भोपाल:शहरी और ग्रामीण अंचलों में जमीन बेचने के बाद विक्रेता के नामांतरण कराने राजस्व विभाग के दफ्तरों में नहीं पहुंचने से होंने वाली दिक्कतों से अब आमजन को आसानी से निजात मिल सकेगी। इसके लिए केवल सार्वजनिक घोषणा ओर विक्रेता को नोटिस जारी करना पर्याप्त होगा। इसके बाद भी विक्रेता दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने व्यक्तिगत रुप से नहीं पहुंचे तो इसे मौन स्वीकृति मानते हुए नामांतरण के प्रकरणों का निराकरण कर दिया जाएगा। राजस्व विभाग ने इस संबंध में सभी कलेक्टरों को निर्देश दिए है।
शासन के ध्यान में आया है कि तहसील न्यायलयों में फौती नामांतरण और बटवारा प्रकरणों के निराकरण में विलंब हो रहा है। देरी का मूल कारण वारिसों और सहखातेदारों की अनुपस्थिति बताई जाती है। फौती नामांतरण और अविवादित नामांतरण की स्थिति में आवेदन मिलने के तीस दिन के अंदर आदेश जारी किए जाने के प्रावधान है। राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ने ऐसे प्रकरणों त्वरित निराकरण के लिए समयसीमा का पालन करने के निर्देश दिए है।
उन्होंने कहा है कि जमीन बेचने के बाद विक्रेता अक्सर नामांतरण कराने में रुचि नहीं लेते और वे न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होते।यदि सार्वजनिक उदघोषणा के प्रकाशन और विक्रेता को सूचना पत्र जारी करने के बाद भी विक्रेता न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है और उनकी ओर से कोई आपत्ति भी नहीं आती है तो ऐसे मामलों में विक्रेता की मौन सहमति मानते हुए प्रकरण में उपलब्ध तथ्यों के आधार पर नामांतरण आदेश पारित किया जाए।
इसी तरह जमीन के बटवारे के मामले में जमीन के खाते के विभाजन के लिए उद्घोषणा जारी किए जाने और इस जमीन से जुड़े सभी पक्षों को सूचना दिये जाने के बाद यदि कोई आपत्ति प्राप्त नही होती है तो ऐसे प्रकरणों का निराकरण किया जाना चाहिए। अक्सर ऐसे मामलों में पुन: सूचना जारी कर प्रकरणों को लंबित रखा जाता है यह उचित नहीं है। पंजीकृत सम्पत्ति के दस्तावेजों को बटवारे के लिए कराए गए पंजीकृत दस्तावेज के आधार पर बटवारा करते हुए सभी पक्षों के नाम अंकित किए जाने चाहिए। इसमें स्वयं अर्जित भूमि के मामले में भूमिस्वामी यदि कोई पंजीकृत बटवारे का दस्तावेज प्रस्तुत करता है और इससे जुड़े पक्षकार कोई आपत्ति नहीं करते है या आपत्ति पर विचार करने के बाद तहसीलदार उसे निरस्त कर देता है तो प्रस्तावित बटवारा आदेश जारी कर दिया जाना चाहिए।