वरुथिनी एकादशी: व्रत करने मात्र से 10000 वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है, आज से 2 दिन का व्रत

733

 

पंडित अरविंद तिवारी ज्योतिषाचार्य की रिपोर्ट

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत बहुत महत्वपूर्ण होता है. प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं जब एक महीना अधिक जिसको अधिक मास कहा जाता है या मलमास होता है तब इसकी संख्या 26 हो जाती है.

वरुथिनी एकादशी:-, पद्म पुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताते हैं वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी वरुथिनी के नाम से प्रसिद्ध है.

यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करने वाली है। वरुथिनी एकादशी के व्रत से सदा स्वास्थ्य का लाभ और पाप की हानि होती. इस व्रत को करने से सभी को मोक्ष और वैभव विलासिता प्राप्त होती है. वरुथिनी एकादशी के व्रत करने मात्र से मनुष्य को 10000 वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है इस व्रत को करने वाला व्यक्ति दशमी के दिन से ही व्रत का पालन या पारण करना चाहिए व्रत के पारण करते समय या व्रत को धारण करते समय आप यह उद्देश्य प्राप्त करें कि दशमी के दिन या एकादशी के दिन कांसे के पात्र में उड़द मसूर चना चौक सहित दो प्रकार का और वैभव विलासिता को मनुष्य त्याग दें और जिस दिन एकादशी का व्रत करें उस दिन किसी भी प्रकार का सट्टा जुआ सोना पान खाना दातुन करना चुगली करना चोरी करना हिंसा करना पर पुरुष या स्त्री के प्रति काम का भाव रखना असत्य भाषण करना क्रोध इत्यादि करना का यदि मनुष्य त्याग कर देता है और एकादशी के बाद दूसरे दिन भी वह उड़द मदिरा मधु किसी भी प्रकार का तेल दुष्टों से बातचीत प्रदेश गमन दो बार भोजन हर प्रकार की सवारी तथा मसूर की दाल का यदि व त्याग कर देता है और इसके अलावा यदि व संयम पूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत करता है और इस एकादशी की रात्रि में वह जागरण करके भगवान श्री कृष्ण या भगवान मधुसूदन का पूजन करता है तो हर प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।

वरुथिनी एकादशी का अनुष्ठान से मनुष्य बैकुंठ में प्रवेश करता है।

जो लोग इस एकादशी का व्रत करने में समर्थ ना हो वह इस स्थिति में अन्न का सेवन ना करें क्योंकि वरुथिनी एकादशी महाप्रभु वल्लभाचार्य की जयंती भी है इसलिए पुष्टिमार्गीय वैष्णव लोगों के लिए यह दिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है वह इस दिन श्री वल्लभाचार्य का जन्म उत्सव मनाते हैं।

*वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा:-* एक बार भगवान श्री कृष्ण वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा का महत्व धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाते हुए कहा कि प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नामक राजा राज करता था।

एक बार राजा जंगल में तपस्या में लीन था तभी एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चलाते हुए उसको जंगल में घसीट कर ले जाने लगा तब राजा मांधाता ने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु की प्रार्थना की और राजा की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से उस भालू को मार दिया क्योंकि राजा का पैर भालू खा चुका था इसलिए राजा अपने पैर को लेकर बेहद परेशान हो चुके थे।

भगवान विष्णु अपने भक्तों को दुखी देखकर बोले की हे राजन आप दुखी नहीं हो और मथुरा जाओ तथा मेरे 12 अवतार की मूर्ति की विधि विधान से पूजा अर्चना करो।उनकी पूजा-अर्चना करने से तुम्हारा पैर ठीक हो जाएगा और तुम और बलशाली हो जाओगे। राजा मांधाता ने वैसा ही किया उसके प्रभाव से वह बेहद सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया जो भी मनुष्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करता है, भगवान विष्णु का ध्यान करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह स्वर्ग लोग को चला जाता है। वरुथिनी एकादशी व्रत की शुरुआत 26 अप्रैल दिन मंगलवार को सुबह प्रातः एक बजकर छब्बीस मिनट से हो रही है और इसका समापन 27 अप्रैल बुधवार को रात्रि 12:46 पर होगा ऐसे में यह व्रत 26 अप्रैल मंगलवार के दिन रखा जाएगा और व्रत के समापन का समय सुबह 27 अप्रैल 6:41 से सुबह 8:22 के बीच में होगा.