

वन्दिता श्रीवास्तव की कविता -कहीं दूर चिरैय्या की आवाज
और
भोर हो गई
टी व्ही टुट टुट
कहीं दूर
चिरैय्या की
आवाज
सर् सर् सर् सर्
नीम के फूलो से
महकती बयार
की आवाज
फर फर फर
कमरे मे
चलते
पंखे की
आवाज
और
उठो भई उठो
सुबह
हो गयी
अम्मा की
मधुर दुलारी
आवाज
और
बाहर के
बरामदे से
पापा की
आवाज
चश्मा भेज
दो भई
और फिर
मेरी आवाज
जीऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ
फिर
मेरे
भागते कदमो
की
आवाज
पापा के
ट्रांजिस्टर
की आवाज
अब आप
अशोक बाजपेयी
से
समाचार
सुनिये
लो
अब अच्छे से
सुबह
हुई
भाई बहिन
की
खिलखिल करती
नटखट
आवाज। ।।।
वन्दिता श्रीवास्तव
फूलों की चीख: कनेर की ज़ुबानी, जब कनेर बोला: ‘मुझे भी जीने दो’