आइना दिखा रहा ‘विजय दिवस’…

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आइना दिखा रहा ‘विजय दिवस’…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

बांग्लादेश में हिंदुओं और मंदिरों पर हमले के खिलाफ 8 दिसंबर 2024 को देशभर में प्रदर्शन हुआ था। कश्मीर से कन्याकुमारी और कोलकाता से कच्छ तक मोहम्मद यूनुस के पुतले फूंके गए थे। मध्यप्रदेश और भोपाल में भी प्रदर्शन हुआ था। वजह थी कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा थम नहीं रही है। इससे बांग्लादेश के खिलाफ भारत में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों ने हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के पुतले फूंके गए थे। लोगों ने बांग्लादेशी सामान के बहिष्कार की अपील भी की। श्रीनगर में भी हिंदू समुदाय ने हिंसा के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया था। और आज 16 दिसंबर को ‘विजय दिवस’ भारत को आइना दिखा रहा है कि क्या इसी बांग्लादेश के लिए पाकिस्तान को पटखनी दी थी। यही बांग्लादेश में अब हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार को गैर लोकतांत्रिक तानाशाही सरकार हवा दे रही है।

दरअसल हर साल 16 दिसंबर को भारत में विजय दिवस मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन वर्ष 1971 में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। इस जीत की वजह से बांग्लादेश को अपना खुद का बजूद मिला था। कई दिनों तक चले इस युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों और बांग्लादेशी मुक्ति वाहिनी ने अपनी जी जान लगा दी थी, इसी वजह से इसकी जीत भारत के पक्ष में रही थी। ऐसे में 16 दिसंबर के दिन को उन वीर सैनिकों और नागरिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने इस युद्ध में अपनी जान कुर्बान की थी। पर आज इनकी कुर्बानी पर बांग्लादेशी बट्टा लगा रहे हैं। आखिर इस युद्ध के शहीदों की आत्मा क्या दहाढ मारकर रो नहीं रही होगी कि हमारे भाई-बहनों को क्या हमारी इसी कुर्बानी की सजा मिल रही है। अगर 1971 में भारत पाकिस्तान को घुटनों पर नहीं बैठाता तो क्या बांग्लादेश का स्वतंत्र अस्तित्व संभव था ?

1947 में बंटवारे के बाद पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से, जिसे अब बांग्लादेश कहते हैं, उसमे सांस्कृतिक और राजनीतिक भेदभाव के कारण तनाव बढ़ गया था। पूर्वी हिस्से में नरसंहार, बलात्कार और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने में पाकिस्तान ने सारी हदें पार कर दी थी। इसी के चलते 26 मार्च, 1971 को पहली बार वहां के लोगों ने स्वतंत्रता की मांग की, लेकिन पाकिस्तान ने इस पर दमनकारी नीति अपनाई थी। ऐसे में मानवता के खातिर भारत ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया था, जो पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में बदल गया था। 3 दिसंबर को, 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हुआ था और 13 दिनों तक चला था। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना और बांग्लादेशी मुक्ति वाहिनी के सामने ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया था। इस युद्ध के अंत में लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था, जो इतिहास में किसी युद्ध में सबसे बड़ा आत्मसमर्पण माना जाता है।16 दिसंबर की शाम ही जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण के कागजों पर हस्ताक्षर किए थे। जब नियाजी ने आत्मसमर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए, तब उन्होंने अपनी रिवाल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दी। इस दौरान नियाजी की आंखों में आंसू थे। इस युद्ध के बाद भारत ने न केवल बांग्लादेश को सैन्य सहायता प्रदान की थी, बल्कि लाखों शरणार्थियों को भी शरण दी थी, जो पाकिस्तान की सेना द्वारा की गई हिंसा से बचकर आए थे।भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। इसीलिए इंदिरा को ‘दुर्गा’ कहा गया था।

आज यही 16 दिसंबर एक बार फिर भारत से आवाहन कर रहा है कि उठो, जागो और तब तक न रुको, जब तक बांग्लादेश में रहने वाले हिन्दुओं की आंखों में वहां की सरकारी अत्याचार के आंसू हैं। तब मुस्लिम अत्याचार से मुस्लिम पीड़ितों को बचाने के लिए भारत की कूटनीति और सैन्य साहस का परचम दुनिया में फहराया था। अब 53 साल बाद एक बार फिर बांग्लादेश के मुस्लिमों के अत्याचार से पीड़ित गैर मुस्लिमों और हिन्दुओं को बचाकर भारत की कूटनीतिक और सैन्य ताकत का लोहा मनवाने की मांग समय कर रहा है। तभी ‘विजय दिवस’ की सार्थकता होगी और शहीदों की आत्मा को शांति मिलेगी। आज 53 साल पहले का ‘विजय दिवस’ आइना दिखाकर एक बार फिर पराजय का अहसास करा रहा है

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