
VC Shobha Tiwari in New Controversy: महाराजा छत्रसाल विश्वविद्यालय की कुलगुरु नए विवाद में! शिक्षा में निष्पक्षता पर उठा सवाल?
छतरपुर: महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय (MCBU) की कुलगुरु प्रोफेसर शोभा तिवारी एक नए विवाद के केंद्र में हैं। उन पर विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी निभाते हुए सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ाव जताने के आरोप लग रहे हैं। इससे यह बहस फिर तेज हो गई है कि क्या उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों को किसी राजनीतिक या वैचारिक संगठन से जुड़ा हुआ दिखना चाहिए।
**कुलपति की पृष्ठभूमि और विवाद की शुरुआत**
प्रो. शोभा तिवारी इंग्लिश विषय की प्राध्यापक हैं और पूर्व में अवधीश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा में कार्य कर चुकी हैं। उन्हें महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, छतरपुर का कुलपति नियुक्त किया गया था। विवाद तब शुरू हुआ जब उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर RSS के शताब्दी समारोह से जुड़ी पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने स्वयं को संघ कार्यक्रम का हिस्सा बताया।

इस पोस्ट के बाद छात्र संगठनों और शिक्षाविदों के बीच यह चर्चा शुरू हो गई कि क्या किसी विश्वविद्यालय प्रमुख को इस तरह से किसी संगठन विशेष के साथ अपनी पहचान जोड़नी चाहिए।
**छात्र संगठनों की प्रतिक्रिया**
एनएसयूआई (NSUI) ने कुलपति पर शिक्षा को “विचारधारा के रंग” में रंगने का आरोप लगाया है। संगठन का कहना है कि विश्वविद्यालयों को राजनीति से मुक्त रहना चाहिए और वहां का वातावरण केवल शिक्षा, शोध और छात्रों के विकास के लिए समर्पित होना चाहिए।
एनएसयूआई की ओर से कहा गया कि-
“कुलपति का किसी राजनीतिक या वैचारिक संगठन से खुला जुड़ाव शिक्षा की पवित्रता के विपरीत है। विश्वविद्यालय को छात्रों का भविष्य संवारने पर ध्यान देना चाहिए, न कि विचारधारा के प्रचार पर।”
वहीं, एबीवीपी (ABVP) की स्थानीय इकाई ने इस विवाद पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, हालांकि संगठन पहले विश्वविद्यालय में परीक्षा परिणामों में अनियमितता को लेकर प्रदर्शन कर चुका है।
**विश्वविद्यालय की स्थिति और पूर्व विवाद**
महाराजा छत्रसाल विश्वविद्यालय हाल के महीनों में कई विवादों का केंद्र रहा है। जून 2025 में सैकड़ों छात्रों को अंग्रेज़ी और इतिहास जैसे विषयों में “शून्य अंक” मिलने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। छात्रों ने परिणाम सुधार और निष्पक्ष जांच की मांग की थी।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने तब तकनीकी त्रुटि की बात स्वीकार करते हुए जांच समिति गठित की थी।
अब कुलपति के सोशल मीडिया बयानों और वैचारिक झुकाव को लेकर जो बहस खड़ी हुई है, उसने प्रशासन की निष्पक्षता पर एक और प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
**RSS जुड़ाव के आरोप और तथ्य**
सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी के अनुसार, शोभा तिवारी ने एक RSS कार्यक्रम में अपनी भागीदारी का उल्लेख किया है, लेकिन उनके “RSS की सक्रिय सदस्य” या “भाजपा से सीधे जुड़ी हुई” होने के दावे की स्वतंत्र पुष्टि अब तक किसी आधिकारिक स्रोत से नहीं हुई है।
हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब तक इस विवाद पर कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया है।
**शिक्षा में राजनीति का प्रश्न**
इस पूरे मामले ने एक बार फिर उच्च शिक्षा संस्थानों की तटस्थता पर बहस छेड़ दी है। शिक्षाविदों का मानना है कि कुलपति या किसी भी शैक्षणिक प्रमुख को प्रशासनिक दायित्वों के निर्वहन के दौरान वैचारिक निरपेक्षता बनाए रखनी चाहिए।
शिक्षा का वातावरण तभी निष्पक्ष रह सकता है जब विश्वविद्यालय राजनीतिक प्रभाव से दूर रहें और छात्रों को केवल ज्ञान, अनुसंधान और नवाचार पर केंद्रित माहौल मिले।
कुलपति शोभा तिवारी के बयानों को लेकर उठा विवाद केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं, बल्कि यह सवाल पूरे उच्च शिक्षा तंत्र पर है — कि क्या विश्वविद्यालयों में वैचारिक तटस्थता अब एक चुनौती बनती जा रही है?
छात्र संगठनों की मांग है कि राज्य सरकार और उच्च शिक्षा विभाग विश्वविद्यालयों में पारदर्शिता सुनिश्चित करें ताकि शिक्षा का यह मंदिर किसी राजनीतिक प्रभाव का केंद्र न बन सके।




