इंदौर लेखिका संघ ,इंदौर से विनीता तिवारी की लघु कथा{चतुर्थ -किश्त}

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 इंदौर लेखिका संघ ,इंदौर से विनीता तिवारी की लघु कथा {चतुर्थ -किश्त}

टिफिन {लघुकथा }

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17 वर्ष मैंने एक अत्यंत गरीब बस्ती में स्कूल चलाया वहां सब कुछ विशिष्ट था.वहां पर बच्चों की छोटी-छोटी बातें मैं सोचती रह जाती थी वही बातें मुझे बहुत सुदृढ़ बना रही थीं.
मेरा सोचने का एक अपना दृष्टिकोण था उस दृष्टि को मैं बदलते देख रही थी .उनकी खुशियों की वजह बहुत छोटी होती थी ,यह मेरी सोच थी पर इसके उलट उनके लिए खुशियां पाने की वही वजह बहुत मुश्किल थी !!
एक दिन तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली भीनी मुसकुराती हुई हाथ में टिफिन लेकर चली आ रही थी उसकी आंखें, उसका चेहरा ,उसके होंठ, उसके हाव भाव बता रहे थे आज भीनी बहुत खुश है .मुझसे रहा नहीं गया मैंने उसे पास बुलाया, लगा शायद वह भी साझा करना चाहती है अपनी खुशी .उसके पैर जमीं पर टिक नहीं रहे थे लगातार थिरक रहे थे. मैंने कहा भीनी आज तुम बहुत खुश हो? क्या बात है बेटे.

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छलकती उसकी आंखें मेरी उत्सुकता और बढ़ा रही थी, मैंने कहा- क्या हुआ ?भीनी ने थूक निगलते हुए बताया, मैडम जी कल ठेकेदार ने मम्मी को पुराने पैसे दे दिए हैं .शिकायती लहजे में बोली मैं मम्मी से रोज कहती थी तेल की रोटी बनाने का, फिर कुछ सोचते हुए खुश होकर कहने लगी आज मम्मी ने एक तरफ तेल लगाकर रोटी बनाई और मिर्ची पर भी तेल और नमक लगाकर सेंक कर मुझे टिफिन में दी है!!
आज उसने टिफिन बैग में नहीं रखा उसके हाथ में ही था.मुझे खोल कर दिखाया सच में दो रोटी और मिर्च थी उसके टिफिन में !! उसकी खुशियों का खजाना !!!मैं निःशब्द थी, उसे सिर्फ अपने पास ही ले पाई. मन कह रहा था भगवान इतनी खुशियां तो इसे रोज भी तो दे सकता है.

8f179a20 55ae 4837 9e40 d8da1ca2ddd9विनीता तिवारी

आइये पढ़ते हैं , इंदौर लेखिका संघ ,इंदौर से कुछ कथाएं (pratham kisht )