Forest Vegetable Festival : आदिवासियों की परंपरागत 200 तरह की भाजियों का उत्सव!
Alirajpur : किसी को भी यह सुनकर आश्चर्य होगा कि आदिवासी समुदाय में करीब 200 तरह की वन भाजियां खाई जाती है। यह एक अलग तरह का खाद्य पदार्थ है जिसके बारे में आदिवासी समाज ही बेहतर जानता है। उन्हें पता है कि कौनसी भाजी कहां और कब मिलती है और इसे किस तरह पकाया जाता है। साथ ही ये किसके साथ यह भाजियां खाई जाती है।
बरसों से आदिवासियों की यह परंपरा चल रही है, पर धीरे-धीरे लुप्त होने लगी। उनके पुरखे यदि इन 200 भाजियों को जानते थे और उन्हें इन भाजियों को बनाने की प्रक्रिया आती थी, तो आज के लोग इनमें से आधी भाजियों से भी परिचित नहीं हैं। इनमें से ज्यादातर भाजियों को बनाने की प्रक्रिया लुप्त हो गई। आज के कई लोग तो इन भाजियों को पहचानते भी नहीं कि वनों में मिलने वाली इन भाजियों के नाम क्या है इन्हें किस तरह पकाया जाता है।
इस दिशा में अलीराजपुर जिले में एक नया प्रयोग किया गया। इन भाजियों को आज रविवार के दिन एक उत्सव की तरह इकट्ठा करके उन्हें बताया गया। इसे नाम दिया गया ‘वन भाजी उत्सव एवं प्रतियोगिता’ जो अपनी तरह का अनोखा और नया प्रयोग है। इसे जिले के सोंडवा ब्लॉक के उमरी गांव में आयोजित किया गया। दरअसल, ये एक प्रयास है हमारे जंगल के पारंपरिक ज्ञान से पोषण को जानने, समझने और उसे सहेजने का। साथ ही आदिवासी महिलाओं के देशज ज्ञान की तलाश करने का ताकि इससे हमारा देश और विश्व समावेशी स्वस्थ और ऊर्जावान बन सके।
अलीराजपुर क्षेत्र और गुजरात के कवाट क्षेत्र की आदिवासी महिलाओं द्वारा आयोजित ये वन भाजी उत्सव अपने आप में अनोखा प्रयोग रहा। शिरपुर स्थित नरसी मोनजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (एनएमआईएमएस) विश्वविद्यालय एवं ‘निरोग’ के सज्जन सिंह पवार, चिनिया भाई, उमरी, भगत, संस्तिया और साकड़ी का इसमें सहयोग रहा।
इन भाजियों का संरक्षण जरूरी
अलीराजपुर कलेक्टर डॉ अभय बेडेकर ने बताया कि इन भाजियों का संरक्षण करना और इन्हें पकाने की विधि को एक बार फिर से सामने लाना बेहद जरूरी था। क्योंकि, यदि यह भाजिया इसी तरह लुप्त होती गई, तो यह उचित नहीं होगा। उन्होंने इसके लिए आज यह कार्यक्रम करवाया।
इसके लिए शिरपुर (महाराष्ट्र) से कुछ विशेषज्ञों को यहां बुलाया है, जिन्होंने इन वन भाजियों को पकाने की प्रक्रिया को सबके सामने आदिवासी महिलाओं के साथ दर्शाया। इसके लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की गई, ताकि इसके प्रति उत्साह जागृत हो सके। वन भाजियों के संरक्षण की दिशा में यह अपने आप में एक उल्लेखनीय कदम है। इसलिए कि यह भाजिया बरसों से आदिवासियों की सेहत की रखवाली करती रही है और उन्हें कई रोगों से बचाती भी रही। इसलिए इन्हें संरक्षित करना बेहद जरूरी है।