Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : तो इसलिए केंद्रीय नेतृत्व ने कमान अपने हाथ में ली!

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Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : तो इसलिए केंद्रीय नेतृत्व ने कमान अपने हाथ में ली!

प्रदेश में भाजपा के कार्यकर्ता इस बात को समझ रहे हैं कि राज्य के शीर्ष नेतृत्व में चल रहे मतभेद और एंटी इनकंबेंसी के मद्देनजर इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों की कमान केंद्रीय नेतृत्व ने अपने हाथ में ले ली है। पार्टी कार्यकर्ताओं ने यह तर्क देना भी शुरू कर दिया कि प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव, प्रदेश इकाई के अध्यक्ष वीडी शर्मा और सबसे महत्वपूर्ण रूप से सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भी, जिन्होंने अपने करिश्माई नेतृत्व और कल्याणकारी योजनाओं के कारण लगातार दो विधानसभा चुनाव 2008 और 2013 अकेले जीते, पर पार्टी हाईकमान इस बार आश्वस्त दिखाई नहीं दे रहा था।

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राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा कि 2008 और 2013 के चुनावों के बारे में भूल जाइए, 2018 में पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान केंद्रीय नेतृत्व का हस्तक्षेप उस हद तक नहीं था और राज्य इकाई भाजपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ा। इसलिए वह बहुमत हासिल करने में विफल रही। कांग्रेस की 114 सीटों के मुकाबले सिर्फ 109 सीटों के साथ, भाजपा को सबसे पुरानी पार्टी की तुलना में 0.1 प्रतिशत अधिक वोट मिले। यही कारण है कि इस बार केंद्रीय नेतृत्व ने चुनाव का सारा प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया।

नाराज नेताओं को मनाने का फ़ार्मूला निकाला गया!

बीजेपी में पुराने नेताओं की नाराजी का सबसे बड़ा कारण था कि वीडी शर्मा के कार्यकाल में उन्हें हाशिए पर डाल दिया गया था। कुछ ने खुलकर अपना विरोध दर्ज कराया जबकि कुछ मन ही मन कुढ़ते और अपने मन की पीड़ा जताते रहे। लेकिन, अमित शाह के कमान संभालने के बाद नरेंद्र तोमर की टीम ने पहला काम पुराने नाराज लोगों को मनाने का ही किया।

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चुनाव समितियों के बहाने पुराने नेताओं को साधने की कवायद की गई और कई पुराने नेताओं को मनाने की कोशिश की गई। जयंत मलैया को घोषणा समिति का संयोजक बनाया गया। प्रभात झा को सह संयोजक की जिम्मेदारी दी गई। मुखर विरोधी अजय विश्नोई और पूर्व मीडिया प्रभारी दीपक विजयवर्गीय को भी समितियों में जगह दी गई। अभी और भी कई ऐसे नेता है जिन्हें चुनाव पर प्रबंधन के दौरान जी जिम्मेदारी देकर उनकी नाराजगी को दूर करने की कोशिश की जाएगी। अभी तक वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा और उमा भारती के नाम की इसी समिति में दिखाई नहीं दिया है। अब देखना है कि आगे इनका क्या उपयोग किया जाता है?

पुलिस कमिश्नर की तर्ज पर हुए इंदौर और भोपाल संभाग के कमिश्नर के तबादले

इसे केवल संयोग ही कहा जाएगा लेकिन यह है हकीकत कि जिस प्रकार पुलिस कमिश्नर के मामले में इंदौर और भोपाल के बीच अदला बदली हुई थी, उसी तर्ज संभागीय कमिश्नर के मामले में भी अदला बदली हुई है। इंदौर के संभागीय कमिश्नर पवन कुमार शर्मा को भोपाल और भोपाल के कमिश्नर माल सिंह भयडिया को इंदौर का कमिश्नर बनाया गया है।

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इंदौर संभागीय कमिश्नर के मामले में यह बताना उचित होगा कि प्रभात पाराशर के बाद भयडिया ऐसे दूसरे कमिश्नर हैं जो सीधी भर्ती के ना होकर प्रमोटी IAS है। इंदौर संभाग के कमिश्नर की पोस्टिंग की दृष्टि से अगर अभी तक का इतिहास देखा जाए तो भयड़िया को काफी जूनियर ही कहा जाएगा।

शहडोल के दो कार्यों का उल्लेख ‘मन की बात’ में!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रविवार हुए आकाशवाणी कार्यक्रम ‘मन की बात’ में जिस भी इलाके और जिस काम का उल्लेख होता है, वो जनचर्चा का विषय बन जाता है। इस रविवार प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम में उन्होंने अपनी पिछली शहडोल यात्रा का उल्लेख किया और वहां चल रहे दो कार्यक्रमों का उल्लेख कर उसकी दिल खोलकर तारीफ की।

नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ में कहा कि मैं पिछले दिनों शहडोल जिले के पकरिया गांव गया था। वहां के आदिवासी भाई-बहनों ने कुंओं को वाटर रिचार्जिंग सिस्टम में बदलने का निश्चय किया। पता चला है कि उन्होंने 100 कुंओं को इसके लिए तैयार भी कर लिया।

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उन्होंने पूरे क्षेत्र के 800 कुंओं को वाटर रिचार्जिंग के लिए तैयार करने का लक्ष्य बनाया है। इसी प्रकार फुटबॉल क्रांति का भी उन्होंने उल्लेख किया और कहा कि ब्राजील की तर्ज पर वहां गांव-गांव में फुटबॉल लोकप्रिय होता जा रहा है।
दरअसल ऐसा कम ही होता है जब मन की बात में एक ही जिले के दो कार्यों का की तारीफ हो लेकिन ऐसा मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के कार्यों को लेकर हुआ है। निश्चित तौर पर उसका श्रेय वहां के संभागीय कमिश्नर राजीव शर्मा और कलेक्टर वंदना वैद्य को दिया जाना चाहिए, जिन्होंने योजनाबद्ध तरीके से जनभागीदारी के माध्यम से यह दोनों काम शुरू किए।

कन्हैया कुमार ने बड़े नेताओं के बीच मैदान मारा!

कांग्रेस के कई नेता रविवार को इंदौर आए। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह समेत सारे बड़े नेता कई कार्यक्रमों में इकट्ठा हुए। विधायक संजय शुक्ला के यहां हुए आयोजन के बाद महिला कांग्रेस और आदिवासी महापंचायत का कार्यक्रम हुआ। लेकिन, सबसे ज्यादा चर्चा हुई फायर ब्रांड वक्ता कन्हैया कुमार के भाषण की। पार्टी के बड़े नेताओं के होने के बावजूद कन्हैया कुमार ने मैदान मार लिया। यहां तक कि भाजपा के नेताओं ने भी कन्हैया कुमार की बातों पर प्रतिक्रिया दी।

कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ केंद्र और राज्य के गृहमंत्रियों को आड़े हाथ लिया। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बेटा विदेश में पढ़ता है। क्योंकि, वो अपने राज्य में ही इतने अच्छे स्कूल और कॉलेज नहीं बनवा सके। कन्हैया कुमार ने कहा कि आदिवासियों ने वोट का अधिकार लेने के लिए भी संघर्ष किया है। अब सरकारों को समझना होगा कि, वो आदिवासियों के अधिकार उन्हें नहीं देगी तो हम उनसे छीनकर लेंगे।

उन्होंने प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के नाम पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनके राज्य में सबसे ज्यादा महिला अपराध होते हैं, यह हम नहीं बल्कि केंद्र से जारी आंकड़ों में दर्ज है। हमें सवाल पूछना होगा कि, सिलेंडर क्यों महंगा है। सरकार और नेता हमें ठग रहे हैं। आंखों में धूल झोंककर हमारे जल जंगल जमीन खींचे जा रहे हैं। हमारे बच्चों के लिए भी अच्छा स्कूल होना चाहिए। भर्ती घोटाला खत्म ही नहीं हो रहा।

राकेश सिंह ने बताया कि वे गोविंद सिंह से सीनियर नेता!

कांग्रेस के नेता चौधरी राकेश सिंह और नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। भिंड और लहार के इन दोनों नेताओं के बीच हमेशा खींचतान चलती रहती है। हाल ही में चौधरी राकेश सिंह का एक वीडियो सामने आया जिसमें उन्होंने गोविंद सिंह के बारे में खरी खरी बातें कही।

इस वीडियो में राकेश सिंह को बेहद आक्रोश में दिखाया गया है। उन्होंने पहले तो गोविंद सिंह का पुराना इतिहास खोला जब वे जनता दल और लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े और हारे थे। राकेश सिंह ने यह भी कहा कि 1993 में दिग्विजय सिंह उन्हें कांग्रेस में लाए थे तब वे पहली बार चुनाव जीते। ये बताते हुए राकेश सिंह ने बता दिया कि गोविंद सिंह राजनीति में उनसे सीनियर नहीं हैं।

मणिपुर: आखिर सत्ता और विपक्ष चाहते क्या हैं?

दिल्ली के सत्ता और राजनीतिक गलियारों में पिछले सप्ताह मणिपुर ही छाया रहा। इसके कारण संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही भी बाधित रही। चर्चा मे यह मुद्दा विशेष रूप से छाया रहा कि आखिर सता और विपक्ष चाहते क्या है? इस बात पर भी सहमति सुनी गई है दोनों ही पक्ष इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीति कर रहे हैं। समस्या के समाधान की बात न करके केवल बहस के मुद्दे पर बात अटकाई हुई है।

दिल्ली प्रशासनिक अध्यादेश: सत्ता और विपक्ष के बीच जोर आजमाई होना तय

दिल्ली प्रशासनिक अध्यादेश को लेकर सत्ता और विपक्ष के बीच जोर आजमाई होना तय है। केंद्र सरकार ने तय किया है कि इस अध्यादेश को पहले राज्य सभा में पेश किया जाएगा। सभी विपक्षी दलों ने व्हिप जारी कर दिए हैं। सबकी नजर राज्य सभा के उपाध्यक्ष हरिवंश पर है। देखना है कि वे पार्टी जनता दल यूनाईटेड के व्हिप का पालन करते हैं कि उल्लंघन। वैसे भी अध्यादेश के फैसले के लिए कुल तीन वोटों का अंतर है। सूत्रों का कहना है कि उपाध्यक्ष सरकार के पक्ष में जा सकते हैं। इस अध्यादेश को सरकार इसी हफ्ते प्रस्तुत कर सकती है। इसका पारित होना भी सरकार के लिए बहुत जरूरी है। इसमें उप राज्यपाल को दिल्ली सरकार का मुखिया बनाया गया है।

कौन बनेगा केंद्र में आईटी सचिव

केंद्र मे दूरसंचार विभाग के सचिव का पद 31 जुलाई को खाली हो रहा है। वर्तमान सचिव राजाराम एक अन्य पद पर जा रहे हैं। वे तमिलनाडु काडर के आईएएस अधिकारी है। सरकार लगता है फिलहाल कोई नया सचिव नियुक्त करने की बजाय किसी सचिव को अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंप सकती हैं।

अन्य केंद्रीय सेवा के अधिकारियों में पनपता असंतोष

केंद्र सरकार मे संयुक्त सचिव के पद पर अन्य केंद्रीय सेवा के अधिकारियों को नियुक्ति न मिलने से उनमें असंतोष है। बताया जाता है कि कुछ अधिकारी तो एक साल से अधिक समय से नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं। केंद्र मे एम्पैनलमेंट के बाद यदि दो साल तक नियुक्ति नहीं मिलती तो उनका एम्पैनलमेट स्वतः समाप्त माना जाता है। कयी अधिकारी तो डीओपीटी के भी चक्कर लगा चुका है लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है।