विजया दशमी यानी स्री शक्ति से साक्षात्कार का पावन उत्सव

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विजया दशमी यानी स्री शक्ति से साक्षात्कार का पावन उत्सव

 

● सीमा जयंत भिसे

 

आज के इस दिन को वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्त में से एक माना जाता है। अर्थात इस दिन को इतना पवित्र माना जाता है कि इस दिन हमें किसी कार्य के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं पड़ती। इसे अभिजीत मुहूर्त, विजय प्राप्ति मुहूर्त या सर्वार्थ सिद्धि योग भी कहते हैं। किसी भी नए काम की शुरुआत या संकल्प के लिए यह दिन हमेशा शुभ माना जाता है।

विजयादशमी के इस पर्व से संबंधित तीन कथाएं हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने इस दिन रावण का वध किया था। यह युद्ध दस दिन चला। बुराई, अधर्म, विकृतियों का नाश हुआ। अधर्म पर धर्म की विजय,असत्य पर सत्य की विजय इसी प्रतीक के रूप में आज भी रावण का पुतला हम जलाते हैं।

दूसरी कथा है, पांडवों को धोखे से द्यृत क्रीडा में हराकर दुर्योधन ने बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास दिया था। इस एक वर्ष के अज्ञातवास के समय पांडवों ने अपने शस्त्र शमी वृक्ष के छिद्र में छुपाकर रख दिए थे। जब अज्ञातवास समाप्त हुआ, तो वहां से शस्त्र निकाले और उसका पूजन किया फिर उसे धारण किया। इसीलिए इस दिन हम शस्त्र पूजन भी करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का अपना कार्य क्षेत्र रहता है, उसमें जिन शस्त्रों का उपयोग होता है उनका पूजन आज किया जाता है।

तीसरी कथा आती है, जब महिषासुर राक्षस का प्रकोप बहुत बढ़ गया था, तब इसका नाश करने के लिए ब्रह्मा जी ने देवताओं को संगठित होने के लिए कहा। अंत में देवताओं की सारी शक्तियां मां दुर्गा को सौंप दी गई। दुर्गा देवी ने नौ दिन तक राक्षसों से युद्ध किया और राक्षसों का संहार किया। विजय तभी मिलती हैं जब शक्तियां एकत्रित और संगठित हो।

यही कारण है कि इस दिन राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना लक्ष्मीबाई केळकर व्दारा की गई। यह एक ऐसा संगठन है, जो महिलाओं को संगठित कर उनमें राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीय भाव जागृत करता है।

संपूर्ण राष्ट्र में यही ऐसा एकमात्र संगठन है, जो महिलाओं को स्वसंरक्षण बनाने का कार्य करता है। स्वसंरक्षण क्षम इस शब्द में पांच ‘स्व’ निहित है स्वधर्म, स्वराष्ट्र, स्वसंस्कृति, स्वभाषा और स्वाभिमान। ऐसा कहते हैं, जिसके हाथ में पालने की डोरी है, वही राष्ट्र का उद्धार कर सकती हैं। यह भारतीय स्त्री अपने बच्चों को घुट्टी में ही अच्छे संस्कार देती हैं। यदि राष्ट्र को सशक्त बनाना है तो महिला का सशक्त और सक्षम बनना आवश्यक है।

आज महिलाओं में हर क्षेत्र में जागरूकता आयी है। उसने अपने आप को सिध्द किया है। अब आवश्यक है कि, हम हमारा काम पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से करें।

सबसे पहले अपने अंदर की बुराईयों का संहार करने की आवश्यकता है। जिससे परिवार,समाज और राष्ट्र की उन्नति हो सके। महिलाएं परिवार की धुरी है।इसीलिए संस्कार, संस्कृति, धर्म को अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने का कार्य रोजमर्रा के कामों की तरह भली-भांति आसानी से करती हैं। सृजनशीलता के गुण के कारण महिला हमेशा समाधानी भी रहती हैं। यही महिला कुरीतियां, अत्याचार के विरोध में इस कदर खड़ी होती है कि व्यक्तिगत स्वार्थ की सीमा को लांघ देती है। मानो वह देवी दुर्गा हो।

इन सारे गुणों के साथ,समय और काल के अनुसार सीमोल्लंघन का अलग अर्थ निकालना होगा, व्यक्तिगत स्वार्थ की सीमा को लांघकर हमें राष्ट्रीयता में पदार्पण करना होगा। जाति के संकीर्ण भाव को त्यागकर एक विशाल राष्ट्रीय भावना रखनी होगी। परस्पर स्नेह भाव का सोना घर घर जाकर बांटना है। परस्पर विद्वेष रूपी रावण को स्नेह रूपी श्री रामचंद्र मारेंगे तभी एक वैभव संपन्न राष्ट्र का निर्माण होगा। राष्ट्र सर्वोपरी की भावना जागृत हो,यही संकल्प फलीभूत हो।