‘वर्चुअल लर्निंग'(Virtual Learning) या बच्चों के भटकाव का रास्ता!

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‘वर्चुअल लर्निंग'(Virtual Learning) या बच्चों के भटकाव का रास्ता!

कोरोना काल ने दुनिया को एक नई दिशा दी, जो है वर्चुअल लर्निंग की। अब बड़ी संख्या में युवक-युवतियों और छोटी क्लास के बच्चों ने भी वर्चुअल लर्निंग को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। यूं कहें कि छोटे बच्चों के हाथ में भी पढ़ाई के नाम पर मोबाइल थमा दिया गया। लेकिन, क्या ये मोबाइल सिर्फ उनकी पढ़ाई तक सीमित है, शायद नहीं! पढ़ाई की आड़ में वे जिस तरह भटक रहे हैं, वो सबसे ज्यादा चिंता जनक बात है। वे खुद शोषित हो रहे हैं या किसी पोर्न साइट को सर्च कर रहे हैं, दोनों ही परिवार के लिए मुश्किल वाली बात है।

भारत में ही साल 2017 से 2020 के बीच लगभग 24 लाख ऑनलाइन बाल यौन शोषण के मामले सामने आए। जिनमें 80 प्रतिशत लड़कियों की उम्र 14 साल से भी कम है। ऐसे में इस बात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह बाल यौन अपराध का शिकार मासूम बच्चे हो रहे हैं और ऐसे में बच्चों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा न केवल उनके वर्तमान को बल्कि आने वाले भविष्य तक को बर्बाद कर रही है। ऐसी स्थिति में ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरूरत महसूस की रही है क्योंकि, समय मिलते ही बच्चे मोबाइल पर कुछ और सर्च करने लगते हैं! उन्हें रोकना संभव इसलिए नहीं है कि परिवार वालों की नजर में वे पढाई कर रहे हैं।

यूं तो बच्चों को यौन हिंसा से दूर रखने के लिए हमारे देश में कई कानून बनाए गए बावजूद इसके बच्चे यौन हिंसा के शिकार लगातार हो रहे है। वर्तमान दौर में देखें तो बच्चे पहले से कहीं ज्यादा समय सोशल मीडिया पर व्यतीत कर रहें है। एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में हर आधे सेकंड में एक बच्चा पहली बार ऑनलाइन होता है। ऐसे में सोशल होती युवा पीढ़ी को यौन अपराध से कैसे बचाया जाए? इसको लेकर सवाल बहुतेरे हैं, लेकिन इन सवालों के उलट जवाब की दिशा में हमारा समाज बढ़ता हुआ नजऱ नहीं आता है।

भारत के संदर्भ में बात करें तो ‘पॉक्सो’ यानी ‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्सुअल अफेंस’ जैसे कड़े कानून के बावजूद यौन हिंसा पर लगाम नहीं लग पा रही हैं। अलबत्ता बढ़ते बलात्कार पर हमारे ही देश के नेता यहां तक कहने से बाज़ नहीं आते की देश में बलात्कार नहीं रोके जा सकते, इसलिए इन पर शोर नहीं मचाना नहीं चाहिए। ऐसे में हम और आप समझ सकते हैं कि अपने बच्चों को डिजिटल होती दुनिया में यौन अपराध से बचाने के लिए स्वयं प्रयास करने होंगें। वैसे जब बीते वर्ष भारत सरकार की तरफ़ से ओटीटी प्लेटफॉर्म को लेकर यह कहा गया कि उन्हें फ़िल्मों की तरह अपने कंटेंट को पांच श्रेणियों में बांटना होगा और ‘पैरेंटिंग ब्लॉक’ की सुविधा देनी होगी। उस परिस्थिति में यह उम्मीद जगी थी कि सरकारें बच्चों के बचपन और युवा पीढ़ी की मनोस्थिति को दुष्प्रभावित नहीं होने देना चाहती है। लेकिन, सवाल यही है कि बाक़ी माध्यमों का क्या होगा! कोई बच्चा जब यूट्यूब या अन्य प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल करता। फिर उस माध्यम पर ऐसा कोई विकल्प क्यों नहीं होना चाहिए!

कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा के चलते बच्चें इंटरनेट से जुड़े। यह सर्वविदित है और साथ ही इंटरनेट पर अश्लील सामग्री के चलते बच्चों में अपराध की प्रवृत्ति भी बढ़ी। यह उसी का एक दुष्परिणाम है। इतना ही नहीं बच्चे अब इन माध्यमों के इस्तेमाल से मानसिक रोगी भी बन रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक दिन में करीब एक लाख 16 हज़ार बार चाइल्ड पोनोग्राफी वीडियो सर्च किए जा रहे है। वही आंकड़ो पर गौर करें तो ऑनलाइन यौन शोषण के शिकार बच्चों में 28 फ़ीसदी बच्चें 10 वर्ष से भी कम उम्र के है।

हाल की स्टडी से यह पता चला है कि बच्चे अपनी उम्र से कई गुना बड़े तक दिखने लगे है। जिसके चलते एक्सचेंज जो कि फेसबुक से कंटेंट हटाने का काम करती है, वह फ़ोटो रिपोर्ट नहीं कर पाती है। ऐसी स्थिति में बच्चों को बालिग़ मान लिया जाता है जो कि सही नहीं है। ऐसे में कुल मिलाकर देखें तो बच्चों और युवाओं को इंटरनेट पर हो रहें अपराध से बचाने के लिए समाज और सरकार दोनों को आगे आना चाहिए। वैसे इंस्टाग्राम ने जिस तरीके से बीते वर्ष महिलाओं को जागरूक करने के लिए ‘सेफ स्त्री’ और ‘माय क़ानून’ जैसे कैम्पेन चलाएं थे। ऐसा ही कुछ सभी इंटरनेट से जुड़े प्लेटफ़ॉर्म पर समय-समय पर शुरू होना चाहिए। जिससे बाल मन पर बुरा असर न पड़ें और वो अपराध का शिकार न हो। अब समय आ गया है। जब बच्चों को ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में शिक्षित करना चाहिए और स्कूलों में इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए।