अमर भूषण के 2012 में प्रकाशित उपन्यास ‘एस्केप टू नोव्हेयर’ पर आधारित विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘खुफिया’
स्वाति तिवारी की खास रिपोर्ट
जिस दिन खुफिया रिलीज हुई नेटफलेक्स पर कोई हिन्दी मूवी खोजते खोजते वही मिल गई ओर पहले ही दिन कोई फिल्म देखने का जो रोमांच था उसके बारे में फिर कभी बात करूंगी पर आज सिर्फ फिल्म की बात करते है इन दिनों अमेरिका मे रहते हुए नेटफलेक्स पर लगातार कुछ फिल्म देखने का अवसर मिल गया ,उनके बीच खुफिया ने जिस जिज्ञासा ओर रोमांच के साथ बांधे रखा वह शायद तबू का अभिनय था ,शायद उपन्यास का क्लाइमेक्स था ,,शायद फिल्म का अलग तरह का निर्देशन था या इन सब के साथ बांधे रखनेवाला कथानक था यह कहने के बजाय यह सीधे सीधे कहूँ तो एक अच्छी फिल्म देखने का कारण ये सब था । एक बार जरूर देखने के लिए कहूँगी ओर दूसरी बार फिल्म समझने के लिए भी देखी जा सकती है ,जी हाँ विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘खुफिया’ नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हो गई है.‘खुफिया’ नए जमाने, नए दौर और नए चलन की फिल्म है। ये उन विशाल भारद्वाज की फिल्म है जिनकी आखिरी फिल्म ‘पटाखा’ कोई पांच साल पहले रिलीज हुई, इसमें तबू और उनकी जोड़ी फिर साथ आई है. तबू ने कृष्णा मेहरा नाम का किरदार निभाया है, जिसे लोग KM भी बुलाते हैं. बाकी तबू के अलावा वामिका गब्बी, अली फज़ल और नवनीन्द्र बहल जैसे एक्टर्स ने काम किया है.
राइटर-डायरेक्टर विशाल भारद्वाज एक जबरदस्त कहानीकार हैं। उनकी फिल्में न सिर्फ मनोरंजक होती हैं, बल्कि पर्दे पर उनका अंदाज धारदार होता है। इस बार उनकी यह फिल्म अमर भूषण के 2012 में प्रकाशित उपन्यास ‘एस्केप टू नोव्हेयर’ पर आधारित है। इस काल्पनिक कहानी का प्लॉट साल 2000 के दशक की शुरुआत का है। कारगिल युद्ध के तुरंत बाद। इसमें एक जासूसी थ्रिलर के लिए जरूरी सभी मसाले हैं। फिल्म की शुरुआत कृष्णा मेहरा उर्फ केएम (तब्बू) के बारे में एक दिलचस्प तरीके से होती है।
वह एक गद्दार एजेंट, रवि (अली फजल) को पकड़ने के मिशन पर है, जो ढाका, बांग्लादेश में एक रॉ एजेंट की मौत के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। .विशाल भारद्वाज ने जिस उपन्यास से यह कहानी ली है, वह रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) की काउंटर एस्पियनेज यूनिट के पूर्व प्रमुख ने लिखी है। लिहाजा, फिल्म के स्क्रीनप्ले में भी जासूसी के तकनीकी पक्षों का पूरा खयाल रखा गया है। यही कारण है कि पर्दे पर जब एजेंसी के लोग कोड को डिकोड करने, गुप्त सूचनाओं तक पहुंचने, दफ्तरों में बगिंग और एजेंट्स के डबल क्रॉस करने जैसे एक्शन में जुटते हैं, तो यह सब बहुत ही प्रामाणिक लगता है।पर्दे पर जासूसों को लेकर दर्शकों की दिलचस्पी हमेशा से रही है।
यहां भी विशाल भारद्वाज ने कई ऐसे फौलादी गुर्गे शामिल किए हैं, जो आपको चौंका देंगे। जिस टीम का नेतृत्व KM या उसके बॉस जीव (आशीष विद्यार्थी) कर रहे हैं, वह जितनी मानवीय है उतनी ही कठोर दिल वाली भी है। फिल्म में एक जगह जीव कहते हैं, ‘हमारे जिस्म में दिमाग धड़कता है, दिल नहीं।’
अपराधी को पकड़ने के लिए बिछाए गए जाल के रोमांच के अलावा, कहानी में जो ट्विस्ट्स हैं, वो रोमांच बढ़ाते हैं। इसके साथ ही फिल्म यह भी बताती है कि जासूसों के पर्सनल लाइफ में क्या रहस्य हो सकते हैं। 2 घंटे और 37 मिनट तक यह फिल्म ध्यान भटकाए बिना अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती रहती है। हालांकि, सेकेंड हाफ में कहीं-कहीं यह पकड़ भी खो देती है।
‘खुफिया’ का म्यजिक भी अपीलिंग है। कवि और गीतकार गुलजार साहब के साथ विशाल भारद्वाज ने फिर से जादू किया है। फिर चाहे रेखा भारद्वाज का गाया ‘मत आना’ हो, या राहुल राम का ‘मन ना रंगाव’। ये गाने फिल्म के साथ भी और फिल्म के बाद भी आपके साथ रहते हैं।जूलियस सीज़र पर एक प्ले होता दिखता है. तबू एक सीन में अगाथा क्रिस्टी की किताब पढ़ती दिखती हैं.
फिल्म में तब्बू ने एक तेज तर्रार जासूस और एक प्रेमी के साथ ही नौकरी और परिवार के बीच फंसी एक महिला के रूप में बेहतरीन काम किया है। वह हर अंदाज में गजब तरीके फिट बैठती हैं। उनके पूर्व पति के रोल में अतुल कुलकर्णी की भूमिका छोटी है, लेकिन दमदार है। अली फजल अपने टॉप फॉर्म में हैं। एक गद्दार के रूप में उन्होंने इस किरदार को जीने का काम किया है। वामिका गब्बी एक प्यारी औ साहसी बीवी, एक मां के किरदार में अपनी चमक दिखाती हैं। बांग्लादेशी एक्ट्रेस अजमेरी हक बधोन ने भी अपने छोटे के रोल में छाप छोड़ी है।नवनीन्द्र बहल रवि की मां बनी हैं. उनके सीन्स में ह्यूमर दिखेगा, जिसे वो अपने काम से कई गुना ऊपर ले जाती हैं. इस रिव्यू को सिर्फ तबू और वामिका के बीच बांधकर नहीं रखा जा सकता था. नवनीन्द्र बहल का किरदार भी उतना ही अहम था.फिल्म थोड़ी लंबी लगेगी जरूर पर अंत तक देखे बिना भी नहीं रह सकेंगे. रोहन नरूला के साथ मिलकर विशाल ने इसकी पटकथा बिल्कुल सटीक लिखी है।मेहमान कलाकार बन कर आए अतुल कुलकर्णी काम में अतिव्यस्त पत्नी औऱ एक बड़े होते बेटे के पिता के किरदार में अपना असर छोड़ ही जाते हैं। फिल्म में तारीफ करने लायक दो कलाकार और हैं। एक ऑक्टोपस के किरदार में बांग्लादेशी अभिनेत्री अजमेरी हक और दूसरी नवनींद्र बहल।