बजट सत्र पूर्व निर्धारित तारीख 6 अप्रैल को ही समाप्त हुआ। हालांकि होली अवकाश के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही लगातार बाधित रही राज्य सभा अध्यक्ष जगदीप धनखड के अनुसार इस सत्र में 103.30 घंटे की कार्रवाई विरोध के भेंट चढ़ गयी।

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बजट जैसा महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी हंगामे के बीच पारित हुआ। सत्ता और विपक्ष हंगामे के लिए एक दूसरे को दोष देते रहे लेकिन गंभीरता किसी ने भी नहीं दिखाई।