Verdict After Seven Decades : अदालतों के सबसे पुराने मामलों में से एक 72 साल बाद निपटा!
Kolkata : देश के सबसे पुराने मुकदमों में से एक का 72 साल बाद फैसला हो गया। यह मामला बेरहामपुर बैंक लिमिटेड को बंद करने की कार्यवाही से संबंधित था। देशभर की निचली अदालतों में 4 करोड़ से ज्यादा केस पेंडिंग, 1 लाख केस तो 30 साल से ज्यादा पुराने हैं। सबसे बड़ी रोचक बात तो ये है कि कलकत्ता हाईकोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव का जन्म 1951 में इस मामले के दर्ज होने के पूरे एक दशक बाद हुआ था।
कलकत्ता हाईकोर्ट को इस बात से राहत मिली कि पूर्ववर्ती बेरहामपुर बैंक लिमिटेड को बंद करने की कार्यवाही से संबंधित मुकदमेबाजी अंतत: खत्म हो गई। कलकत्ता हाईकोर्ट को अभी भी देश के पांच सबसे पुराने लंबित मामलों में से दो का निपटारा करना बाकी है। ये सभी मुकदमे 1952 में दायर किए गए थे। देश के बाकी सबसे पुराने तीन मामलों में से दो दीवानी मुकदमे बंगाल के मालदा की दीवानी अदालतों में चल रहे हैं और एक मद्रास हाईकोर्ट में लंबित है।
मालदा की अदालतों ने इन लंबे समय से चल रहे मुकदमों को निपटाने की कोशिश करने के लिए मार्च और नवंबर में सुनवाई की है। बेरहामपुर मामले का उल्लेख राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (National Judicial Data Grid) में 9 जनवरी तक किसी भी भारतीय अदालत में सुने जाने वाले सबसे पुराने मामले के रूप में किया गया। जब जस्टिस रवि कृष्ण कपूर ने पिछले साल 19 सितंबर को मामले के निपटारे के आदेश पर हस्ताक्षर किए, इसे सील किया गया और टाइपोग्राफिकल सुधार के साथ दिया गया।
बैंक बंद करने के आदेश को चुनौती
ये पूरा मामला 19 नवंबर, 1948 को कलकत्ता उच्च न्यायालय के दिवालिया हो चुके और मुकदमेबाजी से घिरे बेरहामपुर बैंक को बंद करने के आदेश से पैदा हुआ था। बैंक को बंद करने के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका 1 जनवरी, 1951 को दायर की गई थी। उसी दिन ‘मामला संख्या 71/1951’ के रूप में दर्ज की गई थी। बेरहामपुर बैंक देनदारों से पैसा वसूल करने के लिए कई मुकदमों में उलझा हुआ था। इनमें से कई कर्जदारों ने बैंक के दावों को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया था।
इसलिए मामला लंबित सूची में
रिकॉर्ड के मुताबिक बेरहामपुर बैंक को बंद करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पिछले साल सितंबर में दो बार हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए आई थी। लेकिन, कोई भी सामने नहीं आया। इसके बाद जस्टिस कपूर ने कोर्ट के लिक्विडेटर से रिपोर्ट मांगी। 19 सितंबर को सहायक लिक्विडेटर ने पीठ को बताया कि अगस्त 2006 में मामले का निपटारा कर दिया गया था। यह पता चला कि इसे रिकॉर्ड में अपडेट नहीं किया गया, जिससे ये मामला लंबित सूची में बना रहा।